अरुण दीक्षित,
खेलो इंडिया का पांचवां संस्करण मध्यप्रदेश में खेला गया।30 जनवरी से 11 फरबरी तक चले इस खेल मेले में देश भर के 6 हजार से ज्यादा खिलाड़ी शामिल हुए।27 तरह के खेल खेले गए!प्रदेश के 8 शहरों में अलग अलग खेलों के आयोजन हुए!खिलाड़ियों और उनके सपोर्ट स्टाफ के अलावा करीब 6 हजार अधिकारी,कर्मचारी,वालंटियर तथा केंद्रीय खेल मंत्रालय के अधिकारी इन खेलों के दौरान मौजूद रहे।
मध्यप्रदेश सरकार इन खेलों की मेजबान थी।उसने 230 करोड़ रूपये का बजट इस आयोजन के लिए रखा था।सूत्रों के मुताबिक खर्च कुछ ज्यादा ही हुआ !राज्य सरकार का खेल मंत्रालय और माध्यमिक शिक्षा मंडल इस आयोजन के मुख्य सूत्रधार रहे!भोपाल के अलावा इंदौर,उज्जैन,ग्वालियर,जबलपुर,मंडला,बालाघाट और खरगोन में खेल प्रतियोगिताएं हुईं।
इस खेलो इंडिया में एमपी के खिलाड़ी भी जम कर खेले!कुल 96 मेडल जीतकर एमपी तीसरे नंबर पर रहा।जबकि 161 मेडल के साथ महाराष्ट्र पहले और 128 मेडल जीत कर हरियाणा दूसरे स्थान पर रहा।
जैसा कि हमेशा होता आया है! दोनों सरकारों की नजर में आयोजन शानदार रहा।रही खिलाड़ियों की बात..तो जो जीते वे खुश होकर अपने घरों को लौटे!जो हारे वे एक नया अनुभव लेकर गए!
लेकिन राज्य सरकार के तमाम दावों के बाद भी इस दौरान कुछ ऐसा भी हुआ जिसने खिलाड़ियों और उनके साथ आए लोगों के मन को ठेस पहुंचाई!चूंकि खिलाड़ी खेलने आए थे और खेल कर चले गए!इस वजह से सरकार के अफसरों का “खेल” खुल नही पाया।
यह तथ्य अब सार्वजनिक है कि अपनी एमपी गवर्नमेंट आजकल “इवेंट्स” में यकीन करती है।पिछले महीनों में हुए उसके सभी आयोजन इवेंट्स की तरह ही हुए हैं।इन दिनों चल रही विकास यात्रा भी एक इवेंट बन गई है।
आपको याद होगा कि एमपी गवर्नमेंट ने कुछ महीने पहले इंदौर में प्रवासी भारतीय सम्मेलन की मेजबानी की थी।हजारों की संख्या में प्रवासी भारतीय इस सम्मेलन में शामिल हुए थे।
सरकार ने करोड़ों रुपए का बजट इस आयोजन के लिए भी रखा था।सरकार के दावे को मानें तो यह आयोजन शानदार रहा था।लेकिन यह भी सब जानते हैं कि खुद मुख्यमंत्री को मंच से माफी मांगनी पड़ी थी।
इंदौर में ही हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के दौरान भी बदइंतजामी की शिकायतें आम रही थीं।
इनके अलावा भोपाल में जी 20 जैसा महत्वपूर्ण आयोजन भी हुआ।और भी कई कार्यक्रम हुए और हो रहे हैं। हर कार्यक्रम एक इवेंट था।जिसे सरकारी मशीनरी के साथ इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों ने आयोजित कराया। नवनियुक्त पुलिस कर्मियों को नियुक्ति पत्र भी एक इवेंट में ही बांटे गए थे।
खेलो इंडिया का आयोजन भी कुछ इसी तर्ज पर हुआ।बताते हैं कि सरकार ने अलग अलग काम के लिए अलग अलग कंपनियों की सेवाएं लीं थीं।ज्यादातर कंपनियां दिल्ली से आईं थी।एक कंपनी इवेंट मैनेजमेंट के लिए हायर की गई तो एक को कंसल्टेंसी के लिए बुलाया गया था।खिलाड़ियों के रहने खाने और लाने ले जाने की व्यवस्था का काम एक बड़ी कंपनी को सौंपा गया था।आयोजन के उद्घाटन और समापन के लिए एक अलग कंपनी की सेवाएं ली गईं थीं।सरकारी अमला तो अपना काम कर ही रहा था।
आयोजन राष्ट्रीय था तो व्यवस्थाएं भी उसी स्तर की होनी थीं।हजारों मेहमान हों तो थोड़ी ऊंचनीच हो ही जाती है।लेकिन खेलो इंडिया के दौरान सबसे ज्यादा बदइंतजामी खाने को लेकर हुई।सरकार की ओर से यह दावा किया गया था कि वह हर खिलाड़ी के खाने पर रोज हजारों रुपए खर्च कर रही है।लेकिन वास्तविकता में ऐसा हुआ नहीं।बताते हैं कि खेल विभाग के अधिकारियों ने बताया कुछ और पर किया कुछ और!शूटिंग अकादमी में 9 फरबरी को इसका प्रमाण भी मिल गया।एक अधिकारी ने बाकायदा यह संदेश भेज दिया था कि खाने की एक थाली दो हजार रुपए की है। सबके खाने की व्यवस्था अलग अलग है।डायनिंग हाल में सबको न घुसने दिया जाए।परिणाम यह हुआ कि बाहर से आए लोग खाने के बजाय धक्के खाते रहे।खबर मीडिया तक पहुंच गई।हालांकि खेल मंत्री और खेल विभाग के डायरेक्टर ने केंद्र सरकार पर ठीकरा फोड़ा और कहा कि जिनके पास कार्ड था उन्हें खाना दिया गया।
जबकि भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के अधिकारियों ने अपने स्तर पर सब काम सही करने की बात कही।यही नहीं उन्होंने दिल्ली को सही स्थिति बता भी दी थी। साई के अधिकारियों ने यह बताया था कि खिलाड़ियों के खाने में कमी की बात उनके सामने भी आई थी।रही खिलाड़ियों के शिकायत करने की बात तो वे इसलिए चुप रह गए कि खेलने आए हैं खाने नहीं!यही वजह है कि पूरा आयोजन “शानदार” रहा।
इस दौरान केंद्र और राज्य सरकार के अफसरों में समन्वय मुद्दा भी उठा।जबलपुर गए साई के एक अधिकारी स्थानीय प्रशासन के रवैए की वजह से बीच में ही भोपाल लौट आए थे।और भी कई मुद्दों पर मतभेद हुए।लेकिन दब गए।
बस “खाने” के मुद्दे पर बात बाहर आ गई।बताते हैं कि “खाना” था सो सबने मिलकर “खाया”!खिलाड़ियों के मेनू में कुछ घटबढ़ हो गई तो क्या!उन्हें समझा दिया गया कि “हम खाएं तुम खेलो इंडिया”!ऐसा ही होता है खेलों में!खेल है इसे खेलना कोई “खेल” नहीं है।इसीलिए खिलाड़ी खेले और चुपचाप घर लौट गए!
सुना यह भी है कि अपने एक सीनियर कोच की एक हरकत की वजह से पूरा खेल विभाग इन दिनों परेशानी में है।विभाग उसे बचाना चाहता है पर कोच की शिकायत करने वाले उनके खिलाफ करवाई पर अड़े हैं।
अब कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है!है की नहीं?