लोकल के लिए वोकल बने…

 

लोकल के लिए वोकल बने…

लोकल के लिए वोकल बने

एक वायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। विश्व भर में करोड़ों जिंदगियां संकट का सामना कर रही हैं। सारी दुनिया, जिंदगी बचाने की जंग में जुटी है। हमने ऐसा संकट न देखा है, न ही सुना है। निश्चित तौर पर मानव जाति के लिए ये सब कुछ अकल्पनीय है, ये संकट अभूतपूर्व है। लेकिन थकना, हारना, टूटना-बिखरना, मानव को मंजूर नहीं है। सतर्क रहते हुए, ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए, अब हमें बचना भी है और आगे भी बढ़ना है। आज जब दुनिया संकट में है, तब हमें अपना संकल्प और मजबूत करना होगा। हमारा संकल्प इस संकट से भी विराट होगा।
कोरोना संक्रमण से मुकाबला करते हुए दुनिया को अब चार महीने से ज्यादा हो रहे हैं। इस दौरान तमाम देशों के 42 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं। पौने तीन लाख से ज्यादा लोगों की दुखद मृत्यु हुई है। भारत में भी लोगों ने अपने स्वजन खोए हैं। मैं सभी के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।
हम पिछली शताब्दी से ही सुनते आए हैं कि 21वीं सदी हिंदुस्तान की है। हमें कोरोना से पहले की दुनिया को, वैश्विक व्यवस्थाओं को विस्तार से देखने-समझने का मौका मिला है। कोरोना संकट के बाद भी दुनिया में जो स्थितियां बन रही हैं, उसे भी हम निरंतर देख रहे हैं। जब हम इन दोनों कालखंडो को भारत के नजरिए से देखते हैं तो लगता है कि 21वीं सदी भारत की हो, ये हमारा सपना नहीं, ये हम सभी की जिम्मेदारी है। लेकिन इसका मार्ग क्या हो? विश्व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है- ‘आत्मनिर्भर भारत’। हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है- एष: पंथा: यानि यही रास्ता है- आत्मनिर्भर भारत। एक राष्ट्र के रूप में आज हम एक बहुत ही अहम मोड़ पर खड़े हैं। इतनी बड़ी आपदा, भारत के लिए एक संकेत लेकर आई है, एक संदेश लेकर आई है, एक अवसर लेकर आई है।
मैं एक उदाहरण के साथ अपनी बात रखूंगा। जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी। एन-95 मास्क का भारत में नाममात्र उत्पादन होता था। आज स्थिति ये है कि भारत में ही हर रोज 2 लाख पीपीई और 2 लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। ये हम इसलिए कर पाए, क्योंकि भारत ने आपदा को अवसर में बदल दिया। आपदा को अवसर में बदलने की भारत की ये दृष्टि, आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प के लिए उतनी ही प्रभावी सिद्ध होने वाली है। आज विश्व में आत्मनिर्भर शब्द के मायने बदल गए हैं, वैश्विक दुनिया में आत्मनिर्भरता की परिभाषा बदल गई है। अर्थकेंद्रित वैश्वीकरण बनाम मानव केंद्रित वैश्वीकरण की चर्चा जोरों पर है। विश्व के सामने भारत का मूलभूत चिंतन, आशा की किरण नजर आता है। भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी आत्मा वसुधैव कुटुंबकम है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तो आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता।

भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है। जब भारत खुले में शौच से मुक्त होता है तो दुनिया की तस्वीर बदल जाती है। टीबी हो, कुपोषण हो, पोलियो हो, भारत के अभियानों का असर दुनिया पर पड़ता ही पड़ता है।

भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो संस्कृति जय जगत में विश्वास रखती हो, जो जीव मात्र का कल्याण चाहती हो, जो पूरे विश्व को परिवार मानती हो, जो अपनी आस्था में ‘माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्य:’ की सोच रखती हो जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि, जब आत्मनिर्भर बनती है, तब उससे एक सुखी-समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है। भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है। जब भारत खुले में शौच से मुक्त होता है तो दुनिया की तस्वीर बदल जाती है। टीबी हो, कुपोषण हो, पोलियो हो, भारत के अभियानों का असर दुनिया पर पड़ता ही पड़ता है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस, ग्लोबर वॉर्मिंग के खिलाफ भारत की सौगात है। इंटरनेशनल योगा दिवस की पहल, मानव जीवन को तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए भारत का उपहार है।
जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही दुनिया में आज भारत की दवाइयां एक नई आशा लेकर पहुंचती हैं। इन कदमों से दुनिया भर में भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा होती है, तो हर भारतीय गर्व करता है। दुनिया को विश्वास होने लगा है कि भारत बहुत अच्छा कर सकता है, मानव जाति के कल्याण के लिए बहुत कुछ अच्छा दे सकता है। सवाल यह है – कि आखिर कैसे? इस सवाल का भी उत्तर है- 130 करोड़ देशवासियों का आत्मनिर्भर भारत का संकल्प। हमारा सदियों का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। भारत जब समृद्ध था, सोने की चिड़िया कहा जाता था, संपन्न था, तब सदा विश्व के कल्याण की राह पर ही चला। वक्त बदल गया, देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया, हम विकास के लिए तरसते रहे। आज भारत विकास की ओर सफलतापूर्वक कदम बढ़ा रहा है, तब भी विश्व कल्याण की राह पर अटल है। याद करिए, इस शताब्दी की शुरूआत के समय वाई2के संकट आया था। भारत के टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स ने दुनिया को उस संकट से निकाला था।
आज हमारे पास साधन हैं, हमारे पास सामर्थ्य है, हमारे पास दुनिया का सबसे बेहतरीन टैलेंट है, हम सबसे बेहतर उत्पाद बनाएंगे, अपनी क्वालिटी और बेहतर करेंगे, सप्लाई चेन को और आधुनिक बनाएंगे, ये हम कर सकते हैं और हम जरूर करेंगे। मैंने अपनी आंखों से कच्छ भूकंप के वो दिन देखे हैं। हर तरफ सिर्फ मलबा ही मलबा। सब कुछ ध्वस्त हो गया  था। ऐसा लगता था मानो कच्छ, मौत की चादर ओढ़कर सो गया हो। उस परिस्थिति में कोई सोच भी नहीं सकता था कि कभी हालात बदल पाएंगे। लेकिन देखते ही देखते कच्छ उठ खड़ा हुआ, कच्छ चल पड़ा, कच्छ बढ़ चला। यही हम भारतीयों की संकल्पशक्ति है। हम ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं, कोई राह मुश्किल नहीं। और आज तो चाह भी है, राह भी है। ये है भारत को आत्मनिर्भर बनाना। भारत की संकल्पशक्ति ऐसी है कि भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। आत्मनिर्भर भारत की ये भव्य इमारत, पांच पिलर्स पर खड़ी होगी। पहला पिलर इकॉनमी। एक ऐसी इकॉनॉमी जो इंक्रीमेंटल चेंज नहीं बल्कि क्वांटम जम्प लाए।
दूसरा पिलर इंफ्रास्ट्रक्चर। एक ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर जो आधुनिक भारत की पहचान बने। तीसरा पिलर हमारा सिस्टम। एक ऐसा सिस्टम जो बीती शताब्दी की रीति-नीति नहीं, बल्कि 21वीं सदी के सपनों को साकार करने वाली टेक्नोलॉजी ड्राइवेन व्यवस्थाओं पर आधारित हो। चौथा पिलर हमारी डेमोग्राफी। दुनिया की सबसे बड़ी डेमोग्राफी में हमारी वाइब्रेंट डेमोग्राफी हमारी ताकत है। आत्मनिर्भर भारत के लिए हमारी ऊर्जा का स्रोत है। पांचवां पिलर डिमांड। हमारी अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई चेन का जो चक्र है, जो ताकत है, उसे पूरी क्षमता से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। देश में डिमांड बढ़ाने के लिए, डिमांड को पूरा करने के लिए, हमारी सप्लाई चेन के हर स्टेक-होल्डर का सशक्त होना जरूरी है। हमारी सप्लाई चेन, हमारी आपूर्ति की उस व्यवस्था को हम मजबूत करेंगे जिसमें मेरे देश की मिट्टी की महक हो, हमारे मजदूरों के पसीने की खुशबू हो। कोरोना संकट का सामना करते हुए, नए संकल्प के साथ मैं आज एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा कर रहा हूं।

ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोले उद्योग, हमारे एमएसएमई के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है, जो आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प का मजबूत आधार है। ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन रात परिश्रम कर रहा है।

