RTI:रीवा विधायक की जानकारी मांगने पर कलेक्टर कार्यालय में बनाए गए कूटरचित दस्तावेज, कमिश्नर को विभागीय जांच के आदेश

 

रीवा विधायक की जानकारी मांगने पर कलेक्टर कार्यालय में बनाए गए कूटरचित दस्तावेज //

कलेक्टर और अपर कलेक्टर का जवाब सुनकर सूचना आयुक्त के भी उड़े होश //

कलेक्टर कार्यालय में आवक – जावक लिपिक कौन है विभाग में इसका निर्धारण नहीं //

जावक रजिस्टर में फर्जी इंट्री को लेकर एडीएम ने बताया हमें जानकारी नहीं //

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के आदेश के बाद आयोग में प्रस्तुत किया गया आवक जावक रजिस्टर //

अब कलेक्टर और अपर कलेक्टर के विरुद्ध कमिश्नर रीवा संभाग करेंगे विभागीय जांच //

दिनांक 12 अप्रैल 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में एक बड़ा ही रोचक मामला सामने आया है। मामला यह है कि रीवा निवासी किसी अनूप तिवारी के द्वारा दिनांक 15 अक्टूबर 2019 को वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे राजेंद्र शुक्ला के शपथ पत्र और चुनाव के दौरान दिए जाने वाले दस्तावेजों की प्रमाणित छायाप्रति चाही गई थी। जाहिर है मामला निर्वाचन आयोग से संबंधित था तो यह जानकारी तत्कालीन निर्वाचन अधिकारी एवं लोक सूचना अधिकारी एडिशनल और अपर कलेक्टर इला तिवारी के द्वारा दी जानी थी। लेकिन उक्त जानकारी एडीएम इला तिवारी के द्वारा समय पर नहीं दी गई जिसके बाद अपीलार्थी द्वारा प्रथम एवं द्वितीय अपील प्रस्तुत की गई।

*एडीएम इला तिवारी ने सूचना आयोग में सुनवाई के दौरान विभागीय पत्रों के डिलीवरी हाथ से होना बताया*

जब द्वितीय अपील के दौरान मामले की सुनवाई हो रही थी तो मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के सामने जो मामला प्रस्तुत किया गया उसने सबके होश ही उड़ा दिए। एक बार तो आयोग भी इस कशमकश में फंस गया कि आखिर यह मामला क्या है और इसके पीछे सच्चाई क्या है? जो जवाब तत्कालीन अपर कलेक्टर इला तिवारी द्वारा दिया गया उसने पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया। गौरतलब है कि इस मामले में अपर कलेक्टर इला तिवारी के द्वारा बताया गया कि उन्होंने अपीलार्थी अनूप तिवारी को विधायक राजेंद्र शुक्ला के शपथ पत्र से संबंधित जानकारी 56 रुपए शुल्क के साथ उनके घर भेज दी थी लेकिन अपीलार्थी अनूप तिवारी ने 56 रुपए शुल्क जमा करने और जानकारी लेने से मना कर दिया और इस प्रकार कर्मचारियों द्वारा मौका पंचनामा तैयार किया जा कर वापस कलेक्टर कार्यालय में जमा कर दिया गया। लेकिन सुनवाई के दौरान आवेदक अनूप तिवारी ने इस बात से सीधे इनकार किया कि इस प्रकार कोई भी पत्र क्रमांक 3008 एवं 3081 उन्हें प्राप्त नहीं हुए और न ही कोई व्यक्ति उनके घर आकर हैंड डिलीवरी के लिए कोई संपर्क ही किया। अब किस्सा और भी रोचक हो गया तब सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने वह आवक जावक रजिस्टर ही सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत प्राप्त अपने अधिकार के अंतर्गत तलब कर लिया और जांच प्रारंभ कर दी। जांच के दौरान सूचना आयुक्त ने पाया कि जो आवक/जावक रजिस्टर की बातें की जा रही है और यह पत्र क्रमांक 3008 एवं 3081 का हवाला दिया जा रहा है उस जावक रजिस्टर में 3008 के नाम से पहले ही किसी सुनीता सैनी नामक महिला के नाम पर पत्र भेजा जा चुका है और उसी एक जावक क्रमांक 3008 में ही एक अन्य व्यक्ति अनूप तिवारी का नाम घुसेड़ दिया गया है जिससे पूरे सिस्टम पर ही सवालिया निशान खड़ा हो जाता है कि क्यों न इसे कूटरचित दस्तावेज मान लिया जाए? क्योंकि कभी भी ऐसा नहीं होता कि एक ही जावक नंबर पर दो अलग-अलग व्यक्तियों के नाम पत्र जारी किए जाएं। फिर दूसरे जावक रजिस्टर की बात सामने आई तो क्रमांक 3081 की जांच की गई तो पाया गया कि जहां पर जावक क्रमांक 3081 दर्ज है वहां पर अप्रत्याशित ढंग से 5 या 6 लाइने छोड़ दी गई थीं जहां पर उस खाली स्थान पर एक अलग राइटिंग के साथ में अनूप तिवारी का नाम दर्ज है।

