पांच वर्ष पूरे फिर भी शहर की झोली खाली

 

पांच वर्ष पूरे फिर भी शहर की झोली खाली

श्रीगोपाल गुप्ता:

सन् 2014 के आखिरी दिनों में जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुरैना के जीवाजीगंज में रामजानकी मंदिर के नीचे सजी मंच से नगर वासियों को संबोधित करते हुये कहा था कि मैं आपसे वादा करता हूँ कि अगला चुनाव मुरैना नगर निगम का ही होगा तो मौजुद जनसमुदाय खुशी से झूम गया! भारी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रदेश के मुखिया ने आगे कहा कि हालांकि नगर निगम की जरुरी शर्तों को मुरैना पूरा नहीं करता है मगर शहर के भारी विकास के लिए सारे नियमों को शिथिल कर दिया जायेगा और अब निगम बनकर रहेगा! इस बड़ी सौगात के लिए चौहान ने बदले में मंच से जनता से भारतीय जनता पार्टी के मेयर को जिताने की भावुक मांग की थी! उन्होने कहा कि बदले में आपसे झोली फैलाकर भाजपा के मेयर को जिताने की अपील करता हूँ और विकास की जिम्मेदारी शिवराज सिंह की होगी! वादे के मुताबिक मुख्यमंत्री ने अनेक नियमों में बदलाव करते हुये मुरैना को नगर पालिका से नगरपालिक निगम में तब्दील कर अपना वादा निभाया तो जनता ने भी वादे के अनुसार भारतीय जनता पार्टी के महापौर को जिताकर मुख्यमंत्री की झोली भर दी! मगर दुखःद और कष्टकारक यह है कि पूरे पांच वर्ष बीतने के बावजूद मुरैना की झोली खाली की खाली ही रह गई बल्कि यह कहा जाये कि जो कुछ उसकी झोली में था वो गंवा दी,कुछ गलत न होगा! अगामी 8 सितम्बर 2020 को नई नवेली नगरपालिक निगम पूरे पांच सावन देखकर पांच साल पुरानी हो जायेगी और इसी के वर्तमान नगर सरकार का अवसान! चूकी देश में कोरोना महामारी का प्रकोप चरम की और है इसलिए फिलहाल इसके चुनाव अगले वर्ष के लिए टल जायेंगे, वैसे भी राज्य सरकार अपनी स्थिरता और खुद को बचाने के लिये होने वाले विधानसभा के 27 उप चुनाव की तैयारियों को लेकर व्यस्त है जो अगले महिने होने की संभावना है!

इन पांच वर्षों में नगरपालिक निगम सरकार ने अरबों रुपयों के बजट से शहर को चमकाने व सुंदर बनाने व्यवस्थित करने ,जनता की मूलभूत सुख-सुविधाओं के लिए पारीत कर काम शुरु किया था! मगर जैसा दिखाई दे रहा है और जनचर्चा है कि वो सारा बजट भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और लापरवाही की भेंट चढ़ गया! जनता के हिस्से में भंयकर गंदगी, शहर में सूअरों का स्वतंत्र विचरण, कोरोना महामारी के इस दौर में भंयकर तकलीफों का सामना, सीवर लाइन के नाम पर पूरे शहर में गड्डों और दल-दल से लथपथ सड़कों, गली-मोहल्लों में गिरते-पढ़ते अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचाना हाथ आया है! 2003 से लटका-अटका यातायात नगर भी नगरपालिक निगम के भारी विकास की आंधी में भी लटका ही रहा! लोग अब ये कहते नहीं हिचक रहे हैं कि इससे नगर पालिका परिषद ज्यादा अच्छी और प्रभावी थी, कम से कम अधिकारी और जनप्रतिनधि परिषद कार्यालय में एक जगह तो मिल जाते थे! लेकिन अब स्थिति जुदा है जहां रहवासी अनाप-शनाप बढ़े संपति कर की मार को झेलने के लिए अभिशप्त हैं वहीं निगम के मुख्य कार्यालय के अलावा अन्य सह कार्यालय भी खुल गये हैं! जरुरी काम के लिए एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में भटकते रहो मगर क्या मजाल है कि संबंधित अधिकारी व कर्मचारी मिल जाये! करोड़ों, अरबों रुपया खर्च होने के बावजूद नगरपालिक निगम सफाई के मामले में देश तो छोड़िये प्रदेश में भी किसी नंबर नहीं है! जनप्रतिनधि और अधिकारियों के बीच अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण तो शुरुआत से ही चालू हो गया जो आज तक जारी है, मगर महा विकास, विकास या फिर थोड़ा सा ही विकास नदारत है!इन गंभीर हालातों को देखते हुए जनचर्चा का विषय सही ही है कि आज भी नगर पालिका परिषद ही होती…..”

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