सूक्ष्म एवं लघु उद्योग की हालत पतली: सरकारी नीतियां और योजनाएं सिर्फ बड़बोलापन,जमीनी स्तर पर व्यापारी परेशान

 

 

आज ओद्योगिक संस्था कन्सोरटियम आफ इंडियन इंडस्ट्रीज जिसमें देश के करीब १०८००० उद्योगपति सदस्य हैं द्वारा सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों पर करवाए गए सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं जो सरकार की एमएसएमई नीति को मात्र ढकोसला बता रहे हैं:

१. देश में चल रहे ७२% एमएसएमई ने बताया कि या तो वो बंद हो गए हैं या फिर उनका व्यापार कम हुआ है या पिछले ५ वर्षों में कोई वृद्धि नहीं हुई है.

२. मात्र २८% एमएसएमई ने बताया कि व्यापार में वृद्धि हुई है जो कि देश के लिए एक चेतावनी है.

३. एमएसएमई के ७९% युनिट्स ने माना कि बैंको से वित्तीय सहायता मिलना न केवल कठिन बल्कि छोटे उद्योगों के लिए एक कठिन चुनौती है.

४. उद्योगों ने ७६% सहमति से यह माना कि वे लाभ नहीं कमा पा रहे हैं.

५. व्यापारियों के ४५% प्रोमोटर्स ने व्यापारी करने में आसानी बिल्कुल भी नहीं है.

६. इंडस्ट्री एसोसिएशन के सभी चेम्बर्स ने साफ तौर पर जाहिर किया कि टैक्स कानूनों की रिड्राफ्टिंग होनी चाहिए.

७. मात्र २१% व्यापारी ने माना की सरकार द्वारा कोविड काल में उचित सहायता दी गई.

८. सर्वे में शामिल ८७% व्यापारियों ने माना कि बजट -२३ एमएसएमई के लिए निराशाजनक था और वे इस पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है.

९. हालांकि बहुमत ने माना कि ४५ दिन में पेमेंट मिलने का कदम और ९५% डिपाजिट का रिफंड जो कोविड काल में सरकारी विभागों में दिया गया था, स्वागत योग्य है.

१०. सर्वे में यह भी बताया गया कि सूक्ष्म उद्योग के लिए एक अलग मंत्रालय जरूरी है जो कि सूक्ष्म उद्योग की परेशानी समझ सकें.

११. छोटे उद्योगों को आज भी कठिन, पुराने और कामप्लीकेटेड कानूनों एवं नियमों का पालन करना पड़ता है जो कि गैर जरूरी और उद्योग पर बोझ है और इसलिए समय आ गया है कि इन कानूनों को हटाया जाए और कराधान के नियमों की रिड्राफ्टिंग की जावे.

१२. एमएसएमई एक्ट २००६ को और मजबूत बनाने पर ध्यान देना होगा एवं जीएसटी कानून को आसान करना होगा.

१३. छोटे उद्योगों में ७०% ने पेमेंट मिलने में देरी को एक मुख्य समस्या बताया.

१४. कच्चे माल की कीमत और उपलब्धता ४०% छोटे उद्योगों की मुख्य समस्या है.

१५. कानून और नियमों के पालन करने में ५२% छोटे उद्योगों ने परेशानी बताई.

१६. मांग और आर्डर को पूरा न कर पाने की परेशानी ६२% छोटे उद्योगों ने जताई.

१७. अच्छे और स्किल्ड कामगारों की उपलब्धता न होना ३८% छोटे उद्योगों की दिक्कत है.

*साफ है छोटे उद्योगों को बढ़ाने या आत्मनिर्भरता के मामले में यह सर्वे सरकारी नीतियां को ढकोसला बता रहा है. यदि उपरोक्त सर्वे में १० से २० प्रतिशत का अंतर भी लें, तो भी लघु उद्योगों के हालात कमजोर है और सरकार को अपने कानूनों एवं नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा और समझना होगा कि सरकार की आर्थिक नीति सही दिशा में नहीं जा रही है.*

*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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