बोलने से पहले और बोलने के बाद राहुल की स्थिति…….

बोलने से पहले और बोलने के बाद राहुल की स्थिति…….

 

प्रकाश भटनागर:

वह शख्स यकीनन घाघ होने की हद तक चतुर है, जो राहुल गांधी के लिए वैचारिक खुराक का बंदोबस्त करता है। वो लोग यकीनन तरस खाने की हद तक मजबूर हैं, जो इस खुराक से हुई वमन वाली प्रक्रिया की सफाई के लिए पाबंद किए गए हैं। इसका विस्तार आगे करेंगे। पहली बात यह कि कांग्रेस के बेहद थिक (मोटी) चमड़ी वाले स्वयंभू थिंक टैंक राहुल गांधी ने एक बार फिर वक्ता और विचारक के रूप में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है। इंडियन स्टेट के खिलाफ संघर्ष वाली राहुल की बात बताती है कि कांग्रेसजनों के इन बिन ब्याहे पिताश्री की अक्ल आज भी रह-रहकर उनसे अलग उस जगह चली जाती है, जहां चारों तरफ भरपूर घास का प्रबंध रहता है।

 

जरा सोचिए भारतीय राज्य के खिलाफ ही युद्ध जैसी यह बात उस पार्टी का कर्णधार कर रहा है, जो पार्टी यह कहते हुए थकती नहीं है कि उसने देश को स्वतंत्र कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। जो रोज संविधान को हाथ में लेकर घूमते हुए उसकी रक्षा की सौगंध खा रहे हैं। इस कथन के चलते राहुल के लिए किसी संबोधन की तलाश में अपनी कलम गंदी किए जाने से बेहतर है कि इसके निहितार्थ तलाशे जाएं। पूरी फिक्र के साथ यह समझना बहुत जरूरी है कि तीन भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों और तीन वर्तमान सांसदों वाले परिवार के इस चश्मो-चिराग की नीयत क्या है और वह देश को किस नियति की तरफ धकेलने की मंशा रख रहा है?

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