मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.कैलाश जोशी के पुत्र व पूर्व मंत्री दीपक जोशी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मनाने पर भी नहीं माने।
वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने के अपने निर्णय पर अडिग हैं। उन्हें समझाने-मनाने का पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने भी प्रयास किया पर वे नहीं माने और कहा कि मैं बिना शर्त कांग्रेस में जा रहा हूं। यदि पार्टी मुझे चुनाव लड़ाना चाहती है तो बुधनी से लड़ाए, मैं तैयार हूं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता इन दिनों दीपक जोशी को मनाने में जुटे हैं। उनसे संगठन पदाधिकारियों ने चर्चा की पर वे अब भाजपा में नहीं रहना चाहते हैं। उन्होंने ‘नईदुनिया’ से चर्चा में कहा कि मुख्यमंत्री का सुबह फोन आया था पर मेरा निर्णय अटल है। कांग्रेस में मैं बिना शर्त जा रहा हूं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लडूंगा। यदि पार्टी को लड़ाना है तो बुधनी से लड़ाए, मैं तैयार हूं। मेरे पिता के मान-सम्मान की लड़ाई है।
उधर, रघुनदंन शर्मा ने जोशी को आज बुधवार को भोपाल अपने आवास पर चर्चा के लिए बुलाया था। पहले तो वे तैयार नहीं हुए पर जब शर्मा ने उनके पिता के साथ अपने संबंधों का हवाला देते हुए आने के लिए कहा तो वे भोपाल आए और दोनों की लगभग आधा घंटे चर्चा हुई।
शर्मा ने बताया कि मैंने उन्हें समझाया कि भाजपा छोड़कर जाना, आपके लिए उचित नहीं हैं। पार्टी में दो-दो, तीन-तीन पीढ़ियों ने काम किया है। नई पार्टी में जाकर अपने भविष्य को खराब करना, अंधे कुएं में कूदने के समान है, लेकिन वो मेरी बात सुनने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग थे।
उन्होंने कहा कि मैं अपने निर्णय को किसी भी कीमत पर नहीं बदलूंगा। वे पार्टी के किसी भी नेता से मिलने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने आग्रह किया कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को बुला लेता हूं पर वे तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि छोटे-छोटे काम और पिता के स्मारक की दुर्दशा देखकर विचलित हूं। मैं बहुत बड़ी मांग नहीं कर रहा था। छह-छह बार बैठक करने के बाद भी काम नहीं हो पाए। 15 दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष से भी मिला था पर कोई हल नहीं मिल पाया, इसलिए एक मई को भाजपा छोड़ने का निर्णय किया।
जोशी का पार्टी से जाना बड़ी क्षति
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि जोशी का पार्टी से जाने को मैं बड़ी क्षति मानता हूं। कैलाश जोशी के पुत्र के नाते उनके जाने से नुकसान होगा और मालवा में उसकी भरपाई करना मुश्किल होगी। संवादहीनता ही संगठन को क्षति पहुंचाती है। इसे समाप्त करना चाहिए और प्रत्येक कार्यकर्ता से मिलना और उनकी बात सुनना चाहिए। सरकार में हैं तो अपने कार्यकर्ता के नियम में आने वाले काम करना ही चाहिए और जब वे नहीं होते तो असंतोष स्वभाविक है।