सरकारी खर्च पर अपनों को अंदर करने का अपनाया नया तरीका, किया लाखां युवाओं के साथ विश्वासघात
केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा 1996 में संसद में पेसा एक्ट को पारित किया गया था, जो स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया जी की अध्यक्षता में गठित भूरिया कमेटी के ड्राफ्ट पर आधारित था। इस कानून का मूल उद्देश्य ग्राम सभाओं को सर्वशक्तिशाली, सशक्त और संपन्न बनाना था, जिसके लिए एक नारा दिया था ‘न लोकसभा, न विधानसभा सबसे बड़ी ग्राम सभा।’ आज भाजपा ने एक पूरी तरह से कमजोर और फर्जी पेसा कानून लागू किया जो कि आदिवासी वर्ग की मूल भावनाआें के बिल्कुल विपरीत है और उनके साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है।
भाजपा का पेसा कानून फर्जी क्यों ? :-
आदिवासी क्षेत्रों को नौकरशाही से मुक्त करना मूल पेसा का उद्देश्य था जो कि अभी पूरी तरह नकार दिया गया है। आज भी पूरा अधिकार ग्राम सभाओं के ऊपर एसडीएम और कलेक्टर का है।
मूल पेसा कानून आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन का अधिकार देता था, जो कि भाजपा के इस फर्जी पेसा कानून में कहीं भी नहीं दिखाई देता है।
भाजपा के पेसा कानून के तहत खनिज और वनोपज पर ग्राम सभाआें का एकाधिकार नहीं है।
आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा, रिवाज, पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए इस पेसा कानून में कोई भी प्रावधान नहीं है।
इस पेसा कानून ने गांवों में एक नये विवाद को जन्म दिया है, जिसके तहत पंचायती राज और ग्राम सभाओं में टकराव की स्थिति बन गई है। क्यांकि इस पेसा कानून में ग्राम सभाओं से सरपंच, पंच और तड़वी/ पटेल को बाहर कर दिया गया है। तो क्या ये पेसा कानून पंचायती राज को बढ़ावा न देकर उसे कमजोर करने का कानून बन गया है?
पेसा कानून-फर्जी नियुक्तियां ? :-
प्रदेश में आदिवासियों के हित में पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती योजना बड़े घोटाले में तब्दील हो गई है। मप्र के 89 आदिवासी बाहुल्य ब्लॉकों में पेसा कानून को लागू कराने, उसके प्रचार प्रसार के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने सेडमेप ब्म्क्ड।च् के माध्यम से विधिवत आवेदन बुलाये, जिनसे 500 से 600 रू. प्रति आवेदक से फीस वसूली गई, जिससे सरकार को एक करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ। साक्षात्कार हेतु आवेदकों की मेरिट लिस्ट तैयार की गई। जिसमें से 890 आवेदकों को छांटकर फरवरी 2022 में साक्षात्कार के लिये बुलाया भी गया, किंतु बिना कारण बताये साक्षात्कार रद्द कर दिया गया।
एमपीकॉन के माध्यम से आउटसोर्स से गोपनीय तरीके से एक विचारधारा विशेष से जुड़े 89 ब्लाक और 20 डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर के पद भर दिये गये। इन चयनित लोगां को सरकारी खजाने से जहां 25 हजार रूपये मासिक वेतन ब्लॉक कॉर्डिनेटर और 45 हजार डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर को दिया जायेगा। ये चयनित लोग पेसा कानून का प्रचार करने के बजाय भाजपा के चुनावी बूथ मैनेजमेंट का काम करेंगे। इससे स्पष्ट है कि भाजपा सरकार ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं के साथ छल किया है।
कांग्रेस के सवाल :-
यदि आपको एमपीकॉन से ही भर्ती करना था, तो सेडमैप से विज्ञापन क्यों निकाला? क्यों आवेदकों की मेरिट सूची जारी करने और साक्षात्कार पत्र भी जारी करने के बाद अपरिहार्य कारण बताकर साक्षात्कार निरस्त क्यों कर दिया?
आज तक वह अपरिहार्य कारण उन आवेदकों को क्यों नहीं बताया गया, जिन्हांने फीस जमा कर आवेदन किये थे? आखिर सरकार ऐसा क्या छुपा रही है? आवेदकों से जो करोड़ों रूपये की राशि सरकार के खजाने में आई उस राशि का क्या हुआ? अभी तक उन आवेदकों की फीस क्यों नहीं लौटायी गई? भाजपा सरकार का क्या यही सुशासन है?
जो 119 नियुक्तियां हुई उसमें एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया, क्या एक भी महिला इस पद के काबिल नहीं थी? क्या भाजपा महिलाओं को चुनावी वोट के लिए इस्तेमाल करती है? क्या लाड़ली बहना योजना भी भाजपा का चुनावी प्रोपेगंडा है?
कांग्रेस की मांग :-
व्यापमं / कर्मचारी चयन आयोग एवं लोक सेवा आयोग से चयन न करवाते हुये आउटसोर्सिंग एजेंसी एमपीकॉन के माध्यम से ये भर्तियां क्यों करवायी गईं? क्या उसमें आरक्षण का पालन हुआ है? एमपीकॉन द्वारा करायी गई अब तक की भर्तियों की सीबीआई से जांच करायी जाये? क्या उसमें आरक्षण के नियमों और मेरिट के नियमों का पालन हुआ अथवा नहीं हुआ?े
जिन लोगों के चयन हुये वे सोशल मीडिया, फेसबुक अकाउंट भाजपा और संघ विचारधारा से ही क्यों जुड़े हुये पाये जाते है।
गोपनीय तरीके से की गई इन भर्तियां को निरस्त कर पुनः सेडमेप के आधार पर बनी मेरिट लिस्ट के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया को संपन्न कराया जाये? साथ ही इस प्रक्रिया में आरक्षण के तहत महिलाओं को भी अवसर प्रदान किया जाये।
ये भर्तियाँ किसके निर्देश पर और किस नियम के आधार पर की गई? इस अपारदर्शी भर्ती प्रक्रिया की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए? ताकि इस तरह के षड्यंत्र का पर्दाफाश हो सके और भविष्य में इसे दोहराया न जाये, जिससे योग्य अभ्यार्थि के साथ छलावा न हो सके।
एमपी सेडमैप द्वारा 17500 अभ्यर्थियों से आवेदन शुल्क के नाम पर वसूले गयी एक करोड़ रूपये की राशि को वापस न करना गवन की श्रेणी में आता है, इसलिए ईओडब्ल्यू द्वारा सेडमैप के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा के तहत एफआईआर दर्ज की जाये ।
इस फर्जीवाडे़ में संलिप्त और भर्ती प्रक्रिया को अंजाम देने वाले मुख्यमंत्री के चहेते अधिकारियां पर एफआईआर दर्ज की जाये।
जिन लोगों को नियुक्तियां दी गई हैं, उनकी मेरिट लिस्ट सार्वजनिक की जाये?
यदि वास्तव में शिवराजसिंह चौहान आदिवासी वर्ग के इतने हितेषी थे, तो पिछले 20 वर्षों तक इन पेसा रूल्स को बनाने का इंतजार अब तक क्यों किया? लड़ाई यह नहीं है कि सभी आदिवासियों को इसमें नियुक्ति दी गई। लड़ाई यह है कि मेरिट में शामिल आवेदकों को दरकिनार कर भाजपा के एजेंटों को इन नियुक्तियां दी गई।