अस्पतालों के व्यवसायिकरण और दवा उत्पादन के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में दवा रिटेल एवं दवा डिलीवरी में उतरें महारथी

 

 

रिलायंस, फ्लिपकार्ट, एमाज़ॉन के बाद अब थाइरोकेयर भी उतरी दवा डिलीवरी क्षेत्र में.

शिक्षा क्षेत्र के बाद व्यवसायिकरण स्वास्थ्य क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है जो इस कोविड काल में चिंता का विषय है.

अभी हाल में ही कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने अस्पताल बनवाने के लिए आईपीओ जारी किया था जो 3 गुना ओवर सब्सक्राइब भी हुआ.

डिजिटल हेल्थकेयर कंपनी फार्मइजी़ ने शुक्रवार को डायगोनिस्टक चेन थाइरोकेयर को 4,546 में खरीदने का ऐलान किया.

सौदे के तहत फार्मइजी़ थायरोकेयर में 66.1 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी.

यह काफी महत्वपूर्ण डील है क्योंकि स्टार्टअप इस तरह की कोई डिजिटल हेल्थकेयर कंपनी में बहुसंख्यक हिस्सेदारी खरीद रही है.

इससे पहले फार्मइजी़ ने मेडलाइफ को खरीदा था और इसके बाद वह देश की सबसे बड़ी मेडिसिन डिलीवरी कंपनी बन गई थी.

थायरोकेयर के पास देश भर में डायग्नोस्टिक सेंटर्स का नेटवर्क है.

पिछले दिनों डिजिटल हेल्थकेयर कंपनियों में अधिग्रहण का दौर चला है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने ऑनलाइन फार्मेसी सेगमेंट में कदम रखते हुए नेटमेड्स का अधिग्रहण किया है. जबकि फार्मईजी का मेडलाइफ में विलय हो चुका है.

ई-कॉमर्स सेगमेंट में टाटा ग्रुप का फ्लिपकार्ट, अमेजन और रिलायंस रिटेल जसी दिग्गज कंपनियों से मुकाबला है.

आगे भी इस सेक्टर में कई विलय और अधिग्रहण के सौदे देखने को मिल सकते हैं. कई बड़ी रिटेल कंपनियां इस क्षेत्र में कूद सकती हैं.

साफ है, स्वास्थ्य क्षेत्र में विलय, अधिग्रहण और आईपीओ का खेल, वो भी रिलायंस, टाटा, एमाज़ॉन जैसे महारथी द्वारा होना इस क्षेत्र को व्यापार और मुनाफाखोरी की ओर धकेल रहा है, जहाँ बड़े व्यापारी को तो फायदा होगा लेकिन आम जनता लुटेगी, पिटेगी और त्रस्त होगी.

होना तो यह चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी नियामक होना जरूरी है, जो इन क्षेत्रों में काला बाजारी, मिलावटखोरी, मुनाफाखोरी और लूट खसोट पर नजर रखें और जन हित में शिक्षा और स्वास्थ्य की उपलब्धता सस्ती, सरल एवं सुलभ बनाएं.

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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