श्री पापांकुशा एकादशी व्रत और माहात्म्य

श्री पापांकुशा एकादशी व्रत और माहात्म्य

 

अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है उसको *”श्री पापांकुशा एकादशी”* कहते हैं जिसका व्रत परसों *3 अक्टूबर 2025, शुक्रवार के दिन है l

 

*पाप रूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम “पापांकुशा एकादशी” हुआ है l

इस एकादशी के 1 दिन पहले प्रभु श्री राम ने रावण का वध किया थाl चाहे रावण का स्वभाव तथा कर्म राक्षसों का था परंतु वंश तो ब्राह्मण का था अतः *ब्रह्म हिंसा के दोष निवारणार्थ मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने “पापांकुशा एकादशी” का व्रत किया*  लक्ष्मण, जानकी जी तथा भालू बंदरों ने भी उपवास किया और पाप रहित हो गए राजसूय, अश्वमेध यज्ञ हजारों करो परंतु एक “पापांकुशा एकादशी” व्रत के तुल्य नहीं हैl इसीलिए पापांकुशा एकादशी का व्रत अवश्य करें

 

एकादशी तिथि प्रारम्भ

 

कल 2 अक्टूबर 2025, गुरुवार शाम 07:10 मिनट से

 

*एकादशी तिथि समाप्त

 

परसों 3 अक्टूबर 2025, शुकवार शाम 06:32 मिनट पे

 

👉 *पारण का समय👇*

 

4 अक्टूबर 2025, शनिवार प्रातः 6:16 से 08:37 तक

 

{विशेष* : *एकादशी का व्रत सूर्य उदय तिथी 03 अक्टूबर 2025,शुकवार के दिन ही रखें* ….. 2 अक्टूबर गुरुवार शाम को एवं 3 अक्टूबर शुक्रवार व्रत के दिन खाने में चावल या चावल से बनी हुई चीज वस्तुओं का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें 🙏अगर आपने व्रत नहीं रखा है तो भी  नहीं खाना चाहिए ll

 

👉 *एकादशी माहात्म्य* 👇

 

*युधिष्ठिर ने पूछा* : हे मधुसूदन ! अब आप कृपा करके यह बताइये कि आश्विन के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका माहात्म्य क्या है ❓

 

*भगवान श्रीकृष्ण बोले* : राजन् ! आश्विन के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह *‘पापांकुशा’ के नाम से विख्यात है* । वह सब पापों को हरनेवाली, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, शरीर को निरोग बनानेवाली तथा सुन्दर स्त्री, धन तथा मित्र देनेवाली है । यदि अन्य कार्य के प्रसंग से भी मनुष्य इस एकमात्र एकादशी को उपवास कर ले तो उसे कभी यम यातना नहीं प्राप्त होती ।

 

*राजन् ! एकादशी के दिन उपवास और रात्रि में जागरण करनेवाले मनुष्य अनायास ही दिव्यरुपधारी, चतुर्भुज, गरुड़ की ध्वजा से युक्त, हार से सुशोभित और पीताम्बरधारी होकर भगवान विष्णु के धाम को जाते हैं* । राजेन्द्र ! *ऐसे भक्तगण मातृपक्ष की 10, पितृपक्ष की 10 तथा पत्नी या पति के पक्ष की भी 10 पीढ़ियों का उद्धार कर देते हैंllउस दिन सम्पूर्ण मनोरथ की प्राप्ति के लिए मुझ वासुदेव का पूजन करना चाहिए । जितेन्द्रिय मुनि चिरकाल तक कठोर तपस्या करके जिस फल को प्राप्त करता है, वह फल उस दिन भगवान गरुड़ध्वज को प्रणाम करने से ही मिल जाता है ।

 

*जो पुरुष सुवर्ण, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, जूते और छाते का दान करता है, वह कभी यमराज को नहीं देखता* । नृपश्रेष्ठ ! दरिद्र पुरुष को भी चाहिए कि वह स्नान, जप ध्यान आदि करने के बाद यथाशक्ति होम, यज्ञ तथा दान वगैरह करके अपने प्रत्येक दिन को सफल बनाये ।

 

जो होम, स्नान, जप, ध्यान और यज्ञ आदि पुण्यकर्म करनेवाले हैं, उन्हें भयंकर यम यातना नहीं देखनी पड़ती । लोक में *जो मानव दीर्घायु, धनाढय, कुलीन और निरोग देखे जाते हैं, वे पहले के पुण्यात्मा हैं* । पुण्यकर्त्ता पुरुष ऐसे ही देखे जाते हैं । इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ, *मनुष्य पाप से दुर्गति में पड़ते हैं और धर्म से स्वर्ग में जाते हैं ।*

 

जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन व्यतीत करता है वह लोहार की भट्टी की तरह सांस लेता हुआ निर्जीव के समान हीं है निर्धन मनुष्य को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धन वालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए ऐसे मनुष्य को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्य, कुलीन और रोग रहित रहते हैंl

 

*ओम नमो नारायणाय*

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