साधु सन्यासियो के अखाड़े

*साधु सन्यासियो के अखाड़े*

 

जो शास्त्र से नहीं माने, उन्हें शस्त्र से मनाया गया, वीरता से भरा है अखाड़ों का इतिहास, जानें इनका महत्व और उद्देश्य

 

अखाड़ों की शुरुआत आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है।

 

कभी सोचा है कि साधुओं के इन समूह को अखाड़ा क्‍यों कहा जाता है, जबकि अखाड़ा तो वह होता है जहां पहलवान लोग कुश्‍ती लड़ते हैं? आज के इस विश्लेषण में आपको बताएंगे कि आखिर यह अखाड़े हैं क्या? इनकी परंपरा और इतिहास क्या है? और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का चुनाव कैसे किया जाता है? अखाड़ों का क्या महत्व होता है और इनका क्या उद्देश्य होता है?

 

अखाड़ा का सीधा सा मतलब है जहां पहलवानी का शौक रखने वाले लोग दांव पेंच सीखते हैं। अखाड़े में बदन पर मिट्टी लगा कर ताकत आजमाते हैं और दुश्मनों को पटखनी देने की नई नई तकनीक ईज़ाद करते हैं। ये अखाड़े पहलवानी के काम आते हैं। बाद में कुछ ऐसे अखाड़े सामने आए जिनमें पहलवानी के बजाए धर्म के दांव-पेंच आजमाए जाने लगे। इनकी शुरुआत आदि गुरु कहे जाने वाले शंकराचार्य ने की थी।

 

कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है। देश के चार कोनों उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगरनाथपुरी और पश्चिम में द्वारिकापीठ की स्थापन कर शंकराचार्य ने धर्म को स्थापित करने की कोशिश की। इसी दौरान उन्हें लगा कि समाज में जब विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्तियों के जरिये इन चुनौतियों का मुकाबला काफी नहीं है।

 

शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके शरीर को सृदृढ बनाये और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किये जायें जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाए। ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा।

 

अखाड़ों का इतिहास

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प्राचीनकाल में धार्मिक अखाड़ों की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने मठ-मंदिरों और आम जनमानस को आक्रमणकारियों से बचाव के लिए किया था। आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म आठवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा अच्छी नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे आक्रमणकारी यहाँ से खजाना लूट कर ले गए। कुछ भारत की दिव्य आभा से मोहित होकर यहीं बस गए।

 

धर्म ध्वजा अखाड़ा की पहचान होती है। कुंभ पर्व पर जहां अखाड़ाें का शिविर लगता है, वहीं उनकी धर्मध्वजा भी लहराती रहती है। धर्म ध्वजा में अखाड़ा के आराध्य का चित्र अथवा धार्मिक चिह्न होता है,जबकि अखाड़ा के आराध्य की प्रतिमा शिविर के मुख्य स्थान में स्थापित होती है। फिलहाल देश में कुल 13 अखाड़े हैं जिसमें 7 शैव, 3 बैरागी और 3 उदासीन अखाड़े हैं।

 

ये अखाड़े देखने में एक जैसे लगते हैं लेकिन इनकी परंपराएं और पद्दतियां बिल्कुल भिन्न हैं। शैव अखाड़े जो शिव की भक्ति करते हैं, वैष्णव अखाड़े विष्णु के भक्तों के हैं और तीसरा संप्रदाय उदासीन पंथ कहलाता है। उदासीन पंथ के लोग गुरु नानक की वाणी से बहुत प्रेरित हैं, और पंचतत्व यानी धरती, अग्नि, वायु, जल और आकाश की उपासना करते हैं।

 

शैवों और वैष्णवों में शुरू से संघर्ष रहा है। शाही स्नान के वक्त अखाड़ों की आपसी तनातनी और साधु-संप्रदायों के टकराव खूनी संघर्ष में बदलते रहे हैं। वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं। वर्ष 1760 में शैव सन्यासियों और वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुंभ में भी शैव सन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे।

 

वर्ष 1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद सभी अखाड़ों ने मिलकर अखाड़ा परिषद का गठन किया। विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संतों के झगड़ों और खूनी टकराव की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए “अखाड़ा परिषद” की स्थापना की गई। इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनाव के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं।

 

शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े

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1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

 

2. श्री पंच अटल अखाड़ा, चैक हनुमान, वाराणसी, (उत्तर प्रदेश)

 

3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

 

4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती त्रयम्बकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)

 

5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, बाबा हनुमान घाट, वाराणसी, (उत्तर प्रदेश)

 

6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी, (उत्तर प्रदेश)

 

7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा, गिरिनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)

 

बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े

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1. श्री दिगंबर अनी अखाड़ा, शामलाजी खाकचौक मंदिर, साभंर कांथा, (गुजरात)

 

2. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा, हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)

 

3. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)

 

 

उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े है

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1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर,कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

 

2. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

 

3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

 

👉 महिला साधुओं का सबसे बड़ा अखाड़ा माईबारा अखाडा़ है जिसे पिछले कुंभ में जूना अखाड़े में शामिल किया गया। इसी तरह किन्नड़ अखाड़े को भी जूना अखाड़े में शामिल कर लिया गया है।

 

कुंभ से अखाड़ों का संबंध

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जिस तरह से बौद्ध धर्म के भिक्षुओं के इकट्ठा होने वाली जगह को मठ कहा जाता है। उसी तरह अखाड़े साधुओं के मठ माने जाते हैं। ऐसा भी मानना है कि पहले इन अखाड़ों की संख्या चार हुआ करती थी लेकिन आपसी मतभेद के चलते एक मत के साधुओं ने अपने अलग संगठन बना लिए। धीरे-धीरे अखाड़ों की संख्या बढ़कर 13 हो गई। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कई प्रमुख तिथियों पर गंगा में स्नान करना शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। इन सभी तिथियों पर कुंभ में साधु संत स्नान करते हैं, इसे ही शाही स्नान कहा जाता है।

 

सभी अखाड़ों का अलग नियम

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कुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग-नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां जुर्म करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही इनपर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है।

इन गलतियों की सजा

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अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है।

 

अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे भी निष्काषित कर दिया जाता है।

 

अखाड़ों से जुड़े नियम और कौन ले सकते हैं दीक्षा

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विभिन्न अखाड़ों के अपने-अपने नियम हैं। जैसे बात अगर अटल अखाड़े की करे तो इसमें केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई भी अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है। इसी तरह अवाहन अखाड़ा में अन्य अखाड़ों की तरह महिला साध्वियों को दीक्षा नहीं दी जाती है। निरंजनी अखाड़ सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा माना जाता है। इस अखाड़े में महामंडलेश्वरों की संख्या 50 है। अग्नि अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं।

 

महानिर्वाणी अखाड़ा के पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जिम्मेदारी होती है। वहीं आनंद अखाड़ा शैव अखाड़ा है जिसे आत तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाया गया है। इस अखाड़े में आचार्च का पद ही प्रमुख होता है। दिगंबर अणि अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है। इस अखाड़े में सबसे ज्यादा खालसा यानी 431 हैं। निर्मोही अणि अखाड़े में वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इनकी संख्या 9 है। निर्वाणी अणि अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है। इसी वजह से इससे जुड़े कई संत पेशेवर पहलवान रह चुके हैं। उदासीन अखाड़े का उद्देश्य सेवा करवा है। इस अखाड़े में केवल 4 मंहत होते हैं जो कभी कामों से निवृत्त नहीं होते है।

 

अखाड़ों में चुनाव

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जूना अखाड़ा👉 3 और 6 साल में चुनाव। 3 साल में कार्यकारिणी, न्याय से जुड़े साधुओं का। 6 साल में अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष।*

 

पंचायती निरंजनी अखाड़ा👉 पूर्ण कुंभ, अर्द्धकुंभ इलाहाबाद में छह-छह साल में नई कमेटी चुनते हैं।

 

पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा👉 5 साल में पंच परमेश्वर चुनते हैं।*

 

पंच दशनामी आवाहन अखाड़ा👉 तीन साल में रमता पंच। बाकी छह साल में चुनाव।*

 

पंचायती आनंद अखाड़ा👉 छह साल में होते हैं चुनाव।

 

पंच अग्नि अखाड़ा👉 तीन साल में चुनाव।*

 

पंच रामानंदी निर्मोही अणि अखाड़ा👉 छह साल में चुनाव।

 

यहां नहीं होते चुनाव

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पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा👉 पंच व्यवस्था नहीं। चार महंत होते हैं, जो आजीवन रहते हैं, रिटायर नहीं होते।

 

पंचायती उदासीन नया अखाड़ा👉 एक बार बने तो आजीवन रहते हैं।

 

पंचायती निर्मल अखाडा👉 चुनाव नहीं होते, स्थाई चुनते हैं।

 

पंच दिगंबर अणि अखाड़ा👉 चुनाव नहीं। एक बार चुनते हैं। उन्हें असमर्थता, विरोध होने पर पंच हटाते हैं।

 

पंच रामानंदी निर्वाणी अणि अखाड़ा👉 एक बार चुने जाने पर आजीवन या जब तक असमर्थ न हो जाएं।

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