अरुण दीक्षित:
यह महज संयोग ही है!12 फरबरी 2023 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस समय राजधानी भोपाल में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों की सर्विस मीट का उद्घाटन कर रहे थे ठीक उसी समय मैं मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर की इछावर तहसील के वन ग्राम सेवनिया परिहार से वीरपुर की ओर जा रहा था।यह पूरा इलाका आदिवासी बाहुल्य है।सेवनिया परिहार में कोरकू आदिवासी रहते हैं।पास के गांव कलमखेड़ा में ज्यादातर बारेला आदिवासी हैं।
इस इलाके की सैकड़ों एकड़ जमीन आदिवासी जोत बो रहे हैं।सरकार ने उनके खेतों पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर भी बना कर दिए हैं।बिजली भी खेतों तक गई है।ज्यादातर आदिवासी खेती पर ही निर्भर हैं।
सेवनियाँ परिहार गांव में स्कूल भी है।गांव की गलियां भी पक्की हैं।लेकिन आदिवासियों के मकान परंपरागत तरीके से ही बने हैं।
जब हम वन ग्राम में पहुंचे तो वहां क्रिकेट मैच चल रहा था।जंगल की जमीन को समतल करके अंडाकार मैदान बनाया गया था।उसके बीच में पिच थी।आयोजन के बारे में अधिकृत जानकारी देने के लिए कोई अधिकारी हमें नही मिला।इस पर हमने सड़क के किनारे चारपाई पर जर्दा और मसाले की दुकान लगाए बैठे युवक से इसके बारे में पूछा।
माथे पर लाल टीका लगाए गबरू युवक अरविंद ने बताया कि यहां क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा है।इसमें 14 गावों की टीमें हिस्सा ले रही हैं।इसका आयोजक वन विभाग ही है।अरविंद ने बताया कि वन विभाग के नाकेदार भी आयोजन स्थल पर मौजूद हैं।
अरविंद ने हमें नाकेदार साहब से मिलाने की कोशिश भी की।लेकिन वे नही दिखे।मैदान के आसपास खिलाड़ी जमा थे।हम कुछ देर वहां रुके।
फिर हमने अरविंद से पूछा कि यहां से कोई रास्ता कोलार बांध की ओर जाता है।अरविंद ने सामने जा रही कच्ची सड़क की ओर इशारा किया और कहा -सीधे चले जाइए।आप वीर पुर पहुंच जाएंगे।ज्यादा दूर नहीं है।
सेवनियाँ परिहार से हमने अपनी जीप कोलार बांध(वीरपुर) की ओर मोड़ दी।अरविंद से ही हमें यह पता चला कि यह इलाका ग्राम पंचायत वीर पुर डैम में ही आता है।थोड़ी दूर चलने के बाद हमें ग्राम पंचायत का दफ्तर भी देखने को मिला।
सेवानियां से जब हम चले तो कच्ची सड़क के दोनों ओर खेत ही खेत थे।दूर खेतों में बने आदिवासियों के घर भी दिखाई दे रहे थे।गेंहू और चने की फसलें लगी हुई हैं।लोग खेतों में काम भी कर रहे थे।
रास्ते में कलमखेड़ा गांव मिला।वहां हमें मिले प्यार सिंह बारेला।उन्होंने बताया कि वीर पुर तक रास्ता एकदम चकाचक है।आपकी जीप आराम से पहुंच जायेगी।
थोड़ी देर बाद ही जंगल शुरू हो गया।रास्ते में हमें दर्जनों मोटर साइकिलें मिली।सभी आदिवासी युवकों की थी।वे सपरिवार मोटर साइकिलों पर ही यात्रा करते हैं,ऐसा उन्हें देख कर महसूस हुआ।एक थानेदार भी रास्ते में मिले!
