यह धर्म नहीं धर्मांधता है मिश्रा जी

धर्मेन्द्र पैगवार:
चाणक्य नीति के तीसरे अध्याय में 12 वे क्रम पर एक श्लोक है
अतिरूपेण वै अतिगर्वेण रावण: ।

अतिदानात् बलिर्बद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत्।
यह श्लोक पिछले 3 साल में उभरे प्रोफेशनल कथावचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने शायद नहीं पढ़ा है। प्रोफेशनल कथा वाचक शब्द पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन जो लोग पंडित प्रदीप मिश्रा को सीहोर के नमक चौराहे से जानते हैं उन्हें यह भलीभांति मालूम है कि पंडित जी का शैशव काल कैसे बीता और अब उनकी आजीविका और पूरी शान ओ शौकत कथा से मिलने वाली फीस पर निर्भर है। इसमें कुछ बुरा भी नहीं है लोगों उन्हें श्रद्धा से बुलाते हैं उन्हें बड़ी भारी फीस मतलब दक्षिणा देते हैं और पंडित जी लोगों को शिवपुराण के अलावा कुछ ऐसे टोटके बताते हैं जो ना तो लाल किताब में है और ना ही किसी धर्मशास्त्र में।
पंडित जी के टोटके से शुरू हुआ यह सफर धर्म जागरण तक पहुंचा। लोगों ने खासतौर पर महिलाओं ने घरों से लेकर मंदिरों तक प्रदीप मिश्रा के कहने पर भगवान शिव की भक्ति में अपने आपको डुबो लिया। पंडित जी की कीर्ति पूरे देश में फैली और रातों-रात पंडित जी भगवान शिव के आशीर्वाद से कुबेर के रूप में आने लगे। उन्होंने सीहोर से मात्र 150 किलोमीटर दूर 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वाधिक महत्व रखने वाले बाबा महाकाल और लगभग 200 किलोमीटर दूर ओंकारश्वर ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के बावजूद स्वयं का एक कुब्रेश्वर धाम बना दिया। ना तो पंडित जी को इसके लिए भगवान शिव ने कोई स्वप्न दिया था और ना ही यहां कोई स्वयंभू शिवलिंग निकला। अपनी कथाओं में पंडित प्रदीप मिश्रा कुबेरेश्वर धाम की महिमा बताने लगे और लोग धर्मांध होकर ज्योतिर्लिंग छोड़कर उनके धाम आने लगे। जमीनों की कीमतें बढ़ने लगी व्यापारियों का रुख भोपाल इंदौर रूट के दाहिने तरफ मुड़ गया।
1 साल पहले अचानक पंडित जी ने लाखों लोगों को सीहोर पहुंचने का आह्वान कर दिया। लोग आए अव्यवस्था फैली लाखों लोग परेशान हुए इसमें पंडित जी के भक्तों के अलावा भोपाल से लेकर इंदौर तक के वे आम लोग भी थे जिन्हें इस धर्मांधता से कोई मतलब नहीं था। उस वक्त बदइंतजामी के लिए जिला प्रशासन से लेकर सरकार तक को कोसा गया।
बात हिंदुत्व तक पहुंची हालांकि इस धर्मांधता का हिंदुत्व से कोई लेना देना नहीं है। पंडित जी अपने प्रचार में लगे हैं धर्म प्रचार करते हैं भगवान शिव की महिमा बताते हैं यहां तक अच्छी बात है। लेकिन वह कैसे लाखों लोगों को बिना किसी इंतजाम के सीहोर बुलाने की अपील कर देते हैं। न तो सीहोर में इतनी क्षमता है कि वह 5 लाख लोगों को अपने में समा सके ना ही सड़के इतनी क्षमतावान ।
