रूद्राक्ष के बारे में मान्यता है कि यह शिव के आंसूओं से उपजे पौधे का फल है। आम तौर पर रूद्राक्ष कई तरह के होते हैं और सस्ते और बहुत महंगे तक भी मिलते हैं। लेकिन लाखों की तादाद में रूद्राक्ष अभिमंत्रित होकर सिर्फ कुबेरेश्वरधाम में ही मिलते हैं। अब आस्था और श्रद्धा दोनों यहां इस कदर हावी है कि रूद्राक्ष के असली और नकली होने के सवाल पर बात तो दूर, कोई सोचने को भी तैयार नहीं है। हां
श्रद्धा नितांत निजी विषय है। मानवीय दृष्टिकोण से लेकर कानूनी नजरिये तक। तब ही तो रेपिस्ट साबित हुए गुरमीत राम-रहीम और आसाराम के शिष्यों पर कोई तोहमत नहीं लगाई जाना चाहिए। कानून ने भी इन दोनों को सजा सुनाते समय इनके केवल उन मैनेजर्स और चेले-चपाटियों के साथ ही यह व्यवहार किया, जो उनके गोरखधंधे में साथ देने के गुनहगार सिद्ध हुए। बाकी अनुयायियों में से अधिकतर तो अपनी-अपनी खंडित श्रद्धा के टुकड़े बटोरते हुए भी इन्हें पूज ही रहे हैं। हाल ही में जेल से पैरोल पर छूटे गुरमीत ने फिर दरबार लगाया और उसमें हाजिरी लगाने वालों को आप गलत मानने के बाद भी अपराधी नहीं कह सकते, क्योंकि मामला श्रद्धा वाला है।
तो यही श्रद्धा कहीं भी सैलाब का रूप ले सकती है। सीहोर के कुबरेश्वर धाम में दो किलोमीटर से अधिक की कतार लगी हुई है। यहां पंडित प्रदीप मिश्रा का सात दिवसीय दरबार शुरू हुआ है। धर्म और अध्यात्म में भी अब अलग-अलग ट्रेंड सेटर होने लगे हैं। मिश्रा का ट्रेंड रुद्राक्ष बांटने का है। मामला ट्रेंड यानी चलन का है, ट्रेड यानी व्यापार का नहीं। जी हां, बेहद चमत्कारी बताए जा रहे यह रुद्राक्ष मुफ्त में दिए जा रहे हैं। दावा है कि इन रुद्राक्ष में मिला पानी पी लेने से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। अब भला तकलीफ किसे नहीं है? हम तो उस परिवेश के लोग हैं जो दुर्घटना में घायल किसी व्यक्ति से भी यह होड़ करने लगते हैं कि उससे ज्यादा चोट तो हमें या हमारे किसी परिचित को पहले ही आ चुकी है। इधर आपने किसी से कहा कि आपके सिर में दर्द है तो अगला दन्न से कह गुजरता है कि वह तो आए दिन माइग्रेन को झेलता है। मतलब मामला ‘भला उसकी तकलीफ मेरी तकलीफ से बड़ी कैसे?’ वाली फितरत का है।
तो तकलीफ की तख्ती को तानकर घूमने वाले वातावरण में चमत्कारी रुद्राक्ष का तड़का लोक-लुभावना बन जाना स्वाभाविक है। समस्या केवल यह हुई कि रुद्राक्ष मिलने से पहले अब तक करीब दो हजार लोग कष्ट भोगते हुए कुबरेश्वर आश्रम से अस्पताल जा चुके हैं। पूरे आत्मिक बल के साथ दस घंटे से अधिक तक लाइन में लगने के बाद उनका शारीरिक बल जवाब दे गया और आसमान को छूती श्रद्धा से ठीक उलट वे शरीर के साथ जमीन पर आ गिरे। सचमुच श्रद्धा के इस महासागर में अद्भुत शक्ति है। भक्ति की शक्ति। तकलीफ से छुटकारा पाने की जिजीविषा। किसी के कहे पर पूरे विश्वास के साथ आंख मूंद कर किया गया भरोसा, यह सब सुनना और देखना, निश्चित ही अद्भुत अनुभव है।
रूद्राक्ष के बारे में मान्यता है कि यह शिव के आंसूओं से उपजे पौधे का फल है। आम तौर पर रूद्राक्ष कई तरह के होते हैं और सस्ते और बहुत महंगे तक भी मिलते हैं। लेकिन लाखों की तादाद में रूद्राक्ष अभिमंत्रित होकर सिर्फ कुबेरेश्वरधाम में ही मिलते हैं। अब आस्था और श्रद्धा दोनों यहां इस कदर हावी है कि रूद्राक्ष के असली और नकली होने के सवाल पर बात तो दूर, कोई सोचने को भी तैयार नहीं है। हां, इतने भव्य आयोजन के लिए डेढ़ हजार से अधिक पुलिस वालों का बहता पसीना और हांफता सीना, यह देखकर लगता है कि शायद अतिरिक्त पुलिस-बल भी वहां तैनात किया जाना चाहिए था। खैर, न चमत्कार कम हैं और न ही चमत्कारी। न समस्याएं घटती हैं और न ही उन्हें दूर करने वाले कम होते दिख रहे हैं। इसलिए उम्मीद की जाना चाहिए कि भविष्य के ऐसे किसी आयोजन में सरकारी संसाधनों का एक-एक अंश पूरी श्रद्धा के साथ समर्पित कर दिया जाएगा।
आयोजन में वितरित किए जाने वाले रुद्राक्ष चमत्कारी बताए गए हैं, इसलिए उनके बेशकीमती होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। असली रुद्राक्ष की कीमत कम से कम चार हजार रुपए से शुरू होती है। ऐसे में यह दावा स्तुत्य होने की हद तक सराहनीय है कि लाखों लोगों को उनकी समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में नि:शुल्क रुद्राक्षों का प्रबंध किया गया है। आज अपने कुछ पुराने परिचितों के इस दुनिया में जल्दी आ जाने पर तरस आ रहा है। क्योंकि वे उस समय नेपाल से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में असली रुद्राक्ष पाने के लिए यहां से वहां भटकते रहे और एकाध लाख से ज्यादा का खर्च करने के बाद कहीं उनकी खोज पूरी हो सकी थी। यह बात करीब ढाई दशक पुरानी है, तब की यह राशि आज करोड़ के आसपास तो पहुंच ही चुकी होगी।
काश! ऐसे लोग आज के कुबेरेश्वर धाम जैसे परोपकारी युग में रह रहे होते तो यूं भटकने की बजाय उन्हें लाईन में लगकर ही समस्या का निदान मिल जाता। अब जो लोग पूरे हृदय से अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए लाइन में लगे हैं, उनकी इस आस्था का सम्मान करना ही पड़ेगा। समर्पित भाव से सीहोर वाले रुद्राक्ष और मानवता के हित में उनका वितरण कर रहे पंडित प्रदीप मिश्रा जी, दोनों को नमन। इस आशा ही नहीं वरन विश्वास के साथ कि आज से शुरू हुआ यह आयोजन आगामी सात दिन में डेढ़ अरब की आबादी वाले देश के कम से कम कुछ लाख लोगों को कष्टों से मुक्ति दिलाने का विश्वसनीय माध्यम सिद्ध होगा। जय भोले नाथ।
साभार: प्रकाश भटनागर
( वरिष्ठ पत्रकार)