लोकतंत्र में चुनाव इवेंट नहीं..

 

निर्मल सिरोहिया*

डिजिटल टेक्नोलॉजी ने हमारी जीवन शैली को काफी हद तक प्रभावित किया है। कुछ चीजें आसान हुई है, तो कुछ अधिक क्लिष्ट हो गई है। इसका असर हर क्षेत्र में देखा जा रहा है। राजनीति, राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञ कोई भी इससे अछूते नहीं हैं। आज लगभग हर चौथा नेता और दल ऐसी ही तकनीक आधारित फर्मों और इवेंट मैनेजमेंट करने वालों के भरोसे अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे हैं। लेकिन राजनीतिक समझ का अनुभव कहता है कि इस तरह के इवेंट मैनेजमेंट आपके किसी कार्य अथवा इवेंट को थोड़ा चमकदार तो बना सकते हैं, लेकिन आपको चुनाव नहीं जिता सकते। अपवाद स्वरुप कोई चुनाव जीते भी गए हैं, तो उस परिपेक्ष्य में तत्कालीन परिस्थितियों का आंकलन किया जाना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय इंडिया शाइन और फील गुड के कथित मैनेजमेंट की जनता ने हवा निकाल दी थी। कर्नाटक सहित कई राज्यों के परिणाम भी एक उदाहरण है। अपने शहर इंदौर में कई नेता ऐसे इवेंट मैनेजमेंट के भरोसे अपनी राजनीतिक पारी शुरू होने के पहले खत्म कर चुके हैं। इंदौर के एक क्षेत्रीय विधायक का विधानसभा चुनाव इसका अपवाद है, क्योंकि उनकी पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि और तात्कालीन परिस्थितियां उनके पक्ष में थी। वहीं उनकी व्यक्तिगत मेल-मिलाप की क्षमता और मोहक मुस्कान के साथ विनम्रता ने मतदाताओं को प्रभावित किया। लेकिन एक अन्य चुनाव में परिणाम कथित इवेंट मैनेजमेंट की पोल खोलने के लिए काफी है। इन दिनों चुनावी समर में एक बार फिर ऐसे ही कथित इवेंट मैनेजमेंट करने वाले खिलाड़ी धनपति नेताओं से खूब पैसा ऐंठ रहें हैं। जबकि हकीकत यह है कि चुनाव में जीत के दो ही मजबूत आधार होते हैं, एक प्रत्याशी का व्यक्तिगत जनाधार और लोकप्रियता तथा दूसरा उसके संगठन की लहर और लोकप्रियता। बीते सात दशकों की राजनीति पर नजर डालें तो यही दो बड़े कारण स्पष्ट होते हैं। लेकिन आज के दौर में इनसे विलग राजनीति में सफलता पाने के इच्छुक नेता कथित इवेंट मैनेजमेंट करने वालों के भरोसे अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने में जुटे हैं। उनकी इस लालसा का ये इवेंट मैनेजमेंट कर्ता-धर्ता खूब फायदा उठा रहे हैं और जमकर धन ऐंठ रहें हैं। बीते पांच सालों से तो आधे-अधूरे ज्ञान की यह लूट खूब फल-फूल रही है। इस पर प्रशासन और चुनाव आयोग की भी कोई रोक-टोक नहीं है। यही वजह है कि ये बैखौफ होकर लोकतंत्र के इस महायज्ञ को इवेंट बनाकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक उड़ा रहें हैं।

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