जो कुछ भी इस संसार में उत्पन्न हुआ है वह एक न एक दिन समाप्त होगा। वह मन में कोई भाव ही क्यों न उत्पन्न हुआ हो, वह भी जाएगा। यह नियम है। जो उत्पन्न हुआ है, वह मरेगा–यह नियम है | जाते हुए को हम भूल से आया हुआ मान लेते हैं | वास्तव में वह आया नहीं है, प्रत्युत जा रहा है | उत्पन्न नहीं हुआ है, प्रत्युत मर रहा है |
जो जा रहा है, मर रहा है, उसके लिये क्या हर्ष और क्या शोक? क्या राजी और क्या नाराजी? जो जा रहा है, उसकी तरफ दृष्टि न डालें |
सात्त्विक वृत्ति आयी या राजसी वृत्ति आयी अथवा तामसी वृत्ति आयी; संयोग हुआ या वियोग हुआ; आया या गया, कुछ न देखें।
क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहां है –
*उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।*
*गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते||*
( गीता १४ | २३ )
जो उदासीन की तरह स्थित है और जो गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता तथा गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। इस भाव से जो अपने स्वरूप में ही स्थित रहता है और स्वयं कोई भी चेष्टा नहीं करता |
वास्तव में न कुछ आया है, न गया है; न उत्पन्न हुआ है, न नष्ट हुआ है, प्रत्युत गुण ही गुणों में बरत रहे हैं |
अपना उससे कुछ प्रयोजन नहीं, कुछ लेन-देन नहीं | इस प्रकार तटस्थ रहकर चुप, शान्त हो जायँ तो हमारी स्थिति स्वतः तत्त्व में रहेगी | तत्त्व में स्वतः-स्वाभाविक स्थिति का नाम ही जीवन्मुक्ति है, कल्याण है, उद्धार है |
*आज का दिन शुभ मङ्गलमय हो।*