कोरोना से जंग, अनलॉक के संग

 

 

ऋतुपर्ण दवे:
मानव इतिहास की ज्ञात और अज्ञात महामारियों से लेकर विकसित और विकासशील मानव सभ्यता के दौर में कोरोना महामारी ने तमाम दुनिया को बड़ी नहीं, बहुत बड़ी चुनौती दी। वजन में 1 ग्राम से भी बेहद हल्के और न दिखने वाले इस महा वायरस ने वो सनसनी फैलाई जो दोनों विश्वयुध्द के दौरान भी नहीं दिखी। स्वास्थ्य संबंधी दुनियाभर के जानकार, विशेषज्ञ यहाँ तक कि शोधकर्ता भी वुहान के इस वायरस के दुष्परिणामों से बेखबर रहे और जब एकाएक सामना हुआ तो समझ आया कि बात बहुत आगे तक निकल चुकी है। दवा को लेकर कोई ठोस जानकारी किसी के पास नहीं है। कोई कहता है कि सनकी इंसानी फितरत की देन यह वायरस जिस्मानी नहीं बल्कि ईजादी है जिसको इंसान ने बना तो लिया पर इलाज नहीं ढूंढ़ा। सच और झूठ के बीच इस वायरस ने दुनिया में जब अपना रंग दिखाना शुरू किया तो हर कहीं सिवाय दहशत, भगदड़ और मौत के मंजर के कुछ और दिखा ही नहीं। बड़ी-बड़ी हुकूमतें और हुक्मरान तक घबरा गए। हर कहीं आनन-फानन में लॉकडाउन का फैसला लिया गया, जिसने देखते ही देखते दुनिया भर की इकॉनामी को चौपट कर दिया और करोड़ों लोगों की रोजी, रोजगार छिन गया जिससे वो सड़कों पर आ गए।
डरी-सहमी इंसानियत के लिए बस यही सवाल था, है और रहेगा कि सारे फरमानों और हिदायतों के बाद भी कोरोना का कहर बजाए थमने के बढ़ता क्यूँ रहा? सवाल वाजिब भी है लेकिन उसका अनकहा जवाब भी समझना और मानना होगा क्योंकि कोरोना के कहर से निपटने के लिए तुरंत वक्त कहाँ था? कोरोना के बीच जीने और मौत को मात देने के लिए जरूरी तैयारियों की खातिर बिना शोरशराबे के वक्त की जरूरत थी। लॉकडाउन के लंबे दौर में भारत ही नहीं तमाम दुनिया को काफी कुछ नसीहत के साथ सेहत के जरूरी इंतजामों का लॉकडाउन से ही मौका मिला, जिसके बाद सबकुछ पहले जैसा लेकिन धीरे-धीरे करना ही था।
लॉकडाउन से स्वास्थ्य संबंधी इंतजामों के लिए न केवल वक्त मिला बल्कि तेजी से फैलाव को रोकने में काफी कुछ मदद भी मिली। लेकिन लाइलाज कोरोना से कोई कबतक घरों में दुबका रहेगा। साथ ही बिना रोजगार, कारोबार शुरू किए दुनिया और जिन्दगी कैसे चलेगी? इसका जवाब भी उसी वुहान से मिला, जिसकी औलाद कोरोना है। वहाँ 72 दिनों के बाद लॉकडाउन खत्म किया गया। भारत में 25 मार्च से लागू लॉकडाउन 8 जून को 75 दिन पूरे करेगा और इसी दिन से धीरे-धीरे कई रियायतें लागू की जाएंगी क्योंकि केन्द्र और तमाम राज्य सरकारों ने कोरोना को टक्कर देने की अच्छी-खासी तैयारियाँ कर ली हैं। अनलॉक का पीरियड काफी बदला हुआ-सा होगा क्योंकि जब हम सभी कुछ पहले जैसा करने की ओर बढ़ रहे होंगे तब सबको अपनी तरफ से और आगे बढ़कर काफी सावधानियाँ बरतनी बेहद जरूरी होंगी। जैसे सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, शादी, ब्याह, अंतिम संस्कार, धार्मिक स्थलों पर तय संख्या में ही शामिल होना, बिना फेस मास्क के घरों न निकलना और बाहर सोशल डिस्टेंसिंग यानी दो गज की दूरी बनाए रखना बेहद जरूरी होगा। इसके लिए सरकारी फरमानों से ज्यादा खुद की सीमाओं को हर किसी को तय करना होगा। जहाँ बड़े-बुजुर्गों खासकर 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजर्गों, 10 साल से छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं को घरों पर ही रखने की सलाह माननी होगी ताकि इन्हें जल्द संक्रमण के चपेट में आने की जद से रोका जा सके।
कोशिश करनी होगी कि जितना संभव हो लोग घरों से ही काम यानी वर्क फ्रॉम होम करें। कार्यस्थलों, सार्वजनिक, धार्मिक, शैक्षणिक स्थानों पर निरंतर सैनिटाइजेशन की माकूल व्यवस्थाएं देखना स्थानीय प्रशासन की खास जिम्मेदारी हो ताकि संक्रमण को उसकी हद में ही रखा जा सके। लंबे और उबाऊ लॉकडाउन से बाहर आना इसलिए जरूरी है ताकि कोरोना से इतर गरीबी, भुखमरी, पलायन, दूसरी बीमारियाँ और बेवजह का अवसाद झेल रहे लोग सामान्य रूप से सरकार द्वारा तय लक्ष्मण रेखा में पहले जैसी सामान्य जिन्दगी की ओर रफ्ता-रफ्ता बढ़ सकें। इतना तो तय है कि पहले के दौर की रियायतों से लौटने वाली रौनक को बरकरार रखने के लिए हदबन्दी बेहद जरूरी होगी ताकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी वाली स्थिति न बने और जान है जहान के फॉर्मूले के बीच कोरोना के संग जीने की शुरुआत कर इसे मात देने की मुहिम सफल हो पाए और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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