*यह सब देख सूचना आयुक्त राहुल सिंह के भी होश उड़ गए!*

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह सब क्या हुआ है। इसके बाद राहुल सिंह ने मामले को जिला कलेक्टर रीवा को जांच के लिए कहा जिसके बाद जिला कलेक्टर रीवा ने भी कहा कि उन्हें भी पता नहीं है कि यह किस व्यक्ति की हैंड राइटिंग से एंट्री दर्ज की गई है। इसके बाद तत्कालीन एडीएम शैलेंद्र सिंह को भी मामले पर जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया तो उन्होंने जांच कर बताया कि कुल 7 लिपिक जिला कलेक्टर कार्यालय में हैं जिनके द्वारा समय-समय पर जावक रजिस्टर में एंट्री की जाती है। अतः उक्त की गई एंट्री किस व्यक्ति की है यह बता पाना मुश्किल है। हालांकि इस विषय पर राइटिंग टेस्टिंग माध्यम से पता लगाया जा सकता था कि जो एंट्री की गई है वह किस लिपिक की राइटिंग है परंतु शायद सूचना आयोग ने अब आगे मामले में अधिक घुसना उचित नहीं समझा। लेकिन सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एक बात भली-भांति भाप लिया की जो सिस्टम कलेक्टर कार्यालय में चलाया जा रहा है यह पूरी तरह से फर्जीवाड़ा है और इसके विषय पर उन्होंने कमिश्नर रीवा संभाग को धारा 19(8)(ए) का हवाला देते हुए उस अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिए लिखा जिसके द्वारा लिपिकों का कार्य विभाजन या निर्धारण नहीं किया गया और उनकी जवाबदेही क्यों नहीं तय की गई। इसी प्रकार आगे उन्होंने कलेक्टर रीवा को भी तत्काल व्यवस्था सुधारने और पुरानी हैंड डिलीवरी प्रक्रिया को तत्काल बंद करते हुए मात्र रजिस्टर्ड अथवा स्पीड पोस्ट के द्वारा ही पत्राचार किए जाने और किसी एक निश्चित लिपिक का कार्य निर्धारण किए जाने के लिए आदेशित किया है।

*आवक जावक रजिस्टर में खाली छोड़े गए जगह पर फर्जी एंट्री किया जाना राजस्व विभाग का पुराना खेल*

