कमलनाथ सरकार के 09 महीने में 30 हजार करोड़ का निवेश
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने एक बार फिर इनवेस्टर्स समिट में जनता के पैसों की आहूति देने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के अनुसार इस इन्वेस्टर्स समिट का बजट 50 करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना जताई जा रही है।
वर्ष 2007 से 2016 तक शिवराज सरकार ने 12 इन्वेस्टर्स समिट की हैं। पहली इन्वेस्टर समिट 15-16 जनवरी 2007 में एनआरआई इन्वेस्टर मीट के नाम से खजुराहो में हुई। आखिरी मीट 22-23 अक्टूबर 2016 में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के नाम से इंदौर में हुई। इन सभी 12 इन्वेस्टर समिट में 6821 निवेश के प्रस्ताव आए। इन प्रस्तावों के हिसाब से 17 लाख 49 हजार 739 करोड़ के निवेश का दावा किया गया लेकिन हकीकत में 50 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट ही प्रदेश की जमीन पर उतर पाया।
06 साल में 10 इन्वेस्टर समिट- साल 2007 से 2012 तक प्रदेश में दस इन्वेस्टर समिट हुईं। इनमें 1238 निवेश के प्रस्ताव आए। इन प्रस्तावों में 08 लाख 88 हजार 797 करोड़ के निवेश होने का दावा किया गया। इन्वेस्टर्स ने एमओयू कर प्रदेश में इतने निवेश का वादा किया। लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक 1238 प्रस्तावों में से महज 273 प्रस्तावों पर ही अमल हो पाया। 08 लाख 88 हजार करोड़ का दस फीसदी निवेश भी जमीन पर नहीं उतरा।
2014 और 2016 में सबसे ज्यादा निवेश का दावा- साल 2014 और 2016 में सबसे ज्यादा निवेशकों के प्रस्ताव आए और बड़े इन्वेस्टमेंट के करार भी हुए। 8-10 अक्टूबर 2014 और 22-23 अक्टूबर 2016 को इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट हुईं। इन समिट में ये बताया गया कि 5583 निवेश प्रस्ताव में 08 लाख 60 हजार 941 करोड़ का निवेश मध्यप्रदेश में किया जाएगा। लेकिन सच्चाई इससे कहीं उलट है। इन 5583 प्रस्तावों में से 224 प्रस्ताव ही अमल में आए, जिनसे करीब 12 हजार 883 करोड़ का निवेश ही प्रदेश की जमीन पर हुआ।
कमलनाथ सरकार के 9 महीने में इतना निवेश- कमलनाथ सरकार ने नौ महीने के कार्यकाल में 30 हजार करोड़ के निवेश का दावा किया था, जो जमीन पर उतरा है। पीथमपुर में सिपला फार्मा ने 600 करोड़ रुपए का निवेश किया है। अजंता फार्मा ने 500 करोड़, न्यूजर्सी की कंपनी पार फार्मा ने 400 करोड़ और मेक्लाइड ने 400 करोड़ का निवेश पीथमपुर में किया है। इसी प्रकार श्रीराम डीसीएम ग्रुप ने 600 करोड़, इंडिया सीमेंट 1800 करोड़, एचईजी ग्रेफाइट 1400 करोड़, रालसन टॉयर 1700 करोड़, पीएनजी 500 करोड़, सद्गुरु सीमेंट 250 करोड़ और कृष्णा फास्फेट ने 300 करोड़ का निवेश अब तक मध्यप्रदेश में किया है।
आखिर क्या मतलब होता है इन समिट का?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर दो वर्ष में एक इन्वेस्टर्स समिट का आय़ोजन करते हैं। बताया जा रहा है कि इस वर्ष पहले यह समिट 04 से 06 नवंबर के बीच प्रस्तावित थी, लेकिन अब इसकी तारीखे बढ़ा दी गई हैं और अब समिट 7-8 जनवरी 2023 को आयोजित होगी। इस समिट में देश विदेश के तमाम दिग्गज उद्योगपतियों को मध्यप्रदेश में आमंत्रित किया जाता है। सरकार उद्योगपतियों को इस उम्मीद के साथ आमंत्रित करती हैं कि वो प्रदेश में निवेश लायेंगे, जिससे युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे, प्रदेश की तरक्की होगी। लेकिन परिणाम इसके उलट ही दिखाई पड़ते हैं। उद्योगपतियों पर खर्च होने वाली करोड़ों रुपए का राशि का कोई अर्थ नहीं निकलता। ऐसे में इस समिट के आयोजन का क्या मतलब है। बेहतर है उद्योग विभाग कोई ऐसी रणनीति बनाए कि फोन या बेबिनार के माध्यम से उद्योगपतियों से संवाद किया जाये और उन्हें प्रदेश के निवेश की नीतियों से अवगत कराया जाये।