ये आर्थिक पैकेज, ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की अहम कड़ी के तौर पर काम करेगा। हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे और आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो ये करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। ये पैकेज भारत की जीडीपी का करीब-करीब 10 प्रतिशत है। इन सबके जरिए देश के विभिन्न वर्गों को, आर्थिक व्यवस्था की कड़ियों को, 20 लाख करोड़ रुपए का संबल मिलेगा। सपोर्ट मिलेगा। 20 लाख करोड़ रुपए का ये पैकेज, 2020 में देश की विकास यात्रा को, आत्मनिर्भर भारत अभियान को एक नई गति देगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए, इस पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉज सभी पर बल दिया गया है।
ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोले उद्योग, हमारे एमएसएमई के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है, जो आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प का मजबूत आधार है। ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन रात परिश्रम कर रहा है। ये आर्थिक पैकेज हमारे देश के मध्यम वर्ग के लिए है, जो ईमानदारी से टैक्स देता है, देश के विकास में अपना योगदान देता है। ये आर्थिक पैकेज भारतीय उद्योग जगत के लिए है जो भारत के आर्थिक सामर्थ्य को बुलंदी देने के लिए संकल्पित हैं। कल से शुरू करके, आने वाले कुछ दिनों तक, वित्त मंत्री जी द्वारा आपको ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ से प्रेरित इस आर्थिक पैकेज की विस्तार से जानकारी दी जाएगी।

अब हमारा कर्तव्य है, उन्हें ताकतवर बनाने का। उनके आर्थिक हितों के लिए कुछ बड़े कदम उठाने का। इसे ध्यान में रखते हुए गरीब हो, श्रमिक हो, प्रवासी मजदूर हों, पशुपालक हों, हमारे मछुवारे साथी हों, संगठित क्षेत्र से हों या असंगठित क्षेत्र से, हर तबके के लिए आर्थिक पैकेज में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का ऐलान किया जाएगा।

आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए बोल्ड रिफॉर्म्स की प्रतिबद्धता के साथ अब देश का आगे बढ़ना अनिवार्य है। आपने भी अनुभव किया है कि बीते 6 वर्षों में जो रिफॉर्म्स हुए, उनके कारण आज संकट के इस समय भी भारत की व्यवस्थाएं अधिक सक्षम, अधिक समर्थ नजर आईं हैं। वरना कौन सोच सकता था कि भारत सरकार जो पैसा भेजेगी, वो पूरा का पूरा गरीब की जेब में, किसान की जेब में पहुंच पाएगा। लेकिन ये हुआ। वो भी तब हुआ जब तमाम सरकारी दμतर बंद थे, ट्रांसपोर्ट के साधन बंद थे। जनधन-आधार-मोबाइल- जेएएम की त्रिशक्ति से जुड़ा ये सिर्फ एक रीफॉर्म था, जिसका असर हमने अभी देखा। अब रिफॉर्म्स के उस दायरे को व्यापक करना है, नई ऊंचाई देनी है। ये रिफॉर्मस खेती से जुड़ी पूरी सप्लाई चेन में होंगे, ताकि किसान भी सशक्त हो और भविष्य में कोरोना जैसे किसी दूसरे संकट में कृषि पर कम से कम असर हो। ये रिफॉर्म्स, रैशनल टैक्स सिस्टम, सरल और स्पष्ट नियम- कानून, उत्तम इंफ्रास्ट्रक्चर, समर्थ और सक्षम ह्यूमन रिसोर्स और मजबूत फाइनेंशियल सिस्टम के निर्माण के लिए होंगे।
ये रिफॉर्म्स, बिजनेस को प्रोत्साहित करेंगे, निवेश को आकर्षित करेंगे और मेक इन इंडिया के हमारे संकल्प को सशक्त करेंगे। आत्मनिर्भरता, आत्मबल और आत्मविश्वास से ही संभव है। आत्मनिर्भरता, ग्लोबल सप्लाई चेन में कड़ी स्पर्धा के लिए भी देश को तैयार करती है। आज ये समय की मांग है कि भारत हर स्पर्धा में जीते, ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ी भूमिका निभाए। इसे समझते हुए, भी आर्थिक पैकेज में अनेक प्रावधान किए गए हैं। इससे हमारे सभी सेक्टर्स की एफीसीएनसी बढ़ेगी और क्वालिटी भी सुनिश्चित होगी। ये संकट इतना बड़ा है कि बड़ी से बड़ी व्यवस्थाएं हिल गई हैं। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में हमने, देश ने हमारे गरीब भाई-बहनों की संघर्ष-शक्ति, उनकी संयम-शक्ति का भी दर्शन किया है। खासकर हमारे जो रेहड़ी वाले भाई-बहन हैं, ठेला लगाने वाले हैं, पटरी पर सामान बेचने वाले हैं, जो हमारे श्रमिक साथी हैं, जो घरों में काम करने वाले भाई-बहन हैं, उन्होंने इस दौरान बहुत तपस्या की है, त्याग किया है। ऐसा कौन होगा जिसने उनकी अनुपस्थिति को महसूस नहीं किया।
अब हमारा कर्तव्य है, उन्हें ताकतवर बनाने का। उनके आर्थिक हितों के लिए कुछ बड़े कदम उठाने का। इसे ध्यान में रखते हुए गरीब हो, श्रमिक हो, प्रवासी मजदूर हों, पशुपालक हों, हमारे मछुवारे साथी हों, संगठित क्षेत्र से हों या असंगठित क्षेत्र से, हर तबके के लिए आर्थिक पैकेज में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का ऐलान किया जाएगा। कोरोना संकट ने हमें लोकल मैन्युफैक्चरिंग, लोकल मार्केट, लोकल सप्लाई चैन का भी महत्व समझाया है। संकट के समय में लोकल ने ही हमारी डिमांड पूरी की है, हमें इस लोकल ने ही बचाया है। लोकल सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी है। समय ने हमें सिखाया है कि लोकल को हमें अपना जीवन मंत्र बनाना ही होगा। आपको आज जो ग्लोबल ब्रांड्स लगते हैं वो भी कभी ऐसे ही बिल्कुल लोकल थे। लेकिन जब वहां के लोगों ने उनका इस्तेमाल शुरू किया, उनका प्रचार शुरू किया, उनकी ब्रांडिंग की, उन पर गर्व किया, तो वो प्रोडक्ट्स, लोकल से ग्लोबल बन गए।
इसलिए, आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है, न सिर्फ लोकल प्रोडक्ट्स खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है। आपके प्रयासों ने, तो हर बार, आपके प्रति मेरी श्रद्धा को और बढ़ाया है। मैं गर्व के साथ एक बात महसूस करता हूं, याद करता हूं। जब मैंने आपसे, देश से खादी खरीदने का आग्रह किया था। ये भी कहा था कि देश के हैंडलूम वर्कर्स को सपोर्ट करें। आप देखिए, बहुत ही कम समय में खादी और हैंडलूम, दोनों की ही डिमांड और बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इतना ही नहीं, उसे आपने बड़ा ब्रांड भी बना दिया। बहुत छोटा सा प्रयास था, लेकिन परिणाम मिला, बहुत अच्छा परिणाम मिला। सभी एक्सपर्ट्स बताते हैं, साइंटिस्ट बताते हैं कि कोरोना लंबे समय तक हमारे जीवन का हिस्सा बना रहेगा।
लेकिन साथ ही, हम ऐसा भी नहीं होने दे सकते कि हमारी जिंदगी सिर्फ कोरोना के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह जाए। हम मास्क पहनेंगे, दो गज की दूरी का पालन करेंगे लेकिन अपने लक्ष्यों को दूर नहीं होने देंगे। इसलिए, लॉकडाउन का चौथा चरण, लॉकडाउन 4, पूरी तरह नए रंग रूप वाला होगा, नए नियमों वाला होगा। राज्यों से हमें जो सुझाव मिल रहे हैं, उनके आधार पर लॉकडाउन 4 से जुड़ी जानकारी भी आपको 18 मई से पहले दी जाएगी। मुझे पूरा भरोसा है कि नियमों का पालन करते हुए, हम कोरोना से लड़ेंगे भी और आगे भी बढ़ेंगे। हमारे यहां कहा गया है- ‘सर्वम् आत्म वशं सुखम्’ अर्थात, जो हमारे वश में है, जो हमारे नियंत्रण में है वही सुख है।
आत्मनिर्भरता हमें सुख और संतोष देने के साथ-साथ सशक्त भी करती है। 21वीं सदी, भारत की सदी बनाने का हमारा दायित्व, आत्मनिर्भर भारत के प्रण से ही पूरा होगा। इस दायित्व को 130 करोड़ देशवासियों की प्राणशक्ति से ही ऊर्जा मिलेगी। आत्मनिर्भर भारत का ये युग, हर भारतवासी के लिए नूतन प्रण भी होगा, नूतन पर्व भी होगा। अब एक नई प्राणशक्ति, नई संकल्पशक्ति के साथ हमें आगे बढ़ना है। जब आचार-विचार कर्तव्य भाव से सराबोर हो, कर्मठता की पराकाष्ठा हो, कौशल्य की पूंजी हो, तो आत्मनिर्भर भारत बनने से कौन रोक सकता है? हम भारत को आत्म निर्भर भारत बना सकते हैं। हम भारत को आत्म निर्भर बनाकर रहेंगे। इस संकल्प के साथ, इस विश्वास के साथ, मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। (देश के नाम संबोधन)

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