हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने शहर के 1785 वकीलों को अदालतों में उपस्थित नहीं होने पर अवमानना के नोटिस जारी करना शुरू कर दिए हैं। जिला कोर्ट में 25 चिह्नित मामलों की तीन महीने में सुनवाई किए जाने के मसले पर 23 से 28 मार्च तक वकील कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए थे। इस पर हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए वकीलों को नोटिस जारी किए हैं। वकीलों की संख्या जहां 1785 है, वहीं कुल 25 हजार मामले हैं जिनमें वकीलों ने उपस्थिति दर्ज नहीं कराई।
वकीलों के हाजिर नहीं होेने पर हाई कोर्ट ने नाम तलब किए थे। तकरीबन 800 वकील ऐसे हैं जो जिला कोर्ट में पैरवी करने के लिए हाजिर नहीं हुए थे। बाकी वकील ऐसे हैं जो हाई कोर्ट में लगे मामलों में पैरवी करने नहीं पहुंचे थे। वकीलों में निराशा इस बात की भी है कि 25 चिह्नित मामलों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से भी स्टेट बार काउंसिल के प्रतिनिधि मंडल की मुलाकात हुई, लेकिन नतीजा कुछ भी ठोस नहीं निकला। पांच दिन विरोध करने के बाद भी नतीजा सिफर रहा, उलटा हाई कोर्ट ने अवमानना के नोटिस जारी कर दिए। इसके पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर के समय भी हड़ताल हुई थी। वकीलों को नोटिस जारी किए थे।
लेकिन आखिर में नतीजा कुछ भी नहीं निकला था। इस दफा भी वकील बेफिक्र हैं। वकीलों का कहना है कि भले ही हाई कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिए हैं, लेकिन सजा किसी भी वकील को नहीं मिलेगी। चेतावनी देकर मामला खत्म कर दिया जाएगा।
बीच का रास्ता: वकीलों ने पक्षकारों से बनवा लिए शपथपत्र
अधिकांश वकीलों ने अपने पक्षकारों से ही शपथ पत्र बनवा लिया। इसमें उल्लेख करवा दिया कि 25 से 28 मार्च के बीच जो केस लगे हैं उनमें वकील उपस्थित नहीं हों। इस शपथ पत्र की वजह से वकील कार्रवाई की जद से बाहर हो गए हैं। पिछली दफा भी इसी तरह के शपथ पत्र वकीलों ने कोर्ट में पेश कर दिए थे। जिसकी वजह से वह अवमानना की कार्रवाई से बच गए थे।
वकीलों में ही दो फाड़
कार्य से विरत रहने के फैसले पर वकीलों में ही दो फाड़ हो गई थी। हाई कोर्ट में चार सीनियर एडवोकेट पैरवी करने पहुंच गए थे। कार्य से विरत रहने के फैसले के खिलाफ थे। काउंसिल ने इन्हें नोटिस भी दिए थे, लेकिन यह नोटिस बेअसर निकले।