आंकड़ों को छिपाने से नहीं सुधरेगी अर्थव्यवस्था और न ही हो पाएंगे दुरुस्त करने के फैसले: कौशिक बसु

मशहूर अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए आंकड़ों को छिपाने से न सिर्फ देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि अर्थशास्त्रियों और नीति निर्धारकों को भी हालात दुरुस्त करने के लिए फैसले लेने में दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि आंकड़े जमा करने में कभी भारत की दुनिया भर में तारीफ होती थी, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज स्थिति इसके उलट है।

विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने महान सांख्यिकीविद पी सी महालनोबिस का जिक्र करते हुए कहा, “उन्होंने आंकड़े जमा करने और उनका विश्लेषण करने में बहुत बड़ा योगदान दिया…लेकिन बदकिस्मती से आज सबकुछ उलटा-पुलटा हो गया है….आज आंकड़ों को छिपाने की कोशिश की जा रही है।” उन्होंने कहा कि जब आप खुद ही आंकड़े छिपाएंगे तो फिर हालात को सुधारने के तरीके कैसे अपनाएंगे।

कौशिक बसु ‘इकोनॉमिक्स इन एवरीडे लाइफ एंड रोल ऑफ एथिक्स’ विषय पर हुए एक सेमिनार में बोल रहे थे। सेमिनार के बाद उन्होंने सवाल-जवाब के कार्यक्रम में यह बातें कहीं। सेमिनार का आयोजन पुरुलिया के फिलिक्स स्कूल ने किया था। उन्होंने अपने संबोधन में अर्थव्यवस्था में गिरावट के इतिहास से लेकर उत्पादों की कीमतें तय करने और उससे पैदा होने वाली समस्याओं पर विस्तार से बात रखी।

ध्यान रहे कि कौशिक बसु अपने ट्वीट के जरिए देश की अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर दिखाते रहते हैं और सरकार के आर्थिक फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार जिस तरह से अपने मुंह मियां मिट्ठू बनती है, उससे समस्या का समाधान नहीं होने वाला।

कौशिक बसु ने देश में चल रहे वैक्सीनेशन अभियान के बारे में भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इसके आंकड़ों में भी पारदर्शिता नहीं है जिसके चलते यह स्पष्ट नही हो पा रहा कि वैक्सीनेशन की असली स्थिति क्या है। उन्होंने कहा, “वैक्सीनेशन के मोर्चे पर भारत ने अच्छा काम किया है और शहरी इलाकों में लोगों को वैक्सीन ली है, लेकिन क्या ग्रामीण इलाकों के लिए हम ऐसा कह सकते हैं, खासतौर से देश के उत्तर और पूर्वी हिस्सों के बारे में….भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है, इसलिए जिन लोगों को वैक्सीन लग चुकी है उनकी संख्या भी अधिक होनी चाहिए थी, लेकिन अगर हम आबादी के अनुपात में देखें तो पूरी तरह वैक्सीन लगे लोगों की संख्या बहुत कम है।”

उन्होंने कहा कि “दुनिया के 109 देश ऐसे हैं जिन्होंने भारत से अधिक टीके लगाए हैं। हमें आंकड़ों को लेकर पारदर्शी होना ही चाहिए।”

आंकड़ों की जहां तक बात है हाल के वर्षों में जीडीपी के आंकड़ों को लेकर काफी विवाद रहा है। स्वतंत्र शोधकर्ताओं ने सरकार द्वारा जारी अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं। इनमें उपभोग, उत्पादन और अन्य क्षेत्रों के आंकड़े हैं जोकि अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर दिखाते हैं।

कौशिक बसु ने कहा कि, “जब में विश्व बैंक में (2012-16) में था तो मुझे भारत से जो आंकड़े मिलते थे, उन्हें देखकर मुझे गर्व होता था….हालांकि कुछ आंकड़े अच्छे नहीं होते थे, लेकिन उनमें पारदर्शिता थी। लेकिन आज हम इस मामले में राह भटक गए हैं।” उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था में हाल के दिनों में दर्ज हुई गिरावट के लिए भी आंकड़ों में पारदर्शिता को ही जिम्मेदार ठहरता हुए कहा कि जब तक असली तस्वीर सामने नहीं होगी तो इलाज कैसे होगा।

उन्होंने कहा, “2016 के बाद से हर साल अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज हो रही है…हमारी स्थिति बहुत खराब है….हम सब जानते हैं कि बेरोजगारी बेहद ऊंची दर पर पहुंच गई है…।”

कौशिक बसु ने कहा कि, “2015 तक सभी बड़े अखबार, वह न्यूयॉर्क टाइम्स हो, वाशिंगटन पोस्ट हो या फाइनेंशियल टाइम्स हो या द वॉल स्ट्रीट जर्नल हो…भारत के बारे में अच्छी और पॉजिटिव बाते लिखते थे, हमारी पहचान एक बहुलतावादी देश के रूप में थी। भारत को लोग एक समावेशी मूल्यों वाला देश मानते रहे थे, लेकिन दुर्भाग्य से आज स्थितियां बदल चुकी हैं।

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