चन्द्रयान-3″ की सफलता पर बधाईंयों के ट्विट से राजनीति का पोस्टमार्टम

साइंटिफिक-एनालिसिस:

 

चन्द्रयान-1 (वर्ष-2008) की कामयाबी के स्वर्णिम इतिहास पर चन्द्रयान-2 (वर्ष-2019) की नाकामी के धरातल पर चन्द्रयान-3 (वर्ष-2023) की चन्द्रमा पर सफल लैंडिंग पर भारत के वैज्ञानिकों को खड़े होने, गिरकर व फिर खड़े होने (✔️) के हौंसले पर अधिकांश लोगों की तरह हमारी तरफ से भी राष्ट्रभक्त दिखने के लिए शुभकामनाएं और कई राजनेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों, बाबु वाले सरकारी वैज्ञानिकों इत्यादि-इत्यादि के मन में नये घोटालों (2G स्पैक्ट्रम जैसे) व सत्ता पाने का रास्ता बनाने की खुशी से दिल के अन्दर फोड़े लडडू के लिए विशेष तौर पर शुभकामनाएं |

आप सोच रहे हैं की हम प्रत्येक अवसर पर नकारात्मक बात करते हैं लेकिन सच्चाई यही हैं क्योंकि साइंटिफिक-एनालिसिस राजनीति के चश्में से विज्ञान को नहीं देखता और सोशियल-इंजनियरिंग जैसे नये शब्दों की स्थापना से राजनैतिक-विज्ञान के नये पाठयक्रम को शुरू कर देश की नई पीढी को अंधकार के गर्त में धकेल कर कर विज्ञान के माथे पर अभिशाप शब्द को चस्पा करके उस पर न तो निबंध लिखवाता हैं और नहीं खबरें चलवाता हैं | हम तो टेलिस्कोप के माध्यम से माइक्रोस्कोप द्वारा आकार को गुणात्मक रूप से बडा कर देने के गुण से विज्ञान के सिद्धांतों का इस्तेमाल कर राजनीति की व्याख्या व विश्लेषण करते हैं |

आपको यह लगता है की यह आम नागरिक, नौकरी पेशा और व्यवसाही लोगो को छोड़कर यह ख़ुशी का बहुत बड़ा मौका है जबकि सच्चाई यह है की यह भारत के राजनेताओ, उच्च संवैधानिक पदो पर आसीन लोगों, मंत्रियो, सांसदों, विधायको व सरकारी कागजो में कहे जाने वाले इनके सलाहकारों के गाल पर जबरदस्त तमाचा है | जिसे यह निर्लज्जता के साथ बिना ठकार लिए हजम करने का प्रयास करके अपने अपने दलो की दहली से बाहर निकल कर वैज्ञानिको को मुफ्त वाली बधाई दे रहे है ताकि जनता इनके चहरे पर बनावटी मुस्कान व रटी रटाई बयानबाजी के बीच इनके गाल पर छपे अंगुलियोंनुमा राकेट के निशान न देख पाये और उसके बारे में न पूछ पाये |

आप सोच रहे होंगे बात न बात का नाम और उप्पर से कलम और सूखने लगी स्याही के माध्यम से जुते चप्पल वाली पैरम्बर | अब आप स्वयं विचार करे सैकडों प्रकाश वर्ष दूर चन्द्रमा पर अब तक दूसरे देशों के 24 इंसान कदम रख चुके हैं वहा न हवा, पानी का पता है और न कोई इन्सान, जानवर, जीव-जंतु, पेड़-पौधें, जीवाणु-विषाणु, शैवाल-कवक का पता है, न किसी भगवान / देवता / अल्लाह / यीशु का मूर्त रूप जो विमान का दरवाजा खोल मदद कर दे और आधे के करीबन सरकारी टैक्स की कीमत वाला पैट्रोल-डीजल (ईंधन) विमान में भर दे | वहा न कोई x , y , z सिक्योरिटी वाले ट्रेंड आधुनिक हथियार बंद सिपाही है जो प्रत्येक पल आपके आगे शेर की टोपी लगाकर सीना फुलाये ढाल बनकर खड़े रहे | आख़िरकार वे भी जिन्दा ईन्सान है जो पांच वर्षों के कम समय से लगातार प्रतिदिन घंटों तक नौकरी करके चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा की धरती पर सफलतापूर्वक उतारने का काम करा |

