१. धन
२. आवास
३. सन्तान
४. स्त्री-पुरुष का एक साथ रहना ( सहयोग )
लेकिन स्त्री, पुरुष को नचा रही है। पुरुष, स्त्री को नचा रहा है। दम्पत्ति नाच रहे हैं। इन सबको नाचने वाला एक परमेश्वर राम है। गोस्वामी जी कहते हैं-
*नट इव सबहि नचावत।*
*रामु मरकट खगेस वेद अस गावत॥*
( किष्किन्धाकाण्ड, रा.च.मा )
अर्थात् हे गरुण जी । वेद गाते है कि जैसे नट (मदारी) बन्दर को नचाता है, वैसे राम जी सब को नचा रहे हैं।
पुनः यह कथन है…
*उमा दारु जोषित की नाई।*
*सबहि नचावत राम गोसाई।।*
( किष्किन्धाकाण्ड, रा.च.मा. )
लंका तक नचाया। द्वापर में कृष्ण जी नाचे। गोपियों ने उन्हें गोकुल में नचाया। यह नृत्य बन्द नहीं हुआ है। आज भी हर स्त्री, पुरुष को नचा रही है। व्यासक्त् पुरुष नाच रहा है। नाचना उसकी नियति है। इस नियति को बदलना आसान नहीं है। नियति को मेरा नमस्कार ! नृत्य करते-करते जीव जब थक जाय तो उसे क्या करना चाहिये ? भगवान् से एक प्रार्थना करना चाहिये। गोस्वामी जी के शब्दों में –
*अब प्रभु कृपा करौं एहि भाँति।*
*सब तजि भजन करौं दिन राती॥*
( किष्किंधाकाण्ड, रा.च.मा. )
हे प्रभो ! अब तो इस प्रकार कृपा कीजिये कि सब छोड़कर दिन रात मैं आपका ही भजन करूँ ।