प्रतिदिन दो लाख मरीज परेशान होंगे।
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राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में राजस्थान भर के चार हजार प्राइवेट अस्पतालों में 18 मार्च से मरीजों का इलाज बंद हो गया है। जो मरीज भर्ती हैं, उन्हें भी छुट्टी दी जा रही है तथा नए मरीजों की भर्ती पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। प्रदेश के प्राइवेट अस्पतालों में प्रतिदिन दो लाख मरीज इलाज कराने आते हैं। करीब 20 हजार मरीज अस्पतालों में भर्ती रहते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में शटडाउन का निर्णय चिकित्सकों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने लिया है। कमेटी के प्रतिनिधि डॉ. कुलदीप शर्मा ने बताया कि राइट टू हेल्थ बिल में संशोधन के मुद्दे पर राज्य सरकार अपने वादे से मुकर गई है। कमेटी के सदस्यों के साथ बिल में जो संशोधनों पर जो सहमति बनी थी, उस पर सरकार ने अपना रुख बदल लिया है। अब प्राइवेट अस्पतालों को बिल किसी भी स्वरूप में स्वीकार नहीं है। यदि यह बिल कानून बनता है तो कोई भी प्राइवेट अस्पताल संचालित नहीं हो सकता। मजबूरन अस्पतालों को बंद करना पड़ेगा। डॉ. शर्मा ने बताया कि मरीजों का इलाज करने में प्राइवेट अस्पतालों की 75 प्रतिशत भागीदारी है। इतनी बड़ी संस्था मरीजों का इलाज करने पर भी सरकार का रवैया नकारात्मक है। सरकार अपने अस्पतालों में तो चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं करवाती और अब राइट टू हेल्थ बिल की आड़ में प्राइवेट अस्पतालों का दम घोटने में लगी है। डॉ. शर्मा ने कहा कि शटडाउन में प्रदेश भर के प्राइवेट अस्पताल एकजुट हैं। सभी अस्पतालों के संचालकों ने शटडाउन पर अपनी सहमति दे दी है। हमने सरकार को भी अवगत करा दिया है। जब अस्पताल ही बंद रहेंगे, तब सरकारी योजनाओं में भी इलाज बंद हो जाएगा। हमने पहले सरकारी योजनाओं में इलाज बंद किया था, लेकिन सरकार पर इसका असर नहीं हुआ। इसलिए अब 18 मार्च से शट डाउन का निर्णय लिया गया है। डॉ. शर्मा ने आरोप लगाया कि कुछ प्रशासनिक अधिकारी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुमराह कर रहे हैं, इसलिए प्राइवेट अस्पतालों का पक्ष मुख्यमंत्री के पास नहीं रखा जा रहा है। प्राइवेट अस्पतालों के शटडाउन के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9460061243 पर डॉ. कुलदीप शर्मा से ली जा सकती है।
साभार, S.P.MITTAL