बगैर पॉवर के उपमुख्‍यमंत्री बने टीएस सिंहदेव!

 

*क्‍या उपमुख्‍यमंत्री बनाकर सिंहदेव का कद छोटा किया बघेल ने?*

*विधानसभा चुनाव में हार के डर से भूपेश बघेल ने आलाकमान से की थी सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने की सिफारिश*

*विजया पाठक:
हाल ही में छत्‍तीसगढ़ में एक राजनीतिक ड्रामा हुआ है। इस ड्रामे में प्रदेश के एक कददावर और प्रभावी कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव बाबा को उपमुख्‍यमंत्री बनाया गया है। यह वहीं टीएस सिंहदेव हैं जो 2018 में मुख्‍यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे और 2018 का चुनाव जीतने में इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका रही थी। इसके साथ ही 2018 की रणनीति टीएस सिंहदेव ने ही बनाई थी। जिसके बलबूते ही राज्‍य में कांग्रेस की सरकार बनी। जब छत्‍तीसगढ़ में मुख्‍यमंत्री बनाने की बात आयी और विधायक दल की बैठक हुई तो उस बैठक में टीएस सिंहदेव समर्थक विधायकों की संख्‍या बहुत ज्‍यादा थी। जिसका प्रमुख कारण यह था कि टीएस बाबा के समर्थक विधायक पूरे राज्‍य में जीते थे जबकि भूपेश बघेल केवल अपने क्षेत्र तक ही सीमित थे। टीएस बाबा राज्‍य में काफी लोकप्रिय नेता हैं और इनकी छवि साफ और स्‍वच्‍छ है। राज्‍य की जनता भी यही मानकर चल रही थी कि टीएस सिंहदेव ही मुख्‍यमंत्री बनेंगे लेकिन वर्तमान मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने दांवपेंच खेलकर खुद मुख्‍यमंत्री बन गए। अब विधानसभा चुनाव को चंद महिने ही बचे हैं और टीएस सिंहदेव को उपमुख्‍यमंत्री बनाकर उनका कद ही अपने से छोटा कर दिया। दिलचस्‍प तो यह है कि आज एक सप्‍ताह से ज्‍यादा समय हो गया है अभी तक उन्‍हें कुछ भी अधिकार नहीं दिये गये हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में असंतोष को कम करने और डैमेज कंट्रोल करने के उददेश्‍य से उन्‍हें यह पद दिया गया है। 13 जून को अंबिकापुर में आयोजित कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन में टीएस सिंहदेव ने प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के सामने कह दिया था कि उन्होंने दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों से मिले थे, जिनसे भाजपा में जाने का ऑफर मिला था, लेकिन वे भाजपा में नहीं जायेंगे। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के उच्च कार्यकर्ताओं को इस बात की जानकारी पहुंचा दी गई है कि राज्य की जनता भूपेश बघेल के भ्रष्टाचारी तंत्र से पूरी तरह नाखुश है। यही चलता रहा है तो विधानसभा चुनाव में पार्टी की वापसी मुश्किल है। इस बात की जानकारी लगते ही पार्टी नेतृत्व ने सिंहदेव के हाथ में चुनाव की बांगडोर देने पर विचार किया और उन्हें अधिक पावरफुल बनाने के लिये उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि वर्तमान में भूपेश बघेल पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक रही है और पार्टी हाईकमान को लगा होगा कि कहीं बघेल की गिरफतारी होती है तो सिंहदेव को सीएम बना दिया जायेगा।

*पंचायत मंत्री पद से दे चुके हैं इस्तीफा*
टीएस सिंहदेव ने यह भी सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में भूपेश सरकार की वापसी आसान नहीं है। इस सरकार में सत्ता से संगठन खुश नहीं है। इसके पूर्व भी वे प्रदेश की भूपेश सरकार से अपनी नाराजी खुलकर जाहिर कर चुके हैं। जुलाई 2022 में उन्होंने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय से इस्तीफा दिया था। वे वर्तमान में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण व स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सिंहदेव अगले चार महीने में चाहकर भी जनता के हित में कोई निर्णय नहीं ले सकते। क्योंकि अगले ही दो महीने में आचार संहिता लग जायेगी और उसके बाद राज्य के सभी विकास से जुड़े कार्य चुनावी परिणाम आने तक ठहर जायेंगे।

*2018 में बड़ी भूमिका में थे सिंहदेव*
वर्ष 2018 में हुए विधासनभा चुनाव में सिंहदेव की न सिर्फ अहम भूमिका रही है, बल्कि वे सीएम पद के लिये सीधे दावेदार थे। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र समिति के टीएस सिंहदेव अध्यक्ष थे। टीएस सिंहदेव पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में एक थे। कांग्रेस हाईकमान ने जब भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया तो ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला सामने आया। स्वयं सिंहदेव ने कभी सीधे तौर पर तो नहीं कहा, लेकिन कई बार इशारों में बताया कि कांग्रेस हाईकमान ने ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तय किया था।

*जनता के बीच लोकप्रिय हैं बाबा*
जनता के बीच में बाबा के रूप में लोकप्रिय प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत भले ही नगरपालिका अध्यक्ष पद से की हो, लेकिन सरगुजा राजपरिवार के होने के नाते उनकी राजनैतिक हैसियत इससे कहीं अधिक रही। टीएस सिंहदेव ने वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद अंबिकापुर सीट सामान्य होने के बाद पहला चुनाव 980 मतों से जीता। दूसरे चुनाव में जीत का अंतर 19400 एवं तीसरे चुनाव में करीब 40 हजार पहुंच गया। वर्ष 2013-2018 तक वे नेता प्रतिपक्ष रहे, जो टीएस सिंहदेव के लिहाज से बेहतर कार्यकाल रहा। भूपेश सरकार में शुरुआती कुछ माह बाद सिंहदेव अपनी ही सरकार में इस तरह से उपेक्षा के शिकार हुए कि उन्हें कई बार सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि इस सरकार में हमारी चल नहीं रही है।

*सरगुजा संभाग में 14 विधानसभा सीटों पर फोकस*
सरगुजा टीएस सिंहदेव का गढ़ माना जाता है। सरगुजा संभाग की अंबिकापुर विधानसभा सीट से टीएस सिंहदेव लगातार तीसरी बार विधायक हैं। बीते दिनों सोशल मीडिया में टीएस सिंहदेव का एक बयान वायरल हुआ था। जिसमें वह कहते दिख रहे थे कि 2018 में हमने सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में सभी 14 सीटों पर कांग्रेस की जीत पर संशय है। टीएस सिंहदेव ने कांग्रेस की जीत पर भी सवाल उठाया था। ढाई-ढाई साल के सीएम फॉर्म्युले को लेकर टीएस सिंहदेव कई बार अपनी नाराजगी जता चुके थे।

*चुनाव लड़ने से भी किया था इंकार*
टीएस सिंहदेव ने 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर भी संशय वाला बयान दिया था। बाबा ने कहा था कि मैं विधानसभा चुनाव के लिए पहले से तैयारी शुरू कर देता हूं लेकिन इस बार अभी तक तैयारी नहीं की है। कार्यकर्ताओं और समर्थकों से चर्चा के बाद ही मैं इस बार का चुनाव लड़ने का फैसला करूंगा।

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