कंपनियों में काम करें अन्यथा स्वमेव बंद करना बेहतर:
मुखौटा कहे या सिर्फ नाम की कंपनियां या फर्जी कंपनियों का उपयोग खासकर नोटबंदी के बाद यह संज्ञान में आया कि इनका मनी लांड्रिंग के लिए उपयोग व्यापक स्तर पर होता है.
हाल में ही लोन एप वाली कंपनियों द्वारा करोड़ों का फंड ट्रांसफर चीन में किया गया. इसके अलावा काले धन को सफेद बनाने का खेल इन कंपनियों के माध्यम से किया जाता है.
फर्जी लेनदेन, जीएसटी की चोरी, गलत बिलिंग, आयकर छुपाना, कैश का उपयोग, बेनामी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन, आदि अवैध काम खुलेआम इन कंपनियों के माध्यम से होते है.
नोटबंदी के बाद २३ लाख रजिस्टर्ड कंपनियों में से करीब ९ लाख कंपनियां बंद की गई और आज भी हजारों कंपनियां ऐसे कामों में लिप्त है.
इस तथ्य को देखते हुए सरकार ने इस बार ऐसी मुखौटा या निष्क्रिय कंपनियों पर सख्त कार्यवाही करने का फैसला किया है. इसमें इस बार अब दो साल नहीं मात्र ६ महीने से निष्क्रिय कंपनी पर कार्यवाही का निर्णय लिया गया है.
सरकार के निशाने पर एक दो नहीं, कुल 40 हजार ऐसी कंपनियां हैं, जिनपर गाज गिरने वाली है.
दरअसल, कॉरपोरेट मंत्रालय ने 40 हजार से ज्यादा कंपनियों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने फैसला लिया है. इनमें से सबसे ज्यादा कंपनियां दिल्ली और हरियाणा में पंजीकृत हैं. इन दोनों राज्यों में 7500 से अधिक मुखौटा कंपनियां रजिस्टर्ड हैं.
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक कॉरपोरेट मंत्रालय ने ऐसी कंपनियों की छंटनी की है, जिनका कारोबार 6 महीने से निष्क्रिय रहा है. ऐसी कंपनियों का लाइसेंस रद्द करने का फैसला लिया गया है. साथ ही उनपर कार्रवाई की भी तैयारी है.
रिपोर्ट के अनुसार इन कंपनियों का इस्तेमाल गलत तरीके से विदेश पैसे पहुंचाने का काम किया जाता है. यानी इन कंपनियों में काली कमाई का जमकर इस्तेमाल होता है.
रजिस्ट्रार आफ कम्पनीज़ उन कंपनियों पर एक्शन लेती हैं, जो करीब दो साल से कोई कामकाज नहीं कर रही हैं, साथ ही ऐसी कंपनियां जो इस दौरान कारोबार का डेटा शेयर नहीं करती हैं.
*लेकिन, इस बार केवल 6 महीने से निष्क्रिय कंपनियों को भी चुना गया है.*
कॉरपोरेट मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 23 लाख कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, जिसमें से अभी करीब 14 लाख कंपनियां ही कामकाज कर रही हैं. आंकड़े बताते हैं कि अब तक करीब 8 लाख कंपनियां अपना कारोबार बंद कर चुकी हैं.
सरकार ने मुखौटा कंपनियों पर केवल ताला लगाने का फैसला ही नहीं किया है, बल्कि उनपर सरकार की जो भी देनदारी है, उसे भी वसूला जाएगा.
ऐसी कंपनियों और उनके निदेशकों पर बकाए को खत्म नहीं किया जाएगा, साथ ही अगर कंपनी की ओर से कोई लेनदेन हुआ है तो उसके निदेशक और कंपनी के प्रतिनिधि को जवाब-तलब किया जाएगा. यानी इन कंपनियों पर ताला लगाने के बाद भी इनसे बकाया वसूलने में कोताही नहीं की जाएगी.
*साफ है जिन लोगों के पास रजिस्टर्ड कंपनियां हैं, वे सुनिश्चित कर लें कंपनी निष्क्रिय न हो और उसका उपयोग वैध व्यापार और लेनदेन के लिए किया जा रहा हो अन्यथा सरकारी कार्यवाही एवं पेनल्टी लगने का तो खतरा है ही, साथ ही डायरेक्टर को ब्लैक लिस्ट किया जा सकता है. इसलिए ऐसी कंपनियों को स्वमेव ही बंद कर कार्यवाही से बचें.*
*सीए ,अनिल अग्रवाल, जबलपुर