19/05/2020
डॉ. वेदप्रताप वैदिक:
तालाबंदी का चौथा दौर शुरू हो चुका है। केंद्र सरकार ने अच्छा किया कि राज्य सरकारों को यह तय करने का अधिकार दे दिया कि वे अपने यहां कहां-कहां और कितना-कितना ताला लगाए रखें और अन्य राज्यों के साथ भी उनके आवागमन के संबंध कैसे रहें। कोरोना के हताहतों की संख्या गर्मी के बावजूद बढ़ती जा रही है। इसका एक संकेत यह भी है कि भारत को अभी अगले दो-तीन महीने तक अधिक सावधान रहना होगा। इस बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ रु. की राहत की घोषणा पांच किस्तों में की। विरोधी दलों ने उसे कोरा छलावा और दिखावा कहा लेकिन वास्तव में यदि उनकी घोषणाओं को अमली जामा पहनाया जा सका तो देश के कृषि, छोटे उद्योग और शस्त्र-निर्माण के क्षेत्रों को कुछ न कुछ फायदा जरूर होगा। कई अर्थशास्त्रियों की यह राय रही कि 20 लाख करोड़ रु. की राहत की बजाय यह तीन-चार लाख करोड़ से ज्यादा की राहत नहीं है। ज्यादातर राहतें तो सालाना बजट से ही उठाकर इस कोरोना राहत में जोड़ दी गई हैं। याने यह कोरा शब्दजाल है। यदि इसे हम अतिरंजित आलोचना मान लें तो भी मुख्य प्रश्न यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था, जो पिछले दो माह में बिल्कुल लंगड़ा गई है, उसे गति कैसे मिलेगी? विश्व-प्रसिद्ध संस्था गोल्डमैन साक्स के अनुसार तीन माह में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 45 प्रतिशत सिकुड़ जाएगी और भारत के समग्र उत्पाद (जीडीपी) में 5 प्रतिशत पतन हो जाएगा। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, बाजारों में मांग का होना और लोगों के हाथ में पैसा होना। आपने लघु-उद्योगों को 3 लाख करोड़ रु. के कर्ज देने की घोषणा तो कर दी लेकिन क्या यह भी सोचा कि जब खरीदारों की जेब में पैसा ही नहीं है तो कारखानों में बना माल बिकेगा कैसे? कारखानेदार फिजूल कर्ज के नीचे क्यों दबना चाहेंगे? प्रवासी मजदूरों के लिए ‘मनरेगा’ की मजदूरी और कुल राशि बढ़ाने के लिए बधाई लेकिन यह बताइए कि जब उन्हें गांवों में बैठे हुए 202 रु. रोज और मुफ्त अनाज मिलेगा तो वे शहरों में वापिस क्यों लौटेंगे? यदि उनको लौटाना है, कारखानों को चलवाना है और बाजारों में रौनक लाना है तो अमेरिका, केनाडा, इंग्लैंड और जर्मनी की तरह करोड़ों किसानों और मजदूरों को कम से कम दो-तीन माह तक जीवन-भत्ता या गुजारा-भत्ता दीजिए। खाली पेट और खाली जेब को भरे बिना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना मुश्किल है।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)