बाबू की मनमानी पर सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर आंखें मूंदे
भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय का कमाल
बाबू पंकज निगम को बनाया अपील अधिकारी
मनीष कुमार राठौर,
नई दिल्ली । भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के उपक्रम डीएवीपी में बैठे घोटालेबाज और भ्रष्ट बाबुओं ने पत्रकारिता और मुद्रित अखबारों का बंटाधार कर दिया है । विज्ञापन विभाग की नौकरी करते सरकार के नियम नीति से ऊपर उठ कर इनके घमण्ड भरे बदतमीजी के डायलाग होते है । कि क्यों विज्ञापन के लिए आते है ? समाचार पत्रों को डीएवीपी की दर सूची में शामिल करने के खेल में करोड़ों के काली कमाई का धंधा बहुत साफगोई से चल रहा है । किस तरीके से घोटाले करते हुए फर्जी अखबारों को करोड़ों के विज्ञापन जारी किए है इसका ज्वलंत प्रमाण विगत कुछ समय पहले सीबीआई की 64 लाख गबन की धरपकड़ है जिसके कारण कुछ अधिकारियों को जेल जाने तक की नौबत तक आ गई थी, परंतु फर्जीवाड़ा करने में माहिर डीएवीपी के भ्रष्ट अधिकारी बच निकले और अब तक कोई दोषी जेल नहीं गया हैं।
वही कार्यालय में बैठे अधिकारियों की मनमानी के कारण आज क्षेत्रीय और ग्रामीण स्तर पर प्रकाशित अखबारों को विज्ञापन सूची से बाहर कर उनको बंद करवाने में इस विभाग का बहुत बड़ा योगदान है। इस कार्यालय में पदस्थ अधिकारी जो उलजलूल के नियमों का हवाला देकर सूचना के अधिकार को अनदेखा तक कर देते है। क्या ऐसे घोटालेबाज अधिकारियों पर केंद्र सूचना आयोग कार्यवाही करेगा? क्या सूचना प्रसारण मंत्रालय इन नकाबपोश अधिकारियों पर नकेल कसेगा?
ताजा मामला भोपाल मध्यप्रदेश से प्रकाशित दैनिक जनकाल संदेश समाचार पत्र का है, जहाँ पर डीएवीपी में अखबार के द्वारा विज्ञापन दर के लिए आवेदन किया गया था परंतु विभाग के द्वारा पहले कम प्रसार संख्या फिर एनेक्सर ए का नहीं होना और अब रिपिटीशन/दोहराव का बोल के कई आवेदन साल दर साल निरस्त ही कर दिये गये।
मगर विभाग पूरी फाइल देखने के लिए और मुलाकात के लिए बार बार बुलाता रहा है । जब इस मामले में राज्य प्रमुख के द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम से जानना चाहा की किन समाचार या लेख में दोहराव है, उसकी प्रमाणित प्रति मांगी गई तो डीएवीपी के लोक सूचना अधिकारी और प्रथम लोक सूचना अधिकारी के द्वारा आवेदक को गुमराह करते हुए गलत नियमों का हवाला देकर बिना किसी भी प्रकार की सुनवाई करते हुए आवेदन को निरस्त कर दिया गया जोकि सूचना के अधिकार का हनन करना है । डीएवीपी में बैठे ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के कारण ही सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाई जा रही है। प्रथम अपीलीय अधिकारी पंकज निगम जैसे बाबुओं के द्वारा ही तृतीय पक्ष की जानकारी बोलकर बिना किसी सुनवाई के आवेदन को निरस्त कर देना, डीएवीपी में बैठे ऐसे अधिकारियों के बाएं हाथ का खेल है । जबकि इन भ्रष्ट अधिकारियों को यह नहीं मालूम की तृतीय पक्ष की अनुमति से जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती थी, साथ ही तृतीय पक्ष से पूछा भी जा सकता था । परंतु कोई पत्राचार तृतीय पक्ष के साथ भी नहीं किया गया। जबकि किसी भी समाचार में छपी खबर सार्वजनिक करने के लिए ही होती है। परंतु भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय मैं बैठें भ्रष्ट अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही सरकार की किरकिरी हो रही है।
घोटाले और भ्रष्टाचार करने के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम को इन अधिकारियों ने अपने हाथ की कठपुतली बना ली जब चाहे तब उल्टे सीधे जवाब बनाकर आवेदकों को प्रताड़ित करना इन अधिकारियों ने धंधा बना लिया है जबकि इसके विपरीत जो व्यक्ति इन घोटालेबाज अधिकारियों को मलाई खिला देता है तो उसका कार्य पूर्ण कर दिया जाता है आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के डीएवीपी की यह स्थिति आज से नहीं दशकों से चली आ रही है। सरकारें आई और गई परंतु इन भ्रष्टाचारियों पर किसी प्रकार की कठोर कार्यवाही नहीं की गई।
सबसे बड़ी बात है कि मीडिया का हर बंदा इस विभाग की करतूतें जानता है मगर कोई आवाज नहीं करता। बड़े बड़े मीडिया हाउस इनके आगे घुटने टेक चुके है। अब देखना होगा कि विभाग घोटालेबाज ऊपर क्या कार्रवाई करता है? यह देखना है कि जांच एजेंसी कैसे करोड़ों के 20 बेनामी फ्लेट दिल्ली में खरीदे बैठे लोगों के साथ इनका क्या रिश्ता है। कैसे लाखों का यूनीक होस्टल कोटा में किसके नाम चल रहा है। क्या जांच एजेंसिया कानपुर और आगरा की संपति का पता लगा सकेंगी़ ?