क्यूं दम तोड़ता है भारतीय किसान?

क्यूं दम तोड़ता है भारतीय किसान?

श्रीगोपाल गुप्ता:

तीन नये कृषि कानूनों को लेकर किसान और मोदी सरकार यूं तो उसी दिन से आमने-सामने हैं, जिस दिन से देश की सबसे बड़ी पंचायत राज्यसभा में इन तीन विधेयकों को अफरा-तफरी में बिना समुचित बहुमत के जोर-जुलूम के तौर पर पारित कराया गया था! मगर रार जब ज्यादा बढ़ तब हजारों किसानों ने देश की राजधानी और सरकार के सिर दिल्ली को ही घेर डाला,तब से सरकार और किसान दोनों अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग अलाप रहे हैं! जहां तक तीन नये कानूनों का सवाल है तो यह किसानों के जीवन पर भविष्य में बड़ा प्रभाव छोड़ेंगे, इस बात को ध्यान में रखकर हजारों किसान दिल्ली हरियाणा के कई बाॅर्डरों पर इस हाड़-मासं को कपकंपाने वाली सर्दी में भी अपने वीवी बच्चों के साथ सड़कों पर जमा है!मगर इस ऐतिहासिक और विशाल आंदोलन को विपक्षी के ईशारों व गुमराह करने व पाकिस्तान, चीन व खालीस्तानी समर्थकों का जमावड़ा कहने वाली मोदी सरकार किसानों को आठ राऊण्ड की बातचीत व देश में हजारों प्रेस-कानफ्रेंस करने के बाद भी अपनी बात समझाने को समझाने में नाकाम रही! नतीजा देश के सामने है एक तरफ सरकार जहां कानून वापिस न लेने के लिए अडिक है तो किसान कानूनों को दफनाने के लिए अमादा होकर आंदोलित है!
किसान केवल प्रकृति से ही परेशान नहीं है बल्कि वो बड़बोली और दुनिया में बेढंक दिखावा करने वाली सरकारों से भी जूझता है और उसकी बिना किसी सिर-पैर की नीतियों का शिकार होकर या तो भारी कर्जे में डूब जाता है या अपनी जीवनलीला को समाप्त कर बेठता है!

वर्तमान उदाहरण काश्मीर और हिमाचल के हजारों सेव उत्पादक किसानों से जुड़ा है,पूरी दुनिया जानती है कि ये दोनों राज्य फलों में सेव की फसल के लिए जाने जाते हैं! इन दिनों सेव की नई फसल पूरे देश में छा गई है! मगर इस सेव की फसल से कश्मीर व हिमाचल के किसान चार पैसे कमा कर फसल के लिए लिये गये ऋण से मुक्त होकर कुछ जमा-पूंजी जमा लेते कि उससे पहले ही भारत की मोदी सरकार ने ईरान के सेवों को बरास्ता अफगानिस्तान से होकर भारत में आयात की अनुमति दे दी! लिहाजा बाजार में इरानी सेव के आते ही भारतीय सेवों की कीमत ढैर हो गई और ये उसके मुकाबले 30 से 40 रुपया सस्ता मिल रहा है! मजे की बात यह है कि अफगानिस्तान में अभी सेव की फसल नही होती है सरकार भी जानती है बावजूद ईरान के सेवों को अफगानिस्तान का बताकर भारत सरकार उसे इम्पोर्ट डयूटी से फ्री कर दिया है क्योंकि अफगानिस्तान भारत का मित्र देश है और मित्र देशों आयात उत्पादन पर कोई कर नहीं लगता! अब सेवों की कीमतों अचानक इतना गिराव यदि ये कोई प्राकृतिक आपदा हो तो कश्मीर व हिमाचल का किसान मन मारकर रह जाये मगर ये तो हमारी अपनी भारत की सरकार द्वारा खुद न्यौती गई आपदा है ,अब इसका सामना कैसे किया जाये? क्योंकि खेत की बाढ़ ही खेत को खाने के लिए अमादा हो तो कोन रक्षा करेगा! सवाल फिर वही है जो तीन नये कृषि कानूनों पर खड़े हैं कि मात्र कुछ पूंजीपति लोगों के लाभ के लिए क्या किसानों की बलि दी जायेगी? क्योंकि ईरान के सेव को इम्पोर्ट करने वाले कुछ ही इम्पोर्टर हैं जो ईरान के सेव को अफगानिस्तान का सेव बताकर ड्यूटी फ्री का करोड़ों-अरवों रुपये डकार जायेंगे और कश्मीर व हिमाचल का किसान सरकार की बेढंग दिखावा और गलत नीति का शिकार होकर दम तोड़ने के लिए मजबूर होते जायेंगे! ऐसा पहली दफा नहीं अक्सर जब नई फसल बाजार में किसान लाता है सरकारें पूंजीपतियों के दबाव में आयात की अनुमति देती रही हैं जिससे देश का किसान परेशान और तंगहाल बना रहता है!

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