सच दबाने का प्रयास?

 

एक तरफ पूरा का पूरा हिमालयन जोन संवेदनशील हो चुका है। भूगर्भीय हलचलें चिंता बढ़ा रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारें और प्रशासन परियोजनाओं से लेकर अवैध निर्माण तक को प्रोत्साहित कर और बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं। यहां तक तो ठीक, सरकारें सच्चाई दबाने के प्रयासों में भी जुट गई हैं। लेकिन कहां तक दबा सकेंगी? क्या सैटेलाइट से फोटो हटाने से खतरा खत्म हो जाएगा?
उत्तराखंड के जोशीमठ में मकानों में आई दरारों के बाद जहां लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने की प्रक्रिया चल रही है, वहीं जमीन धंसने की रफ्तार ने नई चिंता पैदा कर दी है। खासकर भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो की सैटलाइट तस्वीरों के हवाले से आई इस सूचना ने बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा कि जमीन धंसने की रफ्तार में आश्चर्यजनक तेजी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2022 से बाद के सात महीनों में जमीन 8.9 सेंटीमीटर धंसी, जबकि 27 दिसंबर के बाद के 12 दिनों में ही 5 सेंटीमीटर का धंसान रेकॉर्ड किया गया। अभी भू-धंसान की गति में आई इस कथित तेजी के मायनों और इसके संभावित नतीजों पर बातचीत हो ही रही थी कि अचानक इसरो के नैशनल रिमोट सेंसिंग सेटर (एनआरएससी) ने अपनी वेबसाइट से यह रिपोर्ट हटा दी। इसके कारणों पर इसरो की ओर से तो कुछ नहीं कहा गया, लेकिन उत्तराखंड सरकार के एक मंत्री ने दावा किया कि उन्हीं के अनुरोध पर ऐसा हुआ है। बाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक के बाद नैशनल डिजैस्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने पत्र लिखकर इसरो समेत 12 सरकारी संगठनों और एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि उनके एक्सपर्ट्स अपना ऑब्जर्वेशन मीडिया के साथ या सोशल मीडिया पर शेयर न करें।
राज्य और केंद्र सरकार का कहना है कि इससे मौजूदा हालात को लेकर अलग-अलग तरह के तथ्य और उनकी तरह-तरह की व्याख्याएं सामने आ रही हैं, जिससे लोगों में घबराहट फैल रही है। मौजूदा हालात में लोगों में भ्रम और आशंकाएं फैलने को लेकर सरकार की सतर्कता समझी जा सकती है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि घबराहट फैलने से रोकने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम को किस रूप में देखा जाएगा और उससे कैसी स्थिति बनेगी?
विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे सचाई दबाने की कोशिश करार दी है। मगर उसे फिलहाल छोड़ दिया जाए तो भी यह सवाल तो है ही कि आखिर इसरो को अपनी रिपोर्ट हटाने को क्यों कहा गया? क्या उसकी सैटलाइट तस्वीरें सही नहीं थीं? और अगर इसरो की सैटलाइट तस्वीरों पर रोक लगा भी दी गई तो अन्य देशों के सैटलाइट जो तस्वीरें भेज रहे हैं उनका क्या किया जाएगा? क्या इसरो वाले मामले को दुनिया भर में सूचनाएं छिपाने की कोशिश के रूप में नहीं लिया जाएगा?
एक और चिंता की बात सामने आ रही है। उत्तराखंड के जोशीमठ में जिस तरह से जमीन धंस रही है। वैसा ही खतरा हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के मैक्लोडगंज में भी मंडरा रहा है। इस खतरे की वजह अवैध निर्माण है। वहां अवैध निर्माण के कारण अधिकांश इमारतें खड़ी ढलानों पर लटकी हुई हैं और एक-दूसरे से सटी हुई हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि मैक्लोडगंज क्षेत्र में स्थित इमारतें उच्च तीव्रता वाले भूकंप में ताश के पत्तों की तरह ढह सकती हैं। वैसे भी धर्मशाला क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है। धर्मशाला के इर्द-गिर्द थ्रस्ट हैं। यानी यहां तीन तरफ से झटके आने की आशंका बनी रहती है। इस बारे में सेंट्रल यूनिवर्सिटी के जियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. अंबरीश कुमार महाजन कहते हैं कि मैक्लोडगंज में ड्रेनेज या सीवेज सिस्टम का कोई समाधान नहीं है। हल होने तक परेशानी रहेगी। धर्मशाला में मैक्लोडगंज, भागसूनाग कुछ ऐसी जगह हैं, जो कि लैंडस्लाइड जोन है। सही ड्रेनेज सिस्टम न होने के चलते यहां पर ये स्थिति पैदा हुई है। अगर यहां ड्रेनेज सिस्टम सही होता तो इस तरह की समस्या नहीं आती। जब भी बहुमंजिला निर्माण होता है, तो इससे जमीन पर ज्यादा लोड पड़ता है, जिससे उसके खिसकने की संभावना बढ़ जाती है। शिमला में भी कई स्थान लैंडस्लाइड जोन में आते हैं। वहां कई बहुमंजिला इमारतें भी हैं, जो खतरे का संकेत हैं। उन्होंने कहा कि शिमला में भी आने वाले समय में जोशीमठ जैसे हालात हो सकते हैं।
उत्तराखंड में चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो, उस पर कथित विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए पर्यावरण विशेषज्ञों की रिपोर्टों को अनदेखा करने के आरोप लगते रहे हैं। बेहतर होगा सरकार सूचनाओं को सार्वजनिक करे ताकि इस पर विशेषज्ञों के बीच खुलकर बहस हो और उससे स्थिति में सुधार लाने का सही रास्ता निकले। वैसे यह काम सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। अधिकारियों के बजाय विशेषज्ञों पर अधिक भरोसा करना होगा, क्योंकि उनका अध्ययन है, उनके पास विजन है और इन सबसे हटकर स्वार्थ सिद्धि का कालम नहीं है।
-संजय सक्सेना

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