जंगल में पहुंचने के साथ ही हमें जगह जगह सागौन के पेड़ों के कटे हुए ठूंठ दिखाई देने लगे।जैसे जैसे हम वीरपुर की तरफ बढ़ रहे थे सड़क के दोनों ओर ठूंठों की तादाद बढ़ती जा रही थी।हम इन्हें अपने कैमरे में कैद करते जा रहे थे।
एक जगह हमें लगा कि अचानक जंगल कुछ हल्का हल्का लग रहा है। हमने अपनी जीप रोकी।रुकने पर हमने जो नजारा देखा वह चौंकाने वाला था।सड़क की दाहिनी ओर दर्जनों पेड़ काटे गए थे।ज्यादातर पेड़ आरी से काटे गए थे।उनकी पूरी लकड़ी गायब थी।कुछ पेड़ कटे पड़े थे।कुछ पेड़ों की लकड़ी के बड़े बड़े बोटे भी दिखाई दिए।
उस जगह जो हालत थी उससे यह साफ लग रहा था कि बड़े पैमाने पर सागौन की सुनियोजित कटाई हो रही है।वह भी दिन रात चलने वाली कच्ची सड़क के किनारे।
यह जगह राजधानी भोपाल से मात्र 30 या 35 किलोमीटर दूर है।मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में आती है।इससे थोड़ा आगे ही हमें सरकार की वन सुधार योजना का बड़ा बोर्ड भी दिखाई पड़ा।
मजे की बात है पूरे रास्ते में हमें वन विभाग का कोई कर्मचारी नही दिखा।हो सकता है कि संडे की वजह से ऐसा हुआ हो। हां वीरपुर पहुंच कर पता चला कि यह वन क्षेत्र वीरपुर रेंज में ही आता है।
वीरपुर में इतवार की हाट लगी हुई थी।हम चाय पीने के लिए बाजार में रुके।वहां एक सज्जन से मुलाकात हुई।उन्होंने वन विभाग की आंतरिक व्यवस्था के बारे सामान्य जानकारी दी।उन्होंने बताया कि हर बीट का नियमित मुआइना होता है।नाकेदार,डिप्टी रेंजर,रेंजर, एसडीओ और डीएफओ सभी को नियमानुसार हर बीट का मुआयना करना होता है।कौन कितनी बार मुआइना करेगा यह भी सरकार ने तय कर रखा है।
उन सज्जन ने अपनी पहचान नही बताई।न ही हमने अपने बारे में उन्हें कुछ बताया।लेकिन उनकी बातों से यह पता चला कि इस इलाके से बड़े पैमाने पर लकड़ी बाहर भेजी जा रही है।
दोपहर बाद जब हम भोपाल पहुंचे तो पता चला कि आज मुख्यमंत्री ने आईएफएस सर्विस मीट का उद्घाटन किया है।इस मौके पर प्रदेश के वन मंत्री भी मौजूद थे।प्रदेश भर के वन अधिकारी परिवार सहित राजधानी आए हैं।दो दिन वे आपस में मेल मिलाप करेंगे।
इस बारे में अखबार में भी पढ़ा।अखबार के मुताबिक सर्विस मीट का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री ने अफसरों से कहा – आप पर हमें गर्व है।आपकी वजह से ही जंगल सुरक्षित हैं!
अखबार में मुख्यमंत्री का बयान पढ़कर कुछ देर पहले उनके ही गृह जिले के जंगल में दिखे ताजे कटे ठूंठ आंखों के सामने आ गए!
बरबस ही मुंह से निकल गया – अपना एमपी गज्जब है!जब राजधानी के आसपास के इलाकों और मुख्यमंत्री के जिले का यह हाल है तो दूर दराज के जंगलों का क्या हाल होगा?
वैसे भी चुनावी साल में सरकार आदिवासियों पर मेहरबान है।इस मेहरबानी की आड़ में क्या खेल चल रहा है,इसकी खबर तो सबको है।लेकिन बोलेगा कौन ? पेड़ कटने की शिकायत करने दूसरे पेड़ जंगल से बाहर आ नही सकते। जहां तक जंगल के राजा की बात है…वह खुद शिकारी के फंदों में फंस कर जान गवां रहे हैं।शायद इसी वजह से “जंगल राज” शब्द की उत्पत्ति हुई होगी!
खैर कुछ भी हो!अपना एमपी है तो गज्जब ही!