हर रोज की पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक विषम परिस्तिथियों के बाद भी वैज्ञानिक जमीन पर एक जगह बैठकर ऐसी व्यवस्था बनाकर की बोर्ड और माउस से सबकुछ नियन्त्रित कर लेते है | जबकि इस धरती के भू भाग के जिम्मेदार लोग सब कुछ होते हुये कई वर्षो में एक व्यवस्था भी नहीं बना सके जिसके माध्यम से देश में अपराधिक, सामाजिक समस्या खत्म हो सके व दैनिक जीवन के काम को छोडो व्यवस्था के कारण उत्पन हुये सरकारी कागजी काम भी आसानी से हो सके |

ऐसी व्यवस्था बनाने की जिमेदारी इनकी है तब भी यहाँ अपना राजनैतिक वाला रंग दिखाना नहीं भूलेंगे और कहेंगे सविधान के नाम से व्यवस्था हमने नहीं बाबा साहेब आंबेडकर ने बनाई | आप जाकर उनको कहो हमे नहीं , हम तो आपकी मदद करना चाहते है और सरकारी खर्च पर उनके पास जाने का इंतजाम करने को तैयार है | अब इन भले, सभ्य, हितैषी और सोम वचन बोलने वाले को कौन समझाए की संविधान में इतने छेड़ या परिवर्तन कर डाले की अब ठीकरा बाबा साहेब अम्बेडकर पर नहीं फोड़ सकते और उनके दलित संप्रदाय के लोगो को इतना दुखी कर डाला की उनके उत्पाद का डर बताकर लोगो का मुंह खोलने ही नहीं दे |

अब बात करते हैं रातोंरात कुकुरमुत्ते की तरह निकल आने वाले गोदी मीडिया की इस साइंटिफिक-एनालिसिस के सच को छुपाने के लिए हम पर व्यक्तिगत जुबानी हमला करने की कोशिश में भौतिक सुख-सुविधाओं के बखान की झड़ी लगा देंगे | हम उन्हें इतना ही कहेंगे कि यह सब विज्ञान के प्रतिफल हैं व मानवीय जीवन के उत्थान व जीवन स्तर को सुधारने का मूल काम व्यवस्था, सत्ता, सरकार व राजनेताओं का हैं | आप दुनिया के किसी भी मानवीय सूचकांक की सूची उठा कर देख ले भारत को शीर्ष पर दिखाने के लिए नीचे से उल्टा गिनना पडेगा |

यदि आप भी वैज्ञानिको को बधाई देना भूल गए है तो कोई बात नहीं हम आपकी तरफ से बधाई दे देंगे आख़िरकार 21 वी सदी (विज्ञान की ) में जनता के प्रतिनिधि बनने में जितना सुख हैं उतना किसी और में है क्या ? यदि आप दिल से बधाई दे रहे है तो थोड़ा बहुत धन भी दे ताकि बहुत बड़ा आयोजन करके उनको अच्छे खुशबु वाले 10 नहीं 1000 रुपये वाले फूलो की माला बनाकर पनायेगे | आप तो आमंत्रित है ही आख़िरकार तालियों की गूंज कहा से आएगी जिसे कैमरा और माइक रिकॉर्ड कर सके | यदि कर्मचारी है तो बिना बुलाये आना है आखिरकार सैलरी लेनी है या नहीं | आपके सिरो की गिनती के आधार पर ही नया वार्षिक दिवस या नई सरकारी छूटी की घोषणा होगी | इस आलेख की सभी जिम्मेदारी लेखक की है l

लेखक: शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

व्यक्तिगत रूप मे स्वयं पेटेंट हासिल करने वाले मध्यप्रदेश इतिहास के प्रथम व्यक्ति

 

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