🔭 साइंटिफिक-एनालिसिस 🔬
न्यायपालिका से जुडें लोग मुख्य न्यायाधीश का तो समर्थन करे …
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपने कार्यकाल के शुरूआत से अब तक कई बार केंद्र सरकार द्वारा जवाब को सीलबंद लिफाफे में देने को ठुकरा चुके हैं | वर्तमान में मीडिया वन चैनल से जुडें मामले में भी ऐसा किया |
इस सीलबंद लिफाफे को लौटाने के साथ उन्होंने कानूनन जो कारण बताया व उसे तर्कों के रूप में व्याखित करा उसे हर देशवासी के साथ हर उस विशेष व्यक्ति को पढकर चिंतन करना चाहिए जो न्यायपालिका के कामों से जुडा हैं |
मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र के इस रुख को मानने से इनकार कर दिया है और कहा कि सीलबंद लिफाफे के कामकाज से साफ-सुथरी और पारदर्शी कार्यवाही की प्रक्रिया पर असर पड़ता है और याचिकाकर्ता भी अंधेरे में रहता है। यह प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के भी खिलाफ है।
मीडीया वन चैनल के इस मामले में उन्होंने हाईकोर्ट की भी तीखी आलोचना करते हुए कहा ‘हाईकोर्ट ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि सुरक्षा मंजूरी से इनकार क्यों किया गया। उच्च न्यायालय के मन में क्या चल रहा था, यह स्पष्ट नहीं है, जिसके कारण यह मान लिया गया कि सिक्योरिटी क्लियरेंस से इनकार करना तार्किक था। जबकि इस मुद्दे की प्रकृति और गंभीरता फाइलों से नहीं समझी जा सकती है। सिंगल जज की बेंच और डिवीजन बेंच ने जिस तरीके से सीलबंद लिफाफे को स्वीकार किया, वह संविधान में दिये गए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है’।
माननीय मुख्य न्यायाधीश इन्ही आधारों को न्याय के तराजू से तोलते हुए कई बार सीलबंध लिफाफों को लौटाया हैं परन्तु यह उनके पद पर रहने तक रहेगा इसके बाद सबकुछ पहले की तरह होने लगेगा | कानून देखा जाये तो एक से अधिक बार टिप्पणी हो जाने पर व्यवस्था में बदलाव हो जाना चाहिए ताकि वह हमेशा के लिए न्यायिक प्रक्रिया से जुडा रहे | एक बार गलती हो जाये तो वह दुबारा नहीं हो तो उसके लिए उठाया कदम ही असली इंसानियत का सिद्धांत हैं |
साइंटिफिक-एनालिसिस के विज्ञान के तर्क व सिद्धांत को माने तो सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल एवं भूतपूर्व रिटायर्ड न्यायाधीशों द्वारा सामुहिक रूप से एक आवेदन मुख्य न्यायाधीश के पास जाना चाहिए कि आपने संविधान के प्रकाश में प्राकृतिक न्याय की व्याख्या एक से अधिक बार करी हैं इसलिए उसे सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजे |
इस पर सभी न्यायाधीश विचार करके एक फैसला तय करेंगे जो हमेशा के लिए न्यायिक प्रक्रिया से जुड जायेगा इस कारण से ही संवैधानिक पीठ को संविधान के अन्दर राष्ट्रपति के समान ही संविधान संरक्षक का स्थान दिया हैं |
जब कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री बोलते हैं तो सारे मंत्री उनका सहयोग करते हैं | राजनैतिक दल का प्रमुख नेता बोलता हैं तो हर नेता व कार्यकर्ता उसका सहयोग करते हैं | इसी तरह जब न्यायपालिका का प्रमुख बोल रहा हैं तो न्यायपालिका से जुडें हर व्यक्ति को उनका सहयोग करना चाहिए |
साइंटिफिक-एनालिसिस की माने तो संविधान दिवस पर जब राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी के आंचल में आये तो उन्हें इस तरह के बदलाव की लिस्ट सार्वजनिक रूप से देनी चाहिए न कि फुलों के गुलदस्तों को देकर रस्म अदायगी करनी चाहिए | इसे देख कर राष्ट्र के हर नागरिक के मन में न्यायपालिका के प्रति सम्मान पडेगा व लोकतंत्र के ऊपर आत्मविश्वास मजबूत होगा |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक