मीडिया के इस्तेमाल की जंग में जनतंत्र का दाँव

 

2019 के बाद  पुनः प्रकाशित।

21वी सदी का दौर है, जो समय की चाल के साथ चला जायेगा परन्तु ईन्सान के सोचने का क्रम वैसा ही रहेगा जो पहले था और आज है |
यह तो सिर्फ सोचने के स्तर की सीमा का अन्तर है, जो हमें इस बात का छदम आभास कराता है कि समय के साथ लोगो के आदर्श और
सोच बदल रही है |
इसी आदर्श और सोच को आधार मानकर सूचना-तंत्र (अखबार, समाचर चैनल, न्यूज़ वेबसाइट, पत्रिकाएँ, रेडियो इत्यादि-इत्यादि) के
माध्यम से पत्र व रिपोर्टो के जरिये वस्तुस्थिति को सबके सामने लाने वाला समूह मीडिया के नाम से प्रचलित है | इस समूह ने ज्ञान
और तकनीक के समन्वय से सामाजिक स्तर पर जनता की सोच के स्तर को बढ़ाने का वो अकल्पनीय कार्य किया व कर रहा है जिससे
व्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र इससे जुड़ता चला जा रहा है | इसके बिना कोई भी व्यवसाय उच्चाई तक नहीं पहुंच सकता और न ही व्यक्ति
धन, वैभव, शोहरत एवं बदलाव के शिखर तक पहुंच सकता है |
इसकी इसी ताकत के कारण आज प्रत्येक व्यक्ति, संगठन, समूह इसके इस्तेमाल के लिए एक से बढ़कर एक योजना बना रहा है |
इसके इस्तेमाल की खींचतान को देखकर ऐसा लगता है कि कोई बड़ी जंग चल रही है | इस जंग में नैतिक-अनैतिक, जायज-नाजायज,
मित्रता-दुश्मनी, शालीनता-झगड़े, शिष्टता-गालियाँ, मर्यादा-अमर्यादा, क़ानूनी-गैरकानूनी, वास्तविकता-कल्पनाशीलता, प्रथाएँ-
कुरुतियां, रैलियां-भीड़, सौन्दर्यता-नग्नता, सामान-कारागार, मालाए-प्रतिकार, असलियत-आडम्बर, सच-झूठ, उपकार-शोषण, चरित्र-
अश्लीलता, भाषण-उपदेश, मौन-गाने, कार्टून-फोटुए, दया-क्रूरता, ईनाम-सजा, ईज्जत-बलात्कार, नजाकत-वेश्यावृत्ति, जीवनदान-
हत्या, दान-लूट, ईमानदारी-चोरी, हिम्मत-डर, आदि-आदि के दाँव पेच लगाये जा रहे है | यहाँ आकर सही और गलत के फैसले ख़त्म हो
रहे है |
व्यवसाहिक तरीको में भी मीडिया के इस्तेमाल के लिए निचे से उप्पर तक श्रृंख्ला बन गई है | इन शृंखलाओ के माध्यम से समूह व
संगठन माल बेचने, चुनाव जितने, समाज में उत्थान, अन्याय को ख़त्म करने, झूठ का पर्दा हटाने आदि-आदि कार्यों के लिए मीडिया का
सुव्यवस्थित तरीके से प्रयोग करते है | जिसमे मीडिया मैनेजरों, प्रवक्ताओं, सलाहकारों, के माध्यम से चेहरे की भंगिमाओं और बोलने
के समय सीमाओं को तय करके अपने पक्ष में माहौल बना रहे है |
इन संगठनों से आगे देश व सभी के लिए इसका इस्तेमाल समय के अनुरूप कैसे हो, इसका तरीका लोकतंत्र में जनतंत्र का दाँव कहलाता
है | यह दाँव माननीय राष्ट्रपति महोदय को दस्तावेज के आधार पर प्रमाणित कर सांकेतिक भाषा के रूप में भेजा जा चुका है |
जनतंत्र के इस दाँव की शुरुवात राजपथ पर नये भवन के साथ होगी | इस भवन को में कार्य के आधार पर "जनसंदेशिका" के नाम से
सम्बोधित कर रहा हु परन्तु ये नाम लोगो की राय के अनुरूप कुछ भी हो सकता है | कुछ माह पूर्व ही रायसीना हिल पर एक मीडिया केंद्र
की शुरुवात हुई परन्तु इसके कार्य और उद्देश्य को देखे तो सिर्फ इसके कार्यपालिका का एक हिस्सा होने का आभास होता है | जबकि
मीडिया के लोकतंत्र में व्यापक योगदान के लिए इसे संवैधनिक चेहरा बनाकर विशेष लोकतान्त्रिक अधिकार देने की आवश्यकता है |
ऐसा करना लोकतंत्र के मालिकों में विध्यमान सर्वाधिक ज्ञान, भावना एवं देश के महान लोगो की सोच के अनुरूप पूर्णतया उचित है, जो
मीडिया को लोकतंता का चौथा स्तम्भ कहते है |
अनुसंधानिक, गणितीय, तार्किक, वैचारिक और सैद्धांतिक विश्लेषण करे तो यह निष्कर्ष निकलता है कि आजतक मीडिया का कोई
चेहरा ही नहीं है | इसका न होना हमेशा हमारे उज्जवल भविष्य के रस्ते को कुंद कर देता है और कई समस्याओ का उपाय होते हुये भी

