पैसे है तो, सेफ है – यही देश की जनता का असल नारा

 

 

न आघाड़ी, न पिछाड़ी, न ही जात- न ही पात और न ही विकास की बात।

बात सिर्फ पैसों की बांट।

यही चुनाव जीतने का असली फार्मूला। जिस सरकार ने पैसे बांट कर दिखलायें – वही जीतेगी चुनाव।

लगातार सभी अखबारों और सोशल मीडिया की आज यही हेडलाइन रही है।

महाराष्ट्र झारखंड मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान कर्नाटक हिमाचल प्रदेश ने दिखा दिया कि आम जन मानस को रेवड़ी बांटों और चुनाव जीतों।

लोगों को जिस पार्टी पर भरोसा होगा कि यह नियमित रूप से पैसे बांटेंगे, वही चुनाव जीतेगा। आने वाले समय में दिल्ली पंजाब में पुनः आम आदमी पार्टी आ जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जनता समझ चुकी है जो पैसे वसूलते हैं, वही नियमित रूप से यदि पैसे बांटेंगे तो सत्ता की बागडोर उन्हीं को मिलेगी।

कम से कम हाल के चुनावों ने खुले तौर पर यह साबित कर दिया है। मुद्दे और नारें सिर्फ बोलने के लिए लेकिन पैसे बांटने की योजनाओं का ही सिर्फ खेल।

पक्ष बोलें एक है तो सेफ है और विपक्ष बोलें जुड़ेंगे तो जीतेंगे लेकिन असल में पैसे है तो सेफ है और पैसे बटेंगे तो जुड़ेंगे।

बटोगे तो कटोगे गलत नारा है, असल में बांटोगे तो जीतोगे सही नारा है।

देश का वोट बैंक चाहे सिर्फ पैसा – उसे न अर्थव्यवस्था से मतलब और न ही पिसते धनाढ्य और मध्यम वर्ग से और न ही व्यापारी से। जो पिछले ७० वर्षों से हो रहा है, वही आज भी हो रहा है – सिर्फ बांटने का प्रारूप और तरीका बदल गया है।

क्या किसी सरकार या पार्टी में दम है कि बिना रेवड़ी बांटें या उसकी घोषणा किए बिना चुनाव लड़ के दिखावे? क्या फ्री की योजना बंद करने की हिम्मत किसी सरकार में है? रोजगार या काम के बदले पैसे बांटना तो फिर भी समझ आता है, लेकिन महिला वोट बैंक का पैसे बांटकर इस्तेमाल करना आज के समय चुनाव जीतने का सुपर हिट फार्मूला बन चुका है।

एकता विकास जात-पात रोजगार मंहगाई जैसे मुद्दे रेवड़ी बांटने के समक्ष बौने साबित हो रहें हैं और हर राजनीतिक पार्टी इसका खुले आम उपयोग कर रही है। देश का जन सामान्य सिर्फ पैसों से ही जुड़ा हुआ है और यही देश की विडंबना भी है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने राम मंदिर की जगह रेवड़ी बांटने के वादों को तरहीज दीं और यही सच्चाई अब पूरे देश में लागू हो रही है।

आगे क्या – हर राज्य सरकार व्यापारियों और मध्यम वर्ग पर और टैक्स लादेंगी और फिर रेवड़ी बांटेंगी। जो सरकार को कमा कर दें, उसे और नोंचा जाएगा।

क्या मध्यम वर्ग को अधिकार नहीं कि उसे सस्ता इलाज, शिक्षा, आवागमन, घर, ख़ान पान, पेट्रोल डीजल आदि मिलें?

*समय ही बताएगा क्या सही और क्या ग़लत, लेकिन फिलहाल खुश हो जाएं कि आप एक है तो सेफ है!*

*सीए अनिल अग्रवाल

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