कुंभ परंपरा को गहराई के साथ समझने की जरूरत, जानें 12 सालों में एक बार यहां स्नान करने का महत्व

 

 

सद्गुरु जग्गी वासुदेव (धर्मगुरु) हो सकता है पिछले आठ दस दशकों में इसने कुछ हद तक अपनी प्रासंगिकता खोई हो क्योंकि कुछ सदियों तक देश हमारे हाथों में नहीं रहा। ऐसे में इसे पुनर्जीवित करने की बहुत जरूरत है। आखिर बारह सालों में एक बार यहां नहाने का क्या महत्व है? इसका संबंध योग के एक मूलभूत पहलू से है, जिसे भूत शुद्धि कहा जाता है और जिसका अर्थ होता है अपने पंचतत्वों की सफाई करना।

  

जगत में सब कुछ पंचतत्वों का ही खेल

इस जगत में जो कुछ भी है, वह सब पंचतत्वों का ही खेल है। हमारा शरीर, यह धरती, सौरमंडल, यह सृष्टि, सब कुछ। पूरी की पूरी सृष्टि इन पांच तत्वों की ही शरारत है। पांच करोड़ नहीं, पांच लाख नहीं, सिर्फ पांच तत्वों की। यह दिखाता है कि इस सृष्टि के निर्माण के पीछे किस तरह की बुद्धिमत्ता है। अरबों खरबों रूप जो जीवन ने लिए हैं, वे सब सिर्फ पांच तत्वों से ही बने हैं। इसीलिए योग के मूलभूत अंग, भूत शुद्धि में, ऐसा माना जाता है कि अगर आप इन पांच तत्वों पर अपना अधिकार कर लें, तो आपका स्वास्थ्य, कल्याण, समृद्धि जैसी तमाम चीजों की देखभाल अपने आप होती रहती है।

गहन विश्लेषण से यह सब परंपरा बनी

इस शरीर की जो संरचना है, वह कुछ इस तरह की है कि इसमें 72 फीसदी पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है, 4 फीसदी अग्नि है, बाकी आकाश है। किसी इंसान के लिए यहां अच्छी तरह से रहने के लिए पानी की बड़ी अहमियत है, क्योंकि शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा पानी होता है। इस धरती का भी 72 फीसदी हिस्सा पानी ही है, इसलिए कुंभ या कुछ विशेष अक्षांशों पर नदियों के मिलने की घटना का जो हम उपयोग कर रहे हैं, वह किसी मान्यता की वजह से नहीं है, न ही यह कोई अंधविश्वास है। जीवन और दूसरी शक्तियां हमारे आसपास कैसे काम करती हैं, हम उनका उपयोग कैसे कर सकते हैं, इसके गहन विश्लेषण से यह सब परंपरा बनी है।

जरूरी साधना संग उस पानी में जाएं

जहां कहीं भी पानी के दो निकाय एक खास बल के साथ मिलते हैं, वहां पानी का मंथन होने लगता है। जैसा मैंने कहा हमारे शरीर में भी 72 फीसदी पानी है। तो यह शरीर जब किसी खास समय और नक्षत्र में वहां पर होता है तो उसे अधिकतम लाभ मिलता है। प्राचीन समय में हर कोई यह जानता था कि 48 दिनों के मंडल के दौरान अगर आप कुंभ में रुकें और हर दिन आप जरूरी साधना के साथ उस पानी में जाएं, तो आप अपने शरीर को, अपने मनोवैज्ञानिक तंत्र को अपने ऊर्जा तंत्र को रूपांतरित कर सकते हैं। इससे आपको उन 48 दिनों के दौरान ही अपने भीतर जबरदस्त आध्यात्मिक प्रगति महसूस होगी। लेकिन आजकल तो कुंभ में लोग बहुत जल्दबाजी में जाते हैं।

40 दिन साधना फिर कुंभ में स्नान

आधे दिन का समय होता है जिसमें आप आम तौर पर एक बार नहाते हैं और बस फिर वापसी। आज के दौर में आप सभी को कुंभ में 48 दिनों के लिए ले जाना तो संभव नहीं है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम हर किसी के लिए कम से कम 40 दिनों की साधना का एक कार्यक्रम तय कर दें। आप जहां कहीं भी हैं, बस 40 दिन तक रोजाना 10 से 12 मिनट की साधना कीजिए और उसके बाद कुंभ में आकर स्नान कीजिए। इससे काफी फर्क पड़ेगा, क्योंकि इसकी अपनी महत्ता है। सवाल यह है कि अगर किसी विशेष स्थान पर कोई विशेष ऊर्जा मौजूद है तो क्या आपके पास उसे ग्रहण करने की क्षमता है? क्या उसका अनुभव करने लायक काबलियत आपके भीतर है? अगर आप इसे अनुभव नहीं कर सकते तो आप कहीं भी हों, सब बेकार है।

कुंभ लगने के पीछे एक पूरा विज्ञान

तो किसी खास जगह पर और किसी खास समय पर ही कुंभ लगने के पीछे एक पूरा विज्ञान है। जो पानी यहां है, वह आपके भीतर कैसे बर्ताव करेगा, उसी से आपका स्वास्थ्य और कल्याण तय होगा। इसका व्यवहार कैसा होगा? इसका व्यवहार बिल्कुल वैसा ही होगा, जैसा आप उसके साथ व्यवहार करेंगे। आज के समय में आधुनिक विज्ञान ने बहुत से प्रयोग किए हैं जिससे पता चला है कि पानी की अपनी स्मृति यानी याद्दाश्त होती है।

पानी वस्तु नहीं जीवन निर्माण पदार्थ

यहां तक कि वे पानी को फ्लूइड कंप्यूटर कह रहे हैं, क्योंकि पानी के भीतर जो स्मृति और बुद्धिमत्ता है, वह जबरदस्त है। हमें इसे समझना होगा, पानी कोई वस्तु नहीं है, यह जीवन का निर्माण करने वाला पदार्थ है। जो पानी आप पीते हैं, वह ऐसे ही कहीं नहीं चला जाता है, यह इंसान का रूप ले रहा है। इसमें स्मृति और बुद्धिमत्ता है। अगर आप इसे सही तरीके से लेंगे, सिर्फ तभी यह आपके साथ अच्छे तरीके से व्यवहार करेगा। अगर आप इसके साथ खराब व्यवहार करेंगे तो यह भी आपके साथ बुरा व्यवहार करेगा।

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