हमारे सद्ग्रंथो ने कहां है कि मनुष्य मोह की निद्रा में सो रहा है और ये बात सत्य भी हैं कि सुबह से शाम तक किसके पास समय हैं जो जीवन और मृत्यु के बारे में सोचे। जब भी कोई मरने की घटना सुनाई देती हैं तो कोई दूसरा मरता है, इंसान को यही लगता है की हम तो कभी नही मरते। इसलिए वो चेतता नही है। बेहोशी में जीता है और अपना सारा कार्य करता रहता है। खा रहा हैं, पी रहा है, अपने ऑफिस जा रहा है, घर के काम कर रहा है जो कुछ भी कर रहा है लेकिन मृत्यु की बात सुनना भी उसे पसंद नहीं है क्योंकि *मृत्यु का मतलब ही ये है की जो कुछ भी पाने की कोशिश कर रहा है वो एक पल में ही सबकुछ समाप्त हो जायेगा।* इसलिए मृत्यु को बुरा शब्द समझते हुए कोई सुनना भी पसंद नही करता। कोई शमशान घाट की बात करे कोई राम नाम सत्य की बात बोल दे और जिन लोगो को ये बात बहुत बुरा लगता है। ये एक बहुत बड़ा आश्चर्य है जो लोगो को प्रतिदिन मरते हुए देखता है फिर भी चेतना नहीं।
इस विषय पे महाभारत की कथा का एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी है।
*यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?*
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि प्रतिदिन हमारी आंखों के सामने न जाने कितने लोग मृत्यु के मुख में समा जाते हैं, फिर भी हममें से बचे हुए लोग अमरता के सपने देखते रहते है। यही महान आश्चर्य है।इस उत्तर से यही शिक्षा मिलती हैं कि जन्म-मृत्यु नदी के दो किनारे हैं । जो पैदा हुआ है उसे इस संसार से जाना ही होगा। यह संसार तो एक सराय या धर्मशाला है यहां कि हर चीज आनी-जानी है।कहने का तात्पर्य हैं कि मृत्यु को याद रखने की भी जरूरत है और याद करवाने की भी जरूरत है।