हम मूक दर्शक बने रह जाते है | समय के साथ-साथ दुबारा एक जैसी समस्या का सामना करते है और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के
चक्रव्यूह में फस जाते है | इस चक्रव्यूह से अंतिम निष्कर्ष यही निकल पाता है कि "व्यवस्था में कमी है इसे बदलना चाहिए" और हम
फिर उसी समस्या के इन्तजार में आगे चल पड़ते है कि इस बार हम उसके हरा देंगे | यह तो इतिहास गवाह है कि बिना तैयारी और कर्म
के भविष्य कैसे चौपट होता है |
प्रत्येक नई घटना और कार्यवाही के बाद अनुभवी एवं आम लोगो की तरफ से कई सुझाव व समस्याओ के उपाय आते है परन्तु सभी
निष्कर्षो को जोड़ने की कोई कड़ी न होने व संवैधानिक अधिकार के अभाव में अधिकांश अखबारों की रद्दी के ढेर व चैनल पर बहस में
गुम हो जाते है | जबकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह नये कानून, व्यवस्था, सरकारी प्रक्रिया, न्यायिक प्रक्रिया को प्रेरित कर समय के
अनुरूप बदलाव की शुरुवात तक जाने चाहिए जो कागजी प्रक्रिया के आधार पर भी मूर्त रूप से दिखे ताकि प्रत्येक घटना के बाद लोगो
को बार -बार सड़को पर न निकलना पड़े | न्याय दिलाने के नाम पर बंद, प्रदर्शन, तोड़फोड़ करके सरकारी सम्पति को नुकसान पहुचाने
व उल्टा लोगो को परेशान करने का सिलसिला ख़त्म हो और उच्चतम न्यायालय के आदेशों की पलना हो सके |
हम लोकतंत्र के स्तम्भों की बात करे तो लोग इसके स्तम्भों की संख्या चार बताते है | इसलिए जब विधायिका की बात होती है तो कैमरा
संसद की तरफ घुम जाता है | न्यायपालिका की खबर होती है तो कैमरा उच्चतम न्यायालय की फोटो या वीडियो दिखाकर उसकी पुस्टि
करता है जबकि कार्यपालिका की बात प्रधानमंत्री कार्यालय की फोटो या वीडियो दिखाकर ख़त्म होती है | जब मीडिया की बात आती है
तो कैमरा कुछ नहीं दिखाता वह सिर्फ एक अखबार, चैनल, वेबसाइट, रेडियो चैनल, पत्रिका, संस्था, कंपनी में बट जाता है |
मीडिया में कई एसोसिएशन, संगठन व संस्थाए है परन्तु ये सभी केवल एक क्षेत्र विशेष को इंगित करती है जैसे: अखबारों का संगठन,
ख़बरी चैनलों का एसोसिएशन इत्यादि | सामान्य एवं मीडिया से जुड़े लोगो की राय जानी जाये तो सर्वाधिक प्रतिशत इस बात का
पक्षधर निकलेगा कि भारतीय पत्रकारिता परिषद् या प्रेस कॉउन्सिल ऑफ़ इण्डिया इसका केंद्र या संवैधानिक चेहरा है | यह सिर्फ एक
आभास मात्र है जो तकनिकी आधार पर सही नहीं है | यह परिषद् सिर्फ उतना ही आधार स्पष्ट करती है जितना बार कॉउन्सिल ऑफ़
इण्डिया का न्यायिक प्रक्रिया के लिए है | तकनिकी आधार पर भारतीय परिषद् कार्यप्रणाली का हिस्सा है जो कार्यपालिका के स्तम्भ के
अंतर्गत आता है | इसका कार्य मीडिया के क्षेत्र में व्यवस्थाओ को बनाये रखना व उसको मुल उद्देश्य और सिद्धान्तों से भटकने नहीं
देना है |
"जनसंदेशिका" के रूप में लोकतंत्र का दाँव तभी सफल हो सकता है जब उसकी कार्यप्रणाली भी उच्चतम स्तर की सोच के अनुरूप हो |
यह पुरा तंत्र तथाकथित सरकार से स्वतन्त्र होगा और न्यायपालिका की तर्ज पर एक स्वतन्त्र बॉडी होगी जो मीडिया के सभी हिस्सों को
एक श्रृंंख्ला के रूप में जोड़ेगा | जहा कर्म के आधार पर लोगो के सन्देश लाने वाले मीडियाकर्मी द्वारा संकलन का कार्य हो सके |
इस चेहरे के अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया व कार्य का निर्धारण मीडियाकर्मियों को ही तय करने देना चाहिए | अभी में इतनी सम्भावना
व्यक्त कर सकता हु कि इसके अध्यक्ष को शपथ माननीय राष्ट्रपति महोदय दिलाये और ये प्रतिमाह अपनी रिपोर्ट उन्हें सोपे | इसके
अतिरिक्त कई अधिकार और जिम्मेदारियाँ इस संस्था के प्रमुख को मिले इसमें प्रमुख तौर पर इस बात का समावेश हो की वे सीधे तौर
पर लोकतंत्र के दूसरे स्तम्भों के प्रमुखों को अपनी संस्था की रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही करने का अनुरोध कर सके | यदि एक
समयावधि के दौरान इनके अनुरोध पर आगे कार्यवाही नहीं हो तो राष्ट्रपति महोदय के माध्यम से दुबारा भेज कर कार्यवाही करने का
अन्तिम निर्देश समाहित हो | इसका कार्य खबर आ जाने के बाद शुरू हो ताकि अभी चल रही खबर दिखाने की प्रक्रिया बनी रहेगी |

जनसंदेशिका बारह मास कार्य करे और इसके कर्मी तो तरह के प्रतिनिधि के रूप में जुड़े हो | पहले तरह के कर्मी अस्थाई तौर पर हो
जिनका चयन पत्रकारों और रिपोर्टरों की प्रकाशित एवं दिखाई गई खबर के आधार पर हो | इस प्रकार एक ही मुद्दे पर कई पत्रकारों का
समूह विश्लेषण कर सामूहिक रिपोर्ट बनाये | इसकी समय अवधि एक सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिए अर्थात इनका कार्यकाल भी
एक सप्ताह हो | जो पत्रकार इस सभा में सबसे ज्यादा बार आयेगा उसका चयन आगे एक निर्धारित लम्बे समय के लिए स्थाई सदस्यों
की एक अलग फोरम के लिए होगा | यह अलग फोरम अस्थाई सदस्यों की रिपोर्ट को अन्तिम रिपोर्ट देगा | इनका कार्यकाल तीन माह
से दो वर्ष के मध्य कुछ भी हो सकता है |
फिल्ड में कार्य करने वाले पत्रकारों व संस्थानो के मालिकों और एडमिन करने वाले लोगो के मध्य टकराव ना हो इसलिए इनके सदस्यों
की संख्या में तीस प्रतिशत लोग मालिको और एडमिन करने वाले लोग से आये | इससे हर खबर के अन्य सामाजिक पहलू के साथ
समन्वय बना रह सके |
संवैधानिक दृश्टिकोण से देखा जाये तो यह पूर्णतया संविधान के संरक्षक माननीय राष्ट्रपति महोदय के अनुरूप है | जनसंदेशिका के
माध्यम से उन तक लगातार जनता की भावना पहुंचने का एक मार्ग जो कुंद पड़ा है व खुल जायेगा और लोकतंत्र के अन्य स्तम्भों की
भांति यह भी राष्ट्र निर्माण में सहयोग करेगा | प्रत्येक माह नये-नये संदेशो और जन भावना का उनके पास पहुंचने व उनके माध्यम से
आगे किर्यान्वन के लिए जाने से उनका एक विशेष अतिविशिस्ट संवैधानिक अधिकार संगठनो को सलाह व दिशानिर्देश देने का कार्य
विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है वो पुनः जीवित हो उठेगा जो इस पद की गरिमा पर रबर स्टेम्प के तमगे को हमेशा के लिए धो देगा |
वर्तमान में मीडिया तकनिकी और विश्लेषण करने में इतना सक्षम हो गया है कि वो चुनावी नतीजों से पूर्व परिणाम की सम्भावना
बताता है जिसमे त्रुटि की सम्भावना बहुत कम प्रतिशत में रहती है | इस गुण का प्रयोग राष्ट्रपति महोदय जनसंदेशिका के माध्यम से
उठा सकते है और कई राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता की राय जानकार उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकते है |
सत्य को मिटाया नहीं जा सकता है अब हमारी ईच्छाशक्ति, भावना, सोच, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, राष्ट्रप्रेम, लोकतंत्र में आस्था व
इसको बनाने और अनुमोदित करने वालो में हमारे विश्वास पर निर्भर करेगा की यह कब सामने मूर्तरूप लेकर आता है |इस आलेख की जिम्मेदारी लेखक की है ।

लेखक- शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक
आविष्कारक ऑटो डिस्पोजेबल सिरिंज

 

Shares