ताकत लगी घटने तो खैरात लगी बंटने

 

श्रीगोपाल गुप्ता:

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमों ममता बनर्जी अपने अख्खड़पन और दो टूक कहने के लिये जानी जाती हैं! स्वभाव से बड़ी जिद्दी और हठी सुश्री बनर्जी की एक विशेषता यह भी है कि वे कुछ भी कहने के बाद यू-टर्न नहीं लेती! मगर अब हालात तेजी से बदल रहे हैं,कभी कांग्रेस से कोई संबंध न रखने और अकेले की दम पर चुनाव लड़ने का दम ठोंकने वाली ममता अब कांग्रेस के प्रति काफी हद तक बदल रही हैं और अगामी लोकसभा चुनाव-2024 साथ में लड़ने की बात कह रही हैं! मगर जैसा कि उनका स्वभाव है कि कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने का हुं-कारा तो भर रही हैं मगर साथ में शर्त भी जोड़ रही हैं मगर लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता और पश्चिम बंगाल के कांग्रेसी कद्दावर नेता श्री अधीर रंजन चौधरी को उनकी शर्त से कोई सरोकर नहीं है! बनर्जी का कहना है कि देश में कांग्रेस का जनाधार 200 लोकसभा सीटों पर है,वहां तृणमूल उसका सपोर्ट करेगी बदले में कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में हमारे खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहिये! इस पर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ये कहते हुये पलटवार किया कि ममता ये तय नहीं कर सकती कि हम कितने सीटों पर चुनाव लड़ेंगे!हालांकि ममता ने इस प्रस्ताव रखने में अब काफी देर कर दी है क्योंकि उनकी पार्टी अभी हाल ही में कांग्रेस का गोवा,मेघालय त्रिपुरा में जितना नुकसान कर सकती थीं,कर चुकी अब इसके आगे वे कांग्रेस को कोई नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं है!

आखिरकार कभी वाममोर्चा,भाजपा और कांग्रेस को तराजू के एक ही पलड़े में रखने वाली ममता की बदली इस सोच की पीछे राजनीतिक पंडितों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि कर्नाटक में कांग्रेस की धमाकेदार जीत से बनर्जी के रुख में ये बड़ा परिवर्तन आया है? हो सकता है कि यह एक कारण हो? मगर मुख्य कारण है पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जमीन खिसकना, कांग्रेस-वाममोर्चा का मुस्लमान मतदाताओं में बढ़ता जनाधार और राज्य में भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता जनाधार! हकीकतन पश्चिम बंगाल में 2011की जनगणना के मुस्लमान जनसंख्या 27 प्रतिशत थी जो वर्तमान में 30 प्रतिशत के भी उपर निकल गयी है!प्रदेश की कुल 294 विधानसभा सीटों में से 46 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 50 प्रतिशत से भी ज्यादा हैं जबकि 16 सीटों पर 40 से 50 प्रतिशत है मुस्लिम मतदाता हैं और यही बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत है! मगर इसी साल मार्च में मुस्लिम बहुल मुर्शीदाबाद जिले के सागरदिघी में हुये विधानसभा के उप चुनाव में कांग्रेस (जो गत 2021 के विधानसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी) ने वामपंथियों के साथ मिलकर तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी को धूल चटा दी! कांग्रेस के उम्मीदवार ने सन् 2011 से इस सीट पर जीतती आ रही तृणमूल को 23 हजार से भी ज्यादा मतों से पटकनी दी थी! इस हार से जहां ममता बनर्जी राज्य में कांग्रेस-वाममोर्चा के बढ़ते मत प्रतिशत की चिंताओं से घिर गयी! वहीं भाजपा के हिंदु-मुस्लिम कार्ड से पहले से ही चिंतित बनर्जी अपने मूल मुस्लिम वोटरों में पड़ी इस भंयकर दरार से दहशत में आ गयी हैं! अब उनको यह अहसास हो चला है कि कांग्रेस मुस्लिमों में वापसी कर रही हैं और बिला मुस्लिम मतदाताओं का पूरा समर्थन मिले वे भाजपा का सामना करने की स्थिति में नहीं है! यही वो कारण है कि घटती ताकत के कारण अब ममता खुद ही पहल करती हुये कांग्रेस को अंगीकार करने के लिये बेताब हो रही हैं! कह सकते हैं कि
” ताकत लगी घटने तो खैरात लगी बंटने!

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