राजनीति में जलेबीवाद का आगमन

 

-ध्रुव शुक्ल:
जब नेता लोकहित के विचारों को त्यागकर केवल अपनी सत्ता की चिन्ता करने लगते हैं तभी राजनीति में जलेबीवाद की शुरुआत होती है। राजनीतिक दलों के नेता जनता के बीच अपने-अपने दलों की छोटी-बड़ी गुमटियां सजाकर केवल अपनी बातों के पनीले शीरे में डूबीं जलेबियां बनाने लगते हैं। उनमें राजनीति के सर्वोच्च जलेबीवादी प्रवर्तक से आगे निकलने की होड़ लगने लगती है। जलेबीवाद का प्रमुख सिद्धांत यह पाया गया है कि — एक ही प्रकार की राजनीतिक चाशनी में अपनी-अपनी जलेबियां डुबाकर हर हाल में सत्ता प्राप्त की जाये।

समाज में ऊंचे, मध्यम और पिछड़े वर्ग की तरह जलेबियां भी तीन प्रकार की होती हैं। उड़द की दाल से बनी और गायछाप रंग में रंगी इमरती घी से भरी गरम कड़ाही में अचानक किसी फूल-सी खिलकर तैरती हुई ऊपर आ जाती है। यह जलेबी ऊंचे राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक वर्गों को आजकल खूब पसंद है। गोरी मैदा में ख़मीर उठाकर कड़ाही में तैरती जलेबियां रोज़ सबेरे शहरी मध्यवर्ग के नाश्ते में जगह बनाये हुए हैं। देशी मावे से बनी कत्थई-काली जलेबियां गरीब गांवों के मेले-ठेलों में खूब बनती हैं। इन पर बैठे बर्र-चीटों को देखकर लगता है कि जैसे जलेबीवादी इनका खून चूस रहे हों।

सत्ता पाने के राजनीतिक जलेबीवाद ने इमरती को ऊंचा उठाकर गोरी और कत्थई-काली जलेबियों के बीच विभेद पैदा करके शहरी गोरी जलेबियों को इमरती के पक्ष में फुसला लिया है। गांवों की कत्थई-काली जलेबियां कभी इस दल के और कभी उस दल के पनीले शीरे में डूबती-उतराती रहती हैं । उन्हें जात-पांत के नाम पर खुलेआम चूसने वाले जलेबीवादी बर्र-चीटों से अब तक छुटकारा नहीं मिला। जलेबीवादी उन्हें इस भ्रम में डुबाये रहते हैं कि एक दिन काली-कत्थई जलेबियों को भी इमरती होना है।

राजनीति में आये इस जलेबीवाद पर विचार करते हुए यही लग रहा है कि जनता को इमरतियां खिलाने की झूठी आशाओं में भरमाकर केवल जलेबीदार बातें बनाना ही जलेबीवाद है। वे उस गुलाब जल की खुशबू से भरी मीठी जलेबियां कहीं नहीं हैं जिन्हें एक दिन जनता बराबरी से बैठकर खा सकेगी। सत्ता की इमरती पाने की इच्छा भी ऐसा जागतिक भ्रम है जिसकी चाहत में जलेबीवादी नेता एक-दूसरे को धकेलकर न जाने किस राजधानी की ओर दौड़े चले जा रहे हैं?

ईश्वर की मृत्यु, इतिहास का अंत और विचारों से विदाई की घोषणाएं तो बीसवीं सदी में हो गयी हैं। अब इक्कीसवीं सदी — साधनों की मृत्यु, धर्मों के पतन और परहित की विदाई के लिए जानी जायेगी। राजनीतिक जलेबीवाद इसलिए अपनी जड़ें जमा पा रहा है क्योंकि जलेबीवादियों की कुंदमति से उत्पन्न जीवन विरोधी कुतर्कों का प्रवर्तन सामाजिक जीवन में बढ़ती संवेदनात्मक लापरवाहियों से भरी भीड़ के बीच ही हो सकता है।

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