पेटीएम के आईपीओ ने निवेशकों को सिखाया सबक

आज के नये दौर में, नई तर्ज पर, नये और युवा निवेशक उभरती हुई टेक कंपनी में निवेश के प्रति काफी आकर्षित हो रहे हैं.

इनके लिए कंपनी के बिजनेस आइडिया, सोच और उसका बढ़ता मार्केट मायने रखता है और इसीलिए यह उन कंपनियों में भी खुल कर निवेश कर रहे हैं जो भले घाटे में ही क्यों न हो लेकिन मार्केट में इनकी सोच की स्वीकारता बढ़ती जा रही है.

लेकिन पेटीएम के आईपीओ ने इन निवेशकों को अच्छा खास सबक सिखा दिया है. आज यह जरूरी हो गया है कि कंपनियां अपने शेयर की कीमत उचित दर पर जारी करें.
जो कंपनी की परिसंपत्तियों की कीमत है, उसके अनुसार ही शेयर की कीमत होनी चाहिए एवं उसी कीमत पर निर्गम जारी होना चाहिए.

कंपनियां सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर आज भी इतने कड़े कानून होने के बावजूद सरकार की नाक के नीचे खुले आम छोटे निवेशकों को लूट रही है और पेटीएम इसका सबसे उचित उदाहरण हमारे सामने है.

प्रारंभिक शेयर निर्गम या आईपीओ वो होता है जो कंपनी सबसे उचित दर पर शेयर लाती है जिससे प्रारंभिक निवेशकों को फायदा मिल सकें. कहने का मतलब साफ है कि यह वो कीमत होती है जो कंपनी के शेयर की मिनिमम कीमत होती है और हर हाल में कंपनी की वेल्यू इससे कहीं अधिक होती है और किसी भी प्रारंभिक निवेशक के लिए घाटे की संभावना लगभग न के बराबर होती है.

1990 से 2010 के दशकों में लोगों को बेहिसाब कीमत लगाकर लूटा गया और उम्मीद थी कि मोदी सरकार आने के बाद शायद इस पर लगाम कसेगी. लेकिन वही कहानियाँ और लूट अब और बड़े स्तर पर की जा रही है और वो भी खुलेआम.

शेयर बाजार का आजतक का सबसे बड़ा आईपीओ पेटीएम का जो कि अभी भी घाटे में चल रही है. शेयर बाजार और आम निवेशकों से इसने 15000 करोड़ रुपये बटोर लिए है और वो भी प्रति शेयर 2150/- रुपये की कीमत पर. जब मार्केट में शेयर की लिस्टिंग हुई तो कीमत 1990/- रूपये पर ही खुली ओर फिर गिरते हुए 1560/- रुपये प्रति शेयर पर बंद हुई. पहले ही दिन आम निवेशक की 27% पूंजी साफ और घाटा.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर किन एजेंसियों ने इस कंपनी के शेयर का मूल्य निर्धारण किया, सेबी ने इस कीमत पर शेयर लाने की कैसे मंजूरी दे दी, मर्चेंट बैंकर या लीड मैनेजर जो सरकारी नियामक के दायरे में आते हैं- उन्होंने कैसे पब्लिक को धोखे में रखते हुए इस कीमत पर पैसे की उगाही की?

ऐसा प्रतीत होता है मानों पूरा सिस्टम चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी, इस कोशिश में रहता है कि कैसे इन पूंजीपतियों का साथ देकर देश की आम जनता का पैसा लूटें.

आज हमारे सामने इस तरह की घाटे में चल रही टेक कंपनियों के कई उदाहरण है जिन्होंने मार्केट से हजारों करोड़ रुपये बटोर लिए है और बेफिक्र है कि अब जो होगा या लुटेगा वो आम निवेशक क्योंकि प्रमोटरों ने तो अपना पैसा आईपीओ के माध्यम से निकाल लिया है.

हाल में ही आईपीओ जोमेटो, पालिसी बाजार, नाईका, नजारा टेक्नोलॉजी, गो फेशन,
ईज माई ट्रिप, कार ट्रेंड, आदि ने सफलता पूर्वक मार्केट से पैसे बटोर निवेशकों को चुना लगाया है क्योंकि ये सारी कंपनियां घाटे में चल रही है. कुछ को छोड़ दे तो सारी कंपनियों ने शेयर की कीमत और मूल्य को अधिक दिखाकर आम जनता को लूटने का ही काम किया है और वो भी कोविट काल में सरकार की नाक के नीचें.

सरकार को तुरंत संज्ञान लेते हुए इस तरह के आईपीओ की जांच करना बहुत जरूरी है ताकि यह पता लगाया जा सकें कि पैसे बटोरकर कहाँ लगाया जा रहा है. किस जेब में आम निवेशक का पैसा जा रहा है और व्यापार की क्या स्थिति है. आखिर व्यापार कौन चला रहा है और इसकी वृद्धि और शेयर मूल्य एवं कंपनी की परिसंपत्तियों को बढ़ाने के क्या प्रयास किए जा रहे हैं.

नहीं तो साफ है कि आम निवेशक से पैसे बटोरकर यह हाई टेक कंपनियां लोगों को बड़े बड़े सपने दिखाकर एक दिन चंपत हो जाएगी और इसमें कोई अतीश्योक्ती नहीं ये सब सरकारी सहमति के बिना होना मुश्किल होता.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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