भारत के कल्पवृक्ष….. रतन जी टाटा

रतन टाटा ने अपनी शुरुआती शिक्षा मुंबई के कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय (अमेरिका) से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया।

रतन टाटा ने 1962 में टाटा समूह में काम करना शुरू किया। शुरू में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर एक साधारण कर्मचारी के रूप में काम किया। 1991 में, जब जे.आर.डी. टाटा ने उन्हें टाटा समूह का चेयरमैन बनाया, तब समूह के कई हिस्सों में पुरानी संरचनाओं और परंपराओं का बोलबाला था। रतन टाटा ने इन संरचनाओं में बदलाव किए, आधुनिकरण किया, और टाटा समूह को एक वैश्विक कंपनी के रूप में स्थापित किया।

रतन टाटा अपने परोपकारी कार्यों के लिए भी जाने जाते थे । उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास के लिए बड़े पैमाने पर योगदान दिया था l टाटा ट्रस्ट के माध्यम से, उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों की मदद के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें शुरू की थी ।

रतन टाटा को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । उन्हें 2008 में पद्म विभूषण और 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। वे कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के बोर्ड में भी शामिल थे और विश्वभर में उनके नेतृत्व और नैतिक व्यापारिक सिद्धांतों की सराहना की गई।

रतन टाटा अपने सादगी भरे जीवन के लिए मशहूर थे । वे अविवाहित थे और अक्सर सादगी और अनुशासन को अपने जीवन का हिस्सा मानते थे । उनका मानना था कि व्यापार केवल लाभ कमाने का जरिया नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी भी है।

रतन टाटा न केवल एक सफल उद्योगपति थे बल्कि वे नैतिकता, परोपकार, और देश के प्रति समर्पण का प्रतीक थे । उन्होंने भारत में उद्यमिता और सामाजिक जिम्मेदारी की नई परिभाषा स्थापित की। देश अपने इस सपूत को सदैव नमन करता रहेगा l

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