“असदुद्दीन ओवैसी को जानकारी नहीं है. मैंने उस वक़्त भी पुलवामा का मामला पीएम के सामने उठाया था और कहा था कि हमारे लोगों की ग़लती से ये हुआ है. मैं चाहता था कि इस पर जाँच हो और मुझे लगा था कि इस पर जाँच करेंगे.
इसलिए उस वक़्त मेरे इस्तीफ़ा देने का कोई कारण नहीं था.”
ये कहना है कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का. बीबीसी के साथ एक ख़ास इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पुलवामा मामले में ज़िम्मेदारी गृह मंत्रालय की थी.
उन्होंने दावा किया कि उन्होंने उनके सामने सब बातें रख दी थी, तो गृहमंत्री को कुछ करना चाहिए था. इस्तीफ़ा तो उन्हें देना चाहिए था जो ज़िम्मेदार थे.
पिछले दिनों सत्यपाल मलिक ने जाने-माने पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में 2019 के पुलवामा हमले के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार बताते हुए कई सनसनीखेज़ दावे किए थे.
उनके बयान पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आईं, जिनमें कुछ सवाल उन पर भी उठाए गए.
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक भाषण में सत्यपाल मलिक के बयान का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हें उसी वक़्त राज्यपाल के पद को लात मार देनी चाहिए थी. राज्यपाल की सीट पर चिपक कर बैठे रहे और अब साढ़े चार साल बाद बोल रहे हैं.
यही बात गृहमंत्री अमित शाह ने भी एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में कही. उन्होंने कहा कि पत्रकारों को पूछना चाहिए कि ‘ये सारी बातें हमसे अलग होने के बाद ही क्यों याद आती हैं’.
तो क्या सत्यपाल मलिक एक अवसरवादी हैं, जो अपने रिश्ते ख़राब होने के बाद ये सब बातें कर रहे हैं?
बीबीसी से बातचीत में सत्यपाल मलिक ने कहा, “पुलवामा जिस दिन हुआ, मैंने पहले दिन ये बात उठाई, मुझे कहा गया कि आप चुप हो जाइए. फिर मुझे पता चला कि ये उसी दिशा में ले जा रहे हैं. पाकिस्तान की तरफ़. उस वक़्त इनका विरोध करना एक ख़तरनाक काम था, क्योंकि फिर देशद्रोही क़रार दे दिए जाते. जब किसान आंदोलन के वक़्त भी मुझे दिखा कि ये लोग किसानों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, तभी मैंने मुद्दा उठा दिया था.”
नए और पुराने बयान में विरोधाभास?
सत्यपाल मलिक ने करण थापर को दिए इंटरव्यू में एक और दावा किया कि पीएम नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं है.
लेकिन मेघालय का गवर्नर रहते हुए उन्होंने राजस्थान में एक भाषण दिया था. इस भाषण में उन्होंने अपने कश्मीर के कार्यकाल की एक बात का ज़िक्र किया.
उन्होंने बताया था कि कश्मीर में उनके पास दो फ़ाइलें आई थीं. एक प्रोजेक्ट से आरएसएस के एक बड़े व्यक्ति जुड़े थे और एक प्रोजेक्ट से उद्योगपति मुकेश अंबानी.
इन विभागों के सचिवों ने उन्हें जानकारी दी कि इन प्रोजेक्ट्स में घपला है. इसके बाद सत्यपाल मलिक ने इन प्रोजेक्ट्स को कैंसिल कर दिया.
लेकिन उन्होंने अपने भाषण में ये भी बताया था कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी ख़बर की, तो प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘भ्रष्टाचार पर कोई समझौता करने की ज़रूरत नहीं है.’
तो क्या उनके फ़िलहाल के बयान और पुराने बयान में विरोधाभास नहीं है?
सत्यपाल मलिक जवाब देते हैं, “हाँ, उन्हें भ्रष्टाचार से कोई चिढ़ नहीं है. बल्कि गोवा से मुझे भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर ही हटाया उन्होंने. जिन्होंने भ्रष्टाचार किया, उन पर कार्रवाई करने की बजाय मेरा ही ट्रांसफ़र कर दिया. और कश्मीर में मैं वो प्रोजेक्ट्स कैंसिल करने के बाद ही उनसे मिलने गया था. मैंने कहा था कि मैंने कैंसिल कर दिया है, आप चाहते हैं तो मुझे हटा दीजिए. लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं, भ्रष्टाचार पर कोई समझौता नहीं.”
‘अरविंद केजरीवाल को करेंगे गिरफ़्तार’
क्या भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ देश में कोई और चेहरा उन्हें नज़र आता है?
उन्होंने कहा कि एक नहीं, कई लोग बचे हुए हैं. जैसे नीतीश कुमार.
लेकिन बिहार में बहुत वक़्त से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं और गवर्नर रहते हुए सत्यपाल मलिक कह रहे थे कि बिहार का एजुकेशन सिस्टम भ्रष्ट है, तो फिर वे कैसे कह सकते हैं कि नीतीश कुमार की एक साफ़-सुथरी छवि है?
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि ‘फिर भी, तुलना में दूसरे लोगों से बेहतर हैं.’
अरविंद केजरीवाल भी बड़ी प्रमुखता से उनके उठाए सवालों को अपना मुद्दा बना रहे हैं, इस पर उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल भी तुलनात्मक रूप से बेहतर हैं.
लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप तो उनकी सरकार पर भी लग रहे हैं.
जवाब में वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि उन्हें इलेक्शन से पहले गिरफ्तार करेंगे. सौ प्रतिशत.”
तो क्या अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी के सामने एक चेहरा हो सकते हैं?
सत्यपाल मलिक कहते हैं, “मोदी जी के सामने का चेहरा किसी को नहीं कह रहा हूँ. मोदी जी के ख़िलाफ़ जनता चेहरा बने. जनता वर्सेज़ मोदी चुनाव होना चाहिए.”