पेट्रोल डीजल के बाद रसोई गैस में भी लगा मंहगाई का तड़का:
आम आदमी के लिए खाना पकाना और महंगा हो चला है। कमर्शियल एलपीजी गैस के बाद अब रसोई गैस सिलेंडर के दाम में भी इजाफा कर दिया गया है।
शनिवार को 14.2 किलोग्राम के डॉमेस्टिक LPG सिलेंडर के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी की गई।
यह वृद्धि शनिवार यानी 7 मई 2022 से ही प्रभावी हो गई है।
अब 14.2 किलो के रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 999.50 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई है। इससे पहले घरेलू एलपीजी के दाम 22 मार्च को 50 रुपये बढ़े थे। अप्रैल माह में इस सिलेंडर की कीमत में कोई इजाफा नहीं हुआ था।
आलम ये है कि प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी उज्जवला योजना के हालात मध्यप्रदेश में रसोई गैस दाम बढ़ने से दयनीय है.
सूचना के अधिकार के तहत नीमच के रहने वाले चंद्रशेखर गौर को बीपीसीएल, एचपीसीएल ने जो आंकड़े भेजे हैं, वे बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष 21-22 में जनवरी तक बीपीसीएल से, उज्जवला के हितग्राही 52,41,254 ग्राहकों ने सिर्फ एक दफे सिलेंडर रिफिल करवाया है जबकि 22,31,496 ग्राहक ऐसे हैं जिन्होंने सिलेंडर रिफिल करवाया ही नहीं.
जबकि एचपीसीएल के कुल 53.07 लाख ग्राहकों ने एक बार सिलेंडर रिफिल करवाया, 13.53 लाख ग्राहक ऐसे थे जिन्होंने सिलेंडर रिफिल करवाया ही नहीं. तीसरी कंपनी इंडेन के जवाब का इंतजार है.
आंकड़े हकीकत तो बयान कर ही रहे हैं, साथ ही मीडिया खबरों के अनुसार मध्यप्रदेश में कई महिलाओं ने उज्ज्वला योजना में मिले गैस सिलेंडर और चूल्हे कोने में सरका दिए हैं और फिर से चूल्हा फूंक रही हैं.
कीमतें बढ़ने से उज्ज्वला गैस के उपभोक्ताओं के लिए महंगी गैस पर रोटियां बनाना हैसियत से बाहर हो गया है.
महिलाएं खाना पकाने के लिए अब लकड़ियां बीनने निकल पड़ती हैं. देहात में अधिकांश घरों में सिलेंडर बंद हो चुके हैं.
गृहणियों की सांसों में धुआं, आंखों में जलन और आंसू की बेबसी लौट आई है. इन सबकी वजह आए दिन बढ़ते गैस सिलेंडर के दाम हैं.
सब्सिडी वित्तीय आधार पर देने में कोई बुराई नहीं है खासकर जो वर्ग जरूरतमंद है लेकिन सरकारी योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये का खर्च बेमानी सिद्ध हो जाता है जब व्यवस्था योजना लांच करके भूल जाती है. उसके क्रियान्वयन पर जब कोई ध्यान नही दिया जाता. ऐसे में न लोगों के हालात सुधरते है और न ही व्यवस्था में कोई बदलाव. बस इंतजार होता है तो नई योजना लांच होने का.
बेरोजगारी और मंहगाई सिर्फ शब्द होते हैं चुनावी घोषणापत्र के, जो सिर्फ बढ़ते जाते हैं और लोग योजनाओं का नाम सुनकर खुश हो जाते हैं.
सीए अनिल अग्रवाल (लेखक)