एक बार फिर पंडित जी ने लोगों को सीहोर बुला लिया है रुद्राक्ष की महिमा हिंदुस्तान में हर व्यक्ति जानता है और खास तौर पर वह व्यक्ति जो धर्म कर्म से जुड़ा है। लेकिन पंडित जी के नुस्खों से प्रभावित लोग अद्भुत रुद्राक्ष लेने के लिए इस कदर दीवाने हुए कि उन्होंने बिना किसी योजना के सीहोर की तरफ कदम बढ़ा दिए। जबकि पिछले अनुभव को देखते हुए एक धर्म आचार्य य कथावाचक होने के नाते पंडित प्रदीप मिश्रा को लोगों को बुलाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना था। उनकी सुविधा, स्वास्थ्य, साधन पर विचार करना था। सिर्फ सीहोर नहीं भोपाल शाजापुर राजगढ़ और देवास तक के जिला प्रशासन से बात करनी थी। इन बड़े शहरों की सामाजिक संस्थाओं को जोड़ना था। रुद्राक्ष वितरण चरणबद्ध तरीके से भी हो सकता था इसमें राज्यवार भी आदमी बुलाए जा सकते थे। य ऑनलाइन जब चंदा लिया जा सकता है तो रुद्राक्ष भी दिए जा सकते थे। इसमें सीधे तौर पर पंडित जी की व दूसरे नंबर पर सीहोर के कलेक्टर एसपी की भी गलती है। उन्होंने भीड़ मैनेजमेंट को लेकर पंडित जी को ना तो समझाया और ना ही ऐसी कोई व्यवस्था की जिससे मध्य प्रदेश का सबसे मुख्य रोड भोपाल इंदौर हाईवे पूरी तरह थम गया। अभी सभी हिंदीभाषी राज्यों के लोग वहां फंसे पड़े हैं। हालांकि वह तो धर्म के लिए वहां आए हैं। हालांकि जो लोग भोपाल से इंदौर उज्जैन के लिए निकले इंदौर से भोपाल के लिए निकले वह लोग 8 से लेकर 10 घंटे तक जाम में फंसे हैं। इसमें महिलाएं बच्चे बुजुर्ग बीमार सब शामिल है। लोगों के पास पीने का पानी खत्म हो गया है ढाबों पर खाना नहीं बचा है और पेट्रोल टैंको में पेट्रोल डीजल सूख गया है। इन हजारों उन लोगों की भी इस बात में पूरी आस्था है लेकिन उन्हें किस बात की सजा मिल रही है यह उन्हें नहीं मालूम।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने शिव पुराण सुना कर जो यश कीर्ति कमाई थी वह उनके कुछ बचकाने फैसलों से कम हो रही है। कथावाचक होने के नाते आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए थी। आपको फरवरी के अंतिम सप्ताह में कहीं कथा बांचने जाना होगा आपका पूर्व निर्धारित अपॉइंटमेंट होगा जिसकी फीस भी आप एडवांस के तौर पर कुछ ले चुके होंगे। लेकिन ,आप सिर्फ कुछ दिन के लिए ही लोगों को क्यों बुला रहे हैं आप लोगों से आव्हान करते कि वह 1 महीने तक सीहोर आएं बारी बारी से आए और रुद्राक्ष ले जाएं इससे आपके भक्तों को भी कष्ट नहीं होता और आम आदमी को भी। लेकिन आपका मकसद भीड़ दिखाकर अपना महत्व बताने का ज्यादा लगता है। हो सकता है कुछ धर्मभीरु लोगों को यह बात पूरी तरह नहीं जमे लेकिन इन कथा वाचकों का हिंदुत्व या सनातन के प्रचार से कोई वास्ता नहीं है। न टोने टोटके बताना हिंदुत्व है न ही सनातन का प्रचार। हिंदू धर्म के स्थापित तीर्थ स्थलों की अवहेलना करके अपने द्वारा बनाए गए मंदिरों के लिए चंदे को दान का स्वरूप देना और अपने बनाए मंदिर को धाम बताना हिंदुत्व और सनातन का एक प्रकार से अपमान है। यदि यह प्रोफेशनल कथावाचक जनता को लुभा कर अपने अपने नए मठ मंदिर स्थापित करने लगेंगे तो हमारे वैदिक काल से स्थापित तीर्थों का क्या होगा? यह गंभीर विषय है और इस पर हिंदुत्व के पैरोकारों, धर्माचार्यों और शंकराचायों को निर्णय जरूर करना चाहिए।
प्रजातंत्र में प्रकाशित

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