समिट तो होती हैं लेकिन परिणाम कुछ नहीं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस महत्वाकांक्षी आयोजन की बात करें तो इसकी शुरुआत वर्ष 2007 से हुई थी। शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2016 तक लगभग पांच इन्वेस्टर्स समिट आयोजित की। इस समिटों में देश के कई नामचीन उद्योगपति शामिल हुए। आयोजन के दौरान प्रदेश सरकार की आव भगत का भरपूर लाभ उठाया, लेकिन न तो उन्होंने प्रदेश में कोई प्लांट लगाया, न कोई कंपनी शुरू की और न ही प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिला। कुल मिलाकर पूरी समिट में शिवराज सरकार ने अब तक अरबों रुपये खर्च किये, लेकिन परिणाम उसका कुछ नहीं निकला। परिणाम देखा जाये तो उद्योग विभाग ने सिर्फ मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना शुरू करके युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का बाजा बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
विफलता का एक कारण यह भी
देखा जाए तो प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हुई इनवेस्टर्स समिट की विफलताओं का सबसे बड़ा कारण प्रदेश का उद्योग विभाग और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बिजनेस माइंडेड न होना है। मुख्यमंत्री इस पूरे आयोजनों की नीति से लेकर इसकी सफलता-असफलता पर पूरी तरह से उद्योग विभाग के ऊपर निर्भर होते हैं। ऐसे में उन्हें कभी आईएएस अफसर सुलेमान की सलाह पर तो कभी अन्य अफसरों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है। वे खुद प्रदेश की तरक्की और विकास तो चाहते हैं, लेकिन अफसरों के घालमेल के कारण प्रदेश को सिर्फ विफलता हाथ लगती है। जबकि इसके उलट 18 महीनों के लिए आई कांग्रेस सरकार ने कमलनाथ के नेतृत्व में सफल मैग्नीफिशिएंट समिट का आयोजन किया। इस समिट में गौतम अदाणी से लेकर टाटा, अंबानी, सहित प्रमुख उद्योग समूह के लोगों ने प्रदेश में इनवेस्ट करने का भरोसा जताया। इसका कारण है कि कमलनाथ को उद्योग और व्यापार की समझ बेहतर है। यही वजह है कि उनके कार्यकाल में हुई इनवेस्टर्स मीट सफल बताई गई है।
प्रवासी भारतीय कार्यक्रम मध्यप्रदेश क्यों करें?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन्हें भारतीय प्रवासी दिवस का कार्यक्रम मध्यप्रदेश में आयोजित करने की मांग की। एक बात समझ के परे है कि भारतीय प्रवासी दिवस का आयोजन विदेश मंत्रालय का है, उसका तमाम खर्चा उठाने की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय की है। ऐसे में इस दिवस का आयोजन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में आयोजित किये जाने की बात समझ के परे है। शायद इसका एक कारण आगामी विधानसभा चुनाव भी हो सकता है। क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते जिसमें प्रधानमंत्री के आने की संभावना हो, भले फिर चाहे इसमें प्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपये क्यों न खर्च कर दिये जायें।
प्रदेशवासियों के टैक्स से वसूले करोड़ों रुपये की आहूति देने को तैयार शिवराज सरकार
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की रैलियों के बाद अब प्रदेश सरकार इनवेस्टर्स समिट और प्रवासी भारतीय दिवस के कार्यक्रम में फूकेंगी अरबों रुपये
एक-एक आयोजनों पर करोडो़ं रुपये खर्च करने वाली शिवराज सरकार अभी भी खुद को जनहितैषी सरकार बताने से पीछे नहीं हट रही है। जनता के हितों की आहूति आयोजनों में देकर अभी भी शिवराज सरकार खुद को जनहितैषी सरकार का तमगा देने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती।इस लेख की सभी जिम्मेदारी लेखक की है।
विजया पाठक, एडिटर जगत विजन,
लेखक