टेक्सटाईल सेक्टर में पीएलआई का फायदा सिर्फ बड़ी कम्पनियों को
कपड़ा मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी नोटिफिकेशन ने एमएसएमई सेक्टर जो कपड़ा क्षेत्र में काम करता है, उसे निराश किया है.
कपड़ा क्षेत्र में काम कर रहे व्यापारी खासकर छोटे उद्योग केन्द्र सरकार द्वारा पिछले दिनों घोषित की गई 10683 करोड़ रुपये की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टिव पीएलआई स्कीम को लेकर खासे उत्साहित थे, लेकिन मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन ने इसका दायरा काफी सीमित कर दिया है.
कपड़ा मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक:
- देश में ही रजिस्टर्ड उत्पादक कंपनियों को इसका फायदा मिलेगा और इस स्कीम के तहत हिस्सा ले सकेंगी.
- इस स्कीम के तहत आने वाली कंपनियों को अपने कारखानों में प्रोसेसिंग व ऑपरेटिंग एक्टिविटीज करनी होगी.
- योजना के तहत पांच साल वित्त वर्ष 2024-25 से वित्त वर्ष 2028-29 के दौरान बढ़े हुए टर्नओवर के हासिल लक्ष्य के मुताबिक कंपनियों को इंसेंटिव दिया जाएगा.
- इंसेटिव हासिल करने के लिए जब क्लेम की गणना की जाएगी तो इसमें ट्रेडिंग और आउटसोर्स जॉब वर्क के जरिए हुए टर्नओवर को शामिल नहीं किया जाएगा.
- योजना के तहत मैनमेड फाइबर के कपड़े व फैब्रिक और टेक्निकल टेक्सटाइल्स प्रॉडक्ट्स के 10 सेग्मेंट्स पर ही सिर्फ इंसेंटिव मिलेगा.
- अगर किसी कंपनी ग्रुप की कोई कंपनी पीएलआई स्कीम के तहत शामिल है और उसके किसी सामान को स्कीम के तहत शामिल किया गया है और वही सामान ग्रुप की कोई और कंपनी भी बना रही है तो ऐसी स्थिति में ग्रुप की अन्य कंपनी द्वारा बनाए गए सामानों को योजना के तहत नहीं माना जाएगा.
- कंपनी ग्रुप की एक कंपनी को योजना के तहत शामिल किए जाने के बाद ग्रुप की अन्य किसी कंपनी को दूसरे भागीदार के तौर पर शामिल नहीं किया जाएगा.
जिन उत्पादों को पीएलआई स्कीम के अन्तर्गत लाया गया है, उसमें ज्यादातर छोटे उद्योग है जिनका गठन प्रोप्रिएटरी या पार्टनरशिप है, ऐसे में कंपनियों तक इसे सीमित रखना समझ से बाहर है कि आखिर कपड़ा मंत्रालय किसको बैनिफिट देना चाहता है.
जन सामान्य से संबंधित एमएसएमई सेक्टर को यदि फायदा नही मिलेगा तो धरातल पर विकास की बात करना बेमानी होगा.
इसी तरह ट्रेडिंग और जाब वर्क को इस दायरे से बाहर रखना भी निराश करता है क्योंकि छोटे उद्योग एक नेटवर्क के तहत काम करते हैं जिसमें जाब वर्क के जरिये पूरा उत्पादन किया जाता है और साथी युनिट के जरिये माल बेचा जाता है. ऐसे में ट्रेडिंग और जाब वर्क से संबंधित युनिट के बाहर हो जाने से इस स्कीम का सही फायदा पहुंचना मुश्किल होगा.
कोशिश यह होनी चाहिए थी कि नोटिफिकेशन के जरिये स्कीम में सभी तरह से गठित उद्योगों को शामिल किया जाता और साथ ही नेटवर्क ग्रुप को चिन्हित करने के मापदंड बनाए जाते ताकि उत्पादन से लेकर बेचने तक के टर्नओवर पर इस स्कीम का फायदा मिल पाता.
इसलिए सरकार यदि पीएलआई स्कीम का फायदा टेक्सटाईल सेक्टर तक सही मायनों में पहुंचाना चाहती है उसे जरुरी बदलाव करते हुए फिर नोटिफिकेशन जारी करना चाहिए जिससे एमएसएमई सेक्टर की निराशा दूर हो सके.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर