प्रमोद भार्गव:
खिलौना शब्द स्मरण में आते ही, अनेक आकार-प्रकार के खिलौने स्मृति में स्वरूप ग्रहण करने लगते हैं। खिलौनों को बच्चों के खेलने की वस्तु भले माना जाता हो लेकिन ये सभी आयुवर्ग के लोगों को आकर्षित करते हैं। खिलौने जहां बाल मन में जिज्ञासा, रहस्य और रोमांच जगाते हैं, वहीं चित्त को प्रसन्न रखते हैं। बच्चे या किशोर एकाकीपन की गिरफ्त में आकर अवसाद के घेरे में आ रहे हों तो खिलौने इसे समाप्त करने के प्रमुख उपकरण हैं। मूक, बधिर व मंदबुद्धि बच्चों को खिलौनों से ही शिक्षा दी जाती है। छोटे बच्चों के लिए तो समूचे देश में खेल-विद्यालय अर्थात ‘प्ले-स्कूल’ खुल गए हैं। साफ है, बच्चों के किशोर होने तक खिलौने उनकी परवरिश के साथ, उनमें रचनात्मक विकास में भी सहायक हैं। खिलौनों का भारत के परिप्रेक्ष्य में कमजोर पहलू यह है कि हम बड़ी मात्रा में चीन से खिलौने का आयात करते हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलौनों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया है।
भारत में खिलौना निर्माण का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में अनेक प्रकार के खिलौने मिले हैं। ये मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, धातु, चमड़ा, कपड़े, मूंज, वन्य जीवों की हड्डियों व सींगों और बहुमूल्य रत्नों से निर्मित हैं। जानवरों की असंख्य प्रतिकृतियां भी खिलौनों के रूप में मिली हैं। रामायण, महाभारत और उपनिषदों में भी खिलौनों से विद्यार्थियों को शिक्षित करने के प्रसंग हैं। भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं तो इतनी अनूठी हैं कि ये बाल मनोविज्ञान का पूरा शास्त्र हैं। कृष्ण ने यमुना नदी में कालिया नाग का मर्दन नदी में गेंद के डूब जाने पर ही किया था। भक्तिकालीन कवि सूरदास ने कृष्ण की लीलाओं पर जो पद लिखे हैं, बालकों के अंतर्मन को समझने के इनसे श्रेष्ठ उदाहरण दुनिया में लिखी गई बाल-मनोविज्ञान की किताबों में नहीं हैं। पंचतंत्र, हितोपदेश और जातक कथाएं भी वन्य-प्राणियों को मानवीकरण कर लिखी ऐसी बाल-सुलभ कहानियां हैं, जो राजनीति, मनोविज्ञान और बहादुरी से बच्चों को परिचित कराती हैं। संकट में प्रतिउत्पन-मति (आईक्यू) क्या हो, इनसे उत्तम व रोचक वर्णन विश्व-साहित्य में ढूंढ़ना मुश्किल है। इस दृष्टि से अकबर-बीरबल, तेनालीराम और कठ-पुतलियों का खेल भी ज्ञानवर्धक खिलौनों का हिस्सा हैं।
खिलौनों की अत्यंत प्राचीन समय से उपलब्धता इस तथ्य का प्रतीक है कि भारत में खिलौना निर्माण लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन था। कागज, धातु व लकड़ी से स्थानीय व घरेलू संसाधनों से बनाए जाते थे। मानव जाति के विकास के साथ-साथ खिलौनों के स्वरूप व तकनीक में भी परिवर्तन होता रहा है। इसीलिए जब रबर और प्लास्टिक का आविष्कार हो गया तो इनके खिलौने भी बनने लगे। ऑटो-इंजीनियरिंग अस्तित्व में आई तो चाबी और बैटरी से चलने वाले खिलौने बनने लग गए। नवें दशक में जब कंप्युटर व डिजीटल क्रांति हुई तो एकबार फिर खिलौनों का रूप परिवर्तन हो गया। अब कंप्युटर व मोबाइल स्क्रीन पर लाखों प्रकार के डिजिटल खेल अवतरित होने लगे हैं। हालांकि इनमें अनेक खेल ऐसे भी हैं, जो बाल-मन में हिंसा और यौन मनोविकार भी पैदा कर रहे हैं। चीन से इनका सबसे ज्यादा आयात होता है।
‘मन की बात’ की 68वीं कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वैश्विक खिलौना उद्योग सात लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है लेकिन इसमें भारत की हिस्सेदारी न्यूनतम है। यदि खिलौनों के निर्माण में हमारे युवा लग जाएं तो ग्रामीण व कस्बाई स्तर पर हम ज्ञान-परंपरा से विकसित हुए खिलौनों के व्यवसाय को पुनजीर्वित कर सकते हैं। ये खिलौने हमारे लोक-जीवन, संस्कृति-पर्व और रीति-रिवाजों से जुड़े होंगे। इससे हमारे बच्चे खेल-खेल में भारतीय लोक में उपलब्ध ज्ञान और संस्कृति के महत्व से परिचित होंगे। दूसरी तरफ रबर, प्लास्टिक व डिजिटल तकनीक से जुड़े खिलौनों का निर्माण स्टार्टअप के माध्यम से इंजीनियर व प्रबंधन से जुड़े युवा कर सकते हैं। खिलौना उद्योग से जुड़े परंपरागत उद्योगपति अत्यंत प्रतिभाशाली व अनुभवी है, इसलिए वे इस विशाल व्यवसाय में कुछ नवाचार भी कर सकमे हैं। कालांतर में ऐसा होता है, तो हम एक साथ तीन चुनौतियों का सामना कर सकेंगे। एक, चीन के वर्चस्व को चुनौती देते हुए, उससे खिलौनों का आयात कम करते चले जाएंगे। दो, खिलौने निर्माण में कुशल-अकुशल व शिक्षित-अशिक्षित दोनों ही वर्गों से उद्यमी आगे आएंगे, इससे ग्रामीण और शहरी दोनों ही स्तर पर आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। यदि हम उत्तम किस्म के डिजिटल-गेम्स बनाने में सफल होते हैं तो इस क्षेत्र में निर्यात के द्वार खुलेंगे और खिलौनों के वैश्विक व्यापार में हमारी भागीदारी सुनिश्चित होगी।
दरअसल, भारत में संगठित खिलौना बाजार शुरुआती चरण में है लेकिन इसमें बहुत तेजी से विकास हो रहा है। इसमें प्रतिवर्ष 10 से 12 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की जा रही है। फन स्कूल इंडिया कंपनी की इस बाजार में प्रमुख भागीदारी है। यह कंपनी विदेशी खिलौनों का वितरण भी भारत में करती है। इनमें हेसब्रो, लोगो, डिज्नी, वार्नर ब्रदर्स, टाकरा-टोमी और रेवेंसबर्ग ब्रांडस शामिल हैं। फिलहाल भारत में संगठित खिलौना बाजार खुदरा मूल्यों के आधार पर करीब तीन हजार करोड़ रुपए का है। खिलौना बाजार में पाठशाला जाने वाले बच्चों के लिए रोल-प्ले ट्वॉयज, सुपरमैन, बैटमेन, बेबी ऑल गॉन डॉल उपलब्ध हैं। बड़े बच्चों के लिए डिज्नी डॉल, आरसी कार, न्यू ब्राइट, रिमोट कंट्रोल कार और स्कॉटलैंड यार्ड जैसे खेल हैं। ये सभी खिलौने निर्माण की किसी विशेष तकनीक से नहीं जुड़े, इसलिए हमारे तकनीकीशियन इनका निर्माण भारत में आसानी से कर सकते हैं। अभी ये खिलौने चीन और ब्रिटेन से आयात किए जा रहे हैं। यदि हम इन खिलौने के निर्माण और वितरण में सफल हो जाते हैं तो भारत का खिलौना बाजार पांच सौ करोड़ का हो सकता है। खिलौना कारोबार की बढ़ती मांग को दृष्टिगत रखते हुए रिलायंस इंइस्ट्रीज की सहयोगी संस्था रिलायंस ब्राण्ड्स लिमिटेड ने ब्रिटेन के खिलौना ब्रांड ‘हैमलेज ग्लोबल होल्डिंग्स लिमिटेड’ का करीब 620 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया है। इसके 18 देशों में 167 स्टोर हैं। भारत के 28 शहरों में इसके 88 स्टोर हैं।
खिलौनों का एक खतरनाक पहलू भी है। भारतीय गुणवत्ता परिषद् (क्यूसीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में आयात होने वाले 66.90 प्रतिशत खिलौने बच्चों के लिए खतरनाक हैं। एक अध्ययन में क्यूसीआई ने पाया कि अनेक खिलौनों में मौजूद मैकेनिकल और केमिकल जांचों में गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बैटरी से चलने वाली खिलौनों की बैटरियां भी उच्च गुणवत्ता की नहीं पाई गईं। यदि खिलौने के ऊपरी हिस्सों में रसायन की परत गीलेपन से गलने लगती है और बच्चा इसे मुंह में लगा लेता है तो जहर शरीर में चला जाता है, जो कई बीमारियों को पैदा कर सकता है। फिजेट स्पिनर नामक खिलौना दुनिया में ऑनलाइन कंपनी ईबे द्वारा बेचा जा रहा है। यह खिलौना ऑटिज्म बीमारी के शिकार बच्चों को रोग से लड़ने के लिए बनाया गया था। ऐसे बच्चे तनावग्रस्त रहते हैं। इसे तनाव से मुक्ति का उपाय बताया गया था। लेकिन यह खिलौना बच्चों में सनक पैदा करने के साथ उनकी त्वचा को भी नुकसान पहुंचा रहा है। बीबीसी की टीम ने इसे बाल सुरक्षा के मानकों पर खरा नहीं पाए जाने पर इसकी बिक्री प्रतिबंधित किए जाने की मांग की थी। अब इसे वेबसाइट से हटा दिया गया है। भारत में भी इसकी बिक्री बड़े पैमाने पर हुई है।
प्रधानमंत्री ने घरेलू खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खिलौनों का उत्पादन स्वदेश में ही बढ़ाने का आह्वान करके चीन को बड़ा झटका दिया है। लेकिन सरकार वाकई चीनी उद्योग और उद्योगपतियों को पछाड़ना चाहती है और देसी उद्योगपतियों व नवाचारियों को प्रोत्साहित करना चाहती है तो नीतियों को उदार बनाने के साथ प्रशासन की जो बाधाएं पैदा करने की मानसिकता है, उसपर भी अंकुश लगाना होगा। तभी उद्यामिता विकसित होगी। दरअसल प्रोत्साहन और आत्मविश्वास ही आत्मनिर्भरता के द्वार खोलने की कुंजी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)