दावा किया जा रहा है कि महंगाई से चिंतित भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है। इससे रेपो रेट 6.25 प्रतिशत से बढक़र 6.50 प्रतिशत हो गया है। यानी होम लोन से लेकर ऑटो और पर्सनल लोन सब कुछ महंगा हो जाएगा और हमें लोन की ईएमआई पहले से अधिक चुकानी होगी। आम आदमी की समझ में तो आने से रहा कि कर्ज महंगा करने से महंगाई पर काबू कैसे पाया जा सकता है?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 1 फरवरी को बजट पेश करने के बाद आरबीआई की यह पहली बैठक है और कहा जा रहा है कि केंद्रीय बजट का यह पहला असर भी है, जो सीधे उस आम आदमी पर पड़ेगा, जिसकी दस लाख तक की आय टैक्स फ्री करने का ऐलान बजट में हुआ है। आरबीआई मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग में रेपो रेट बढ़ाने का फैसला लिया गया है। इससे पहले दिसंबर में हुई मीटिंग में ब्याज दरों को 5.90 प्रतिशत से बढक़र 6.25 प्रतिशत किया गया था।
मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। तब आरबीआई ने रेपो रेट को 4 प्रतिशत पर स्थिर रखा था, लेकिन आरबीआई ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मीटिंग में रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत इजाफा किया। इससे रेपो रेट 4.40 प्रतिशत से बढक़र 4.90 प्रतिशत हो गई। फिर अगस्त में इसे 0.50 प्रतिशत बढ़ाया गया, जिससे ये 5.40 प्रतिशत पर पहुंच गई। सितंबर में ब्याज दरें 5.90 प्रतिशत हो गई। फिर दिसंबर में ब्याज दरें 6.25 प्रतिशत पर पहुंच गई। अब ब्याज दरें 6.50 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि रिजर्व बैंक के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लडऩे का एक शक्तिशाली हथियार है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को आरबीआई से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देंगे। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होगा। मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आएगी और महंगाई घटेगी। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। इस उदाहरण से समझते है। कोरोना काल में जब इकोनॉमिक एक्टिविटी ठप हो गई थी तो डिमांड में कमी आई थी। ऐसे में आरबीआई ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो को बढ़ाया था।
यानि अब यह माना जाने लगा है कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत अच्छे दौर में आ चुकी है और इसीलिए ऋण महंगे कर दिए गए हैं। लेकिन दावों के इतर देखा जाए तो जो थोक महंगाई पिछले महीने कम बताई गई थी, वह दावा भी गलता था। कहीं किसी चीज के दाम कम नहीं हुए और न ही कोई सेवा सस्ती हुई। फिर कैसे महंगाई दर कम हुई, यह गले नहीं उतर पा रहा। अब बात मनी फ्लो की, तो महंगाई के साथ ही तंगहाली के इस दौर में भी चूंकि इस समय देश में शादी-ब्याह का मौसम चल रहा है और फसलें आने का मौसम आ चुका है, सो पैसे बाजार में अधिक आ रहे हैं। लेकिन यह केवल विशेष अवधि तक ही सीमित रहेगा, ऐसा लग रहा है।
अब पर्सनल से लेकर होम लोन तक महंगे होने का असर सीधे-सीधे मध्यम वर्ग पर ही पडऩा है। सरकार ने एक हाथ से दस लाख तक का टैक्स फ्री करके हलकी राहत दी, तो दूसरे हाथ से अधिक ईएमआई करके चोट कर दी। महंगे लोन से कौन परेशान होता है, यह सब जानते हैं। तीस लाख का लोन लो और साठ लाख चुकाओ। प्राइवेट बैंकों में तो कई बार तीन गुना तक पैसा चुकाना होता है। दरें एक तरफ और असलियत दूसरी तरफ। लेकिन सुने कौन? और कहे कौन? हम तो कभी रामचरित मानस की चौपाइयों में उलझे रहते हैं तो कभी मंदिर-मस्जिद में। कभी जातिगत आरक्षण को लेकर हाय तौबा मची होती है तो कभी जातिगत बयानों का युद्ध तेज हो जाता है। कोई यह जानने की कोशिश नहीं करता कि अडानी और ऐसे अन्य पांच प्रतिशत अमीर, बाकी पिच्चानबे प्रतिशत के बराबर दौलत कमा चुके हैं। कोई यह नहीं सोच पाता कि कोरोना काल में भी आम आदमी को बड़े कारोबारियों और सत्ताधीशों ने जमकर लूटा। कोई यह नहीं सोचता कि बजट से वास्तव में हमें मिला क्या? कोई यह नहीं सोचता कि राज्य और केंद्र सरकारें लाखों करोड़ के कर्ज में केवल जनता के हित की खातिर पड़ी हैं? इसलिए यदि कर्ज महंगे हुए, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। जय हिंद।
– साभार-संजय सक्सेना