क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, जिसकी संवैधानिकता पर कोर्ट करेगा सुनवाई

 

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Places of worship act 1991) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है. पिछले साल 9 सितंबर को इससे जुड़ी याचिकाओं को तीन जजों की पीठ के पास भेजा गया था.
याचिका में कहा गया था कि यह एक्ट लोगों की समानता, जीने के अधिकार और व्यक्ति की निजी आजादी के आधार पर पूजा के अधिकार का हनन करता है. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ – सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ सिंह, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेपी पादरीवाला इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी (SC hearing on Places of Worship Act). पीठ इस एक्ट की संवैधानिकता और वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता (challenge to constitutionality) पर भी सुनवाई करेगी. कोर्ट के फैसले पर पूरे देश की निगाह है.

इस फैसले से देश में आगे की राजनीतिक और धार्मिक विवादों की दिशा तय हो सकती है. कोर्ट से केंद्र से भी मांगा था जवाब वर्शिप एक्ट के कुछ प्रावधाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने केद्र से कई बार जवाब मांगा था (SC sought answer from Government). कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया था. इसके बाद पिछले साल 9 सितंबर को फिर जवाब मांगा.

लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मोहलत मांग ली. इसके बाद 9 जनवरी को कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा. तब कोर्ट ने सरकार को फरवरी तक का समय दिया था. वर्शिप एक्ट पर सुनवाई से क्या प्रभाव पड़ेगा सुप्राीम कोर्ट ने जैसे ही वर्शिप एक्ट के खिलाफ वाली याचिकाओं पर सुनवाई की स्वीकृति दी देश में विवादित धार्मिक स्थलों को लेकर नये सिरे बहस प्रारंभ हो गई. कोर्ट के फैसले से वाराणसी स्थित ज्ञानवापी और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्म भूमि विवाद पर भी बड़ा असर पड़ सकता है.

इन दोनों धार्मिक स्थलों के अलावा कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल और इमारतें हैं जिनको लेकर भी आये दिन विवाद होते रहे हैं. मसलन दिल्ली का कुतुब मीनार, आगरा का ताजमहल – इनकी बुनियाद हिंदू धार्मिक स्थलों की थी. जिनका अस्तित्व मुगलकाल में ध्वस्त कर दिया गया. कुल कितनी याचिकाएं लगाई गई हैें?

प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के कुछ प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल छह याचिकाएं लगाई गई हैं (Petitions against the Places of Worship Act). इनमें पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय के अलावा विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की याचिकाएं भी शामिल हैं. पूरे मामले पर सुन्नी मुस्लिम उलेमाओं का संगठन भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. संगठन ने कहा है अयोध्या के फैसले के दौरान कोर्ट बाकी धार्मिक स्थलों के बारे में जो वर्जन दे चुका है, उसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए.

इसमें बदलाव से अल्पसंख्यकों में असुरक्षा पनपेगी. क्या है प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 ? 1991 का पूजा अधिनियम 15 अगस्त 1947 से पहले सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता है. वह चाहे मस्जिद हो, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल.

वे सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों का त्यों बने रहेंगे. उसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता. सार्वजनिक पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने को लेकर संसद ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि इतिहास और उसकी गलतियों को वर्तमान और भविष्य के परिप्रेक्ष्य में बदलाव नहीं किये जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अयोध्या फैसले के दौरान भी पांच न्यायाधीशों ने एक स्वर में यही कहा था.

किस धारा में क्या लिखा है ? इसमें पांच धाराएं हैं. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा -2 के मुताबिक 15 अगस्त 1947 में किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर कोर्ट में केस लंबित है तो उसे रोक दिया जाएगा. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा-3 के मुताबिक किसी भी पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता.

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा – 4 (1) के मुताबिक विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों का चरित्र बरकरार रखा जाएगा. वहीं धारा – 4 (2) कहती है इस तरह के विवादों से जुड़े केसों को खत्म करने की बात कहती है. 1991 का कानून क्यों बनाया गया था? यह अधिनियम पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय आया था, तब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में उनकी गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया था. इसी दौरान संसद में विधेयक को पेश करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चव्हाण ने कहा था सांप्रदायिक माहौल को खराब करने वाले पूजा स्थलों के रूपांतरण के संबंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को लागू करना आवश्यक है. लेकिन तब के मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था.sabhar tv9

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