मध्यउदय के सच पर न्यायाधीश का सत्यापन अब गूंजेगी सुप्रीमकोर्ट में

आपका  मध्य उदय सदैव सच्चाई को बिना डर व राग लपेट के आप तक पहुचां रहा हैं । इसी कडी के रुप में 2017 के प्रकाशन में शैलेन्द्र कुमार बिराणी के वैज्ञानिक-विश्लेषण “मीडिया के इस्तेमाल की जंग में जन्तन्त्र का दांव” प्रकाशित करा व बताया भारतीय मीडिया का न तो कोई संवैधानिक चेहरा हैं न उसे कोई कानूनी अधिकार के रूप में जवाबदेही दे रखी हैं ।
इसे अब सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के. एम. जोसेफ और ह्रषिकेश राय की पीठ ने बुधवार 21सितम्बर 2022 को हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान स्वीकार किया की इलेक्ट्रानिक मीडीया, प्रिंट एवं सोशियल में भी कई कोई कंट्रोल की व्यवस्था नहीं हैं । इसके लिए सरकार एक नियामक संस्था बनाये | इस मामले की अगली सुनवाई 23 नवम्बर, 2022 को होगी |
राष्ट्रपति महोदय को 2011 से मालुम हैं –
युवा वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने अपने आविष्कार की फाईल के साथ यह सच्चाई देश के राष्ट्रपति को 19 अगस्त, 2011 को ही ग्राफिक्स के साथ भेज दिया था (Letter Ref. No. P1/D/1908110208) इस पर राष्ट्रपति सचिवालय की मोहर व आधिकारिक दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं।
कौनसा संवैधानिक चेहरा नहीं हैं –
भारतीय लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं पहला विधायीका जिसका चेहरा संसद हैं, दुसरा कार्यपालिका जिसका चेहरा प्रधानमंत्री कार्यालय हैं, तिसरा न्यायपालिका जिसका चेहरा उच्चतम न्यायालय हैं व चौथा स्तम्भ पत्रकारिता जिसका कोई चेहरा नही हैं । इसे धन बल, बाहु बल, सत्ता के डर, बाजारवाद के स्वार्थ के रूप में जो चाहे, जैसा चाहे इस्तेमाल करता हैं ।
मीडियाकर्मियों व विशेष रूप से खबरी चैनलों पर संवैधानिक व कानूनी रूप से देश व देशवासियों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं हैं । इस कारण जो जैसा चाहे अपनी मर्जी का राग चलाता हैं । हमने पिछले प्रकाशन में इसको विस्तार से बताया ही नही अपितु किस तरिके से काम लोकतान्त्रिक तरिके से होगा व भी बताया |
इसके आगे क्या?
शैलेन्द्र कुमार बिराणी ने मध्य उदय की खबर डिटेल, उनके पास मौजूद दस्तावेज इस मामले की जनहित याचिका लगाने वाले सुप्रीमकोर्ट के वकील अश्वीन उपाध्याय को भेज दी हैं । इसके साथ ही रजिस्टार सुप्रीमकोर्ट को ई-मेल कर सारी जानकारी मुख्य न्यायाधीश व दोनों न्यायाधीशों तक पहुचानें का अनुरोध करा हैं । इसके साथ सुप्रीमकोर्ट बार काउंसिल के सभी वकीलों को जानकारी भेज सहयोग का अनुरोध करा हैं आखिरकार लोकतंत्र देश के सभी नागरिकों का हैं और सभी को उसमें जीना हैं । मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट हेट स्पीच के ही दुसरे मामले में सुनवाई 1 नवम्बर को करेंगे जिसके याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी हैं ।
भारत सरकार को कोई परेशानी नहीं –
9-10 दिसम्बर, 2021 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने लोकतंत्र को लेकर वर्चुअल मीटिंग करी थी जिसमें 110 देशों के प्रमुखों ने भाग लिया था इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शामिल हुये व उन्होंने सभी को मीडिया को अधिक अधिकार व शक्तिशाली बनाने की बात कहीं | इस तरह के संवैधानिक चेहरे से सरकार को अधिक खुशी होगी क्योंकि प्रधानमंत्री ने दुनिया को जो बात कहीं उसे उन्होंने करके बताया कोई जुमलेबाजी नहीं करी |
इसी तरह चले तो आगे मामला कहां तक जा सकता हैं –
हेट स्पीच व मीडिया से सम्बद्धित सभी मामलों का यह एक ही उपाय हैं जिससे पहले मीडियाकर्मियों को ही जवाबदेही बनाकर निष्ठावान लोगों को आगे बढाया जाये | इसके पश्चात् कोई गलती हो तो कार्यपालिका का कानूनी दबाव व अदालतों का दण्डित करने का मार्ग खुल जायेगा ।
यदि अभी के मार्ग पर चलते रहे तो पहले सरकार या अदालत मीडिया श्रेत्र के कुछ विशेषज्ञों का चयन कर एक कमेटी बना देगी जो नियामक संस्था के निर्माण की रूपरेखा देगी जो पूर्णतया कार्यपालिका या सरकार के अधिन होगी | इस रिपोर्ट के आधार पर एक संस्था बनाने से पहले सरकार नानकुर करेगी व बाद में अदालत को ढाल बनाकर स्वीकार कर लेगी |
इसके बाद राजनैतिक खेल में, पूंजीवाद के चेक से व राजनैतिक पार्टियों से गठित होने वाली सरकारें सबकुछ अपने नियंत्रण मे ले लेगी और पूरी कवायत शून्य पर आ जायेगी । इस बात की सम्भावना की पुष्टि न्यायाधीशों द्वारा सरकार पर करी कठोर टिप्पणी से होती हैं । जब सबकुछ 2011 होने पर भी 2022 खत्म होने के नजदिक आ गया तब जाकर लोकतंत्र व समाज में बुरा असर पडने के कारण डूंडने पड रहे हैं ।
न्यायाधीशों से क्यों उम्मीद हैं –
मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित का अल्प समय वाला कार्यकाल पूरा होने आया हैं । इस मामले पर भी यह उनकी आखरी सुनवाई होगी | माननीय राज्यसभा की सदस्यता से बडा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का संवैधानिक पद बडा होता हैं व कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य के फासले को स्पष्ट कर हमेशा के झगडें को खत्म करना चाहेंगे | दूसरे मामले में न्यायाधीश के.एम.जोसेफ हैं जिन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए वहां के राष्ट्रपति शासन को हटाया और सच का आधार बनाया कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं हैं | इनकी लोकतंत्र पर स्पष्ट ज्ञान को देखते हुए लगता हैं कि परिणाम अवश्य निकलेगा क्योंकि 11 वर्षों के अधिक समय से सच राष्ट्रपति महोदय के पास हैं जो एक व्यक्ति की निरसता से देश का हर नागरिक दुष्परिणाम भोग रहा हैं व दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र बर्बाद हो रहा हैं |इस आलेख की जिम्मेदारी मध्य उदय नहीं लेता है।
शैलेन्द्र वीरानी ( वैज्ञानिक)
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