यहां यह समझा जा सकता है की वरिष्ठ अधिकारी कलेक्टर और अपर कलेक्टर कैसे अपनी जिम्मेदारियों से बचते हैं और किस प्रकार अपने फर्जीबाड़े को छुपाने के लिए फर्जी कूटरचित तरीके से दस्तावेज तैयार कर देते हैं। जाहिर है यह सब वही करेगा जिसे कानून का अधिक ज्ञान होगा। कानून तोड़ने का काम कानून की अधिक जानकारी रखने वाला व्यक्ति ही कर सकता है। राजस्व विभाग में आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब फर्जी हस्ताक्षर और फर्जी नामों से कैसे कूटरचित दस्तावेज तैयार किए जाकर जमीन-जायदाद, मकान, संपत्ति आदि खुर्दबुर्द कर इधर से उधर कर दी जाती है और इसकी सुनवाई कलेक्टर न्यायालय में स्वयं कलेक्टर और अपर कलेक्टर ही किया करते हैं तो फिर उनको कैसे जानकारी नहीं होगी कि जब वह इस प्रकार के मामलों में वह स्वयं फंसे हैं और स्वयं उनके ऊपर ही आरोप लगेंगे तो उन्हें बचने के सभी तरीके भली-भांति पता होते हैं। यहां भी बिलकुल वही हुआ है और जैसा कि देखा जा सकता है कि जब तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी एवं अपर कलेक्टर इला तिवारी के ऊपर 25000 रुपए जुर्माने का नोटिस सूचना आयोग ने जारी किया तब कैसे उन्होंने अपने बचाव में नए-नए तरीके इजाद कर लिए और फर्जीवाड़ा करते हुए कूटरचित तरीके से दस्तावेज तैयार किया जाकर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जिससे सभी के होश ही उड़ जाएं।

*अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए अब कमिश्नर रीवा पर टिकी निगाहें*

मामले पर मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह की तल्ख टिप्पणी और तल्ख आदेश के बाद अब आरटीआई कानून की धारा 19(8)(ए) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्होंने रीवा संभाग के संभाग आयुक्त अनिल सुचारी को तत्कालीन कलेक्टर एव अपर कलेक्टर अथवा जो भी अन्य इस मामले में दोषी हैं उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के आदेश तो दे दिए हैं पर अब देखना यह होगा कि संभागायुक्त रीवा इस मामले पर कितनी जल्दी कार्यवाही करते हैं। यदि देखा जाए तो इस प्रकार की अनुशासनात्मक कार्यवाही के आदेश तो इसके पहले भी कई बार दिए जा चुके हैं लेकिन वरिष्ठ अधिकारी कार्यवाही पर हीलाहवाली करते हैं और फाइल धूल खाती हुई पड़ी रहती हैं। अब क्योंकि यह गंभीर मामला है तो इस पर देखना पड़ेगा कि अनिल सुचारी क्या कार्यवाही करते हैं?

*यदि मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो सूचना आयोग को भ्रमित करने के लिए कलेक्टर और अपर कलेक्टर पर हो सकती है बड़ी कार्यवाही*

भला कोई मूर्ख व्यक्ति भी इस बात पर कैसे विश्वास कर सकता है कि कलेक्टर और अपर कलेक्टर कार्यालय जैसे वरिष्ठ कार्यालय में ऐसा कभी हो सकता है की किसी लिपिक का कार्य विभाजन और कार्य निर्धारण ही न हुआ हो और ऐसा कैसे हो सकता है कि एक ही जावक नंबर पर दो लोगों को पत्र जारी कर दिए जाएं। यदि इस मामले को हाईकोर्ट में ले जाया जाए और हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी जाए तो निश्चित तौर पर यह फर्जीवाड़ा करने वाले और सूचना आयोग को कूट रचित दस्तावेज तैयार किया जाकर गलत और भ्रामक जवाब देने वाले यह कलेक्टर और अपर कलेक्टर भी जेल की सलाखों के पीछे हो सकते हैं।

*संलग्न* – कृपया संलग्न सूचना आयुक्त राहुल सिंह का वह आदेश प्राप्त करें जिसमें यह सब कूटरचित फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है और तत्पश्चात उन्होंने आदेश दिए हैं एवं इसके साथ वीडियो बाइट भी प्राप्त करें।

 

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