राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को विजयादशमी के मौक़े पर नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में शस्त्र पूजा की. भागवत ने इस मौक़े पर संघ के संस्थापक केबी हेडगेवार और एमएस गोलवलकर को श्रद्धांजलि भी अर्पित की और फिर स्वयंसेवकों को संबोधित किया.
भागवत ने भारत में धार्मिक जनसंख्या वृद्धि दर में अंतर को लेकर भी चिंता जताई और उन्होंने कहा कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा है.
विजयादशमी पर अपने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने जो प्रमुख बातें कहीं-
- विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर, विदेशी घुसपैठ और मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या, ख़ासकर सीमावर्ती क्षेत्रों की आबादी के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है.
- वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहाँ भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 फ़ीसदी हो गया है. वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.23 फ़ीसदी हो गया है.
- हिन्दू मंदिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे और हिन्दू मंदिरों की संपत्ति का विनियोग भगवान की पूजा के साथ हिन्दू समाज की सेवा और कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित और आवश्यक है.
- अपने समान पूर्वजों में हमारे सबके आदर्श हैं. इस बात की समझ रखने के कारण ही इस देश ने कभी हसनखाँ मेवाती, हाकिमख़ान सूरी, ख़ुदाबख्श तथा गौसखाँ जैसे वीर, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान जैसे क्रांतिकारी देखे. वे सभी के लिए अनुकरणीय हैं.
- बलशीलसंपन्न और निर्भय बनाकर, ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप…. ऐसे हिन्दू समाज को खड़ा करना पड़ेगा. जागरुक, संगठित, बलसंपन्न और सक्रिय समाज ही सब समस्याओं का समाधान है.
- सब प्रकार के भय से मुक्त होना होगा. दुर्बलता ही कायरता को जन्म देती है. यह बलोपासना किसी के विरोध या प्रतिक्रिया में नहीं. बल, शील, ज्ञान तथा संगठित समाज को ही दुनिया सुनती है. सत्य तथा शान्ति भी शक्ति के ही आधार पर चलती है.
- आज जो अपने को हिन्दू मानते हैं, उनका यह कर्तव्य होगा कि वे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक जीवन तथा आजीविका के क्षेत्र में आचरण से हिन्दू समाज का उत्तम सर्वांग सुन्दर रूप खड़ा करें.
- बाहर से आए सभी सम्प्रदायों के माननेवाले भारतीयों सहित सभी को यह मानना, समझना होगा कि हमारी आध्यात्मिक मान्यता व पूजा की पद्धति की विशिष्टता के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार से हम एक सनातन राष्ट्र, एक समाज, एक संस्कृति में पले-बढ़े समान पूर्वजों के वंशज हैं.