cyber crime:फर्जी हाथों में असली खाते, साइबर ठगी का बन रहे जरिया

 भोपाल। नियमों के सख्त होते जाने के साथ साइबर ठग इनसे बचने के नए-नए तरीके निकालते जा रहे हैं। नया खाता खोलते समय नो योअर कस्मटर (केवायसी) की प्रक्रिया में सख्ती होने पर ठगों ने असली खाते खुलवाकर उनमें फर्जी मोबाइल नंबर जोड़ने का तरीका अपनाया है। इसके तहत ठग गिरोह वास्तविक व्यक्तियों के माध्यम से खाते खुलवाए जाते हैं। लेकिन इन खातों में असली जानकारी के बीच ठग अपना मोबाइल नंबर जोड़ देते हैं। फिर इस नंबरों के माध्यम से खाते में यूपीआइ और इबैकिंग शुरू कर करोड़ों की ठगी को अंजाम दिया जाता है। रुपयों के लेनदेन की पड़ताल करते हुए जब पुलिस खाताधारकाें तक पहुंचती है तब मालूम पड़ता है कि उन्हें अपने खाते में इबैकिंग शुरु होने और लेनदेन की जानकारी ही नहीं होती, इस बीच खाते से जुड़े ठगों के नंबर भी बंद हो जाते हैं और साइबर ठग पहुंच से दूर हो जाते हैं।

साइबर ला एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी बताते हैं, आरबीआई का नियम है जो खाता ईकेवायसी से खुलेगा उसमें एक साल तक केवल एक लाख का ही ट्रांजेक्शन ही हो सकेगा इसका पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है। साइबर ठग दूसरों के नाम पर खाते खुलवाते हैं, कई मामलों में उन व्यक्तियों को प्रत्यक्ष तौर पर शाखा भेजकर केवायसी भी कराते हैं, लेकिन इस दौरान असली दस्तावेजों के बीच मोबाइल नंबर अपना दर्ज करा देते हैं। निश्चित तौर पर यह नंबर भी किसी दूसरे के नाम पर चालू कराया गया होता है जिसे किसी अन्य के खाते में दर्ज कराकर नेटबैकिंग यूपीआई आदि चालू कराकर ठगियों को अंजाम दिया जाता है। बाद में ऐसे व्यक्ति बोलते हैं, मेरा नंबर ही नहीं है, मैं नेट बैकिंग कैसे चालू करुंगा? उन्हें लगता है ऐसा कहकर जिम्मेदारी खत्म हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं होता है, अपनी लापरवाही या लालच के चलते ऐसे कम जागरुक व्यक्ति अपराधी बन जाते हैं।

आनलाइन जाब और लोन एप से अपराध करने वाले ऐसी साइट्स को वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क से चला रहे हैं वहीं रुपयों का लेनदेन असल खातों से हो रहा है, लेकिन जब पुलिस ऐसे खाता मालिकाें का दुरुपयोग भी साइबर ठग कर रहे हैं। जब पुलिस खाता मालिकों तक पहुंचती है तो उनके पास पासबुक, चेकबुक तो होती है लेकिन खाते से आनलाइन ट्रांजेक्शन किसी और नंबर से हो रहा होता है जिसकी उन्हें जानकारी ही नहीं होती। ऐसे व्यक्ति चंद हजार के लालच में अपराधियों का मोहरा बनने के साथ आरोपित भी बनते हैं लेकिन असल साइबर अपराधियों तक पहुंचना एक चुनौती बन जाता है। बैकिंग एजेंसियां नियमों का सख्ती से पालन करें वहीं जनता जागरुक होगी तब ऐसे दुरुपयोग रोका जा सकेगा।

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