बेहिसाब मंहगाई, मिलावटखोरी और मुनाफाखोरी पर सरकार को कसनी होगी लगाम

 

 

पेट्रोल डीजल के दामों में बेतहाशा वृद्धि ने लोगों की वैसे ही कमर तोड़ रखी है और उस पर दवाईयों और मेडिकल उपकरणों पर बेहिसाब मुनाफाखोरी.

ऐसा लगता है जैसे कुछ लोगों ने आपदा काल को लूट काल बना दिया है और सरकार है कि जब जागती है तब आम आदमी लुट चुका होता है.

दुनिया भर के जन हितैषी कानून बनाने का दावा करने वाली सरकार को क्या स्वास्थ्य क्षेत्र की मुनाफाखोरी नहीं नजर आ रही?

क्या जरूरत नहीं कि सही समय रहते सरकार इस पर अपने मापदंड तय करें?

*पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी से बेहाल लोगों की जेब काटकर मेडिकल उपकरणों में की जा रही बेहिसाब मुनाफाखोरी रोकने के लिए अब सरकार कदम उठा रही है.*

सरकार ने इस सिलसिले में कार्रवाई करते हुए पांच जरूरी मेडिकल उपकरणों – पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, बीपी मॉनिटर, नेबुलाइजर और डिजिटल थर्मामीटर पर वसूले जाने वाले ट्रेड मार्जिन की हद तय कर दी है.

अब इन पांचों उपकरणों पर 70 फीसदी से ज्यादा ट्रेड मार्जिन नहीं वसूला जा सकेगा.

*फिलहाल इन उपकरणों पर 709 फीसदी तक का भारी भरकम मार्जिन वसूला जा रहा है.*

*मार्जिन की नई लिमिट के आधार पर उपकरणों की नई कीमतें 20 जुलाई से लागू होंगी.*

ट्रेड मार्जिन की सीमा तय करने का यह आदेश नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) 2013 के पैराग्राफ 19 के तहत मिले विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए जारी किया है.

दवाओं और मेडिकल उपकरणों की कीमतों की निगरानी करने वाले एनपीपीए ने इस बारे में ट्विटर पर दी गई जानकारी में बताया है कि पल्स ऑक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, बीपी मॉनिटर, नेबुलाइजर और डिजिटल थर्मामीटर पर अभी 3 फीससदी से 709 फीसदी तक मार्जिन वसूला जा रहा है.

लेकिन अब इन पांचों उपकरणों को ट्रे़ड मार्जिन रैशनलाइजेशन के तहत लाते हुए इन पर वसूले जाने वाले मार्जिन की अधिकतम सीमा 70% तय कर दी गई है.

जो निर्माता ऐसा नहीं करेंगे, उन पर वसूली गई अधिक कीमत के 100 फीसदी के बराबर जुर्माना लगेगा.

साथ ही उन्हें ओवरचार्ज की गई रकम पर 15 फीसदी ब्याज भी चुकाना होगा.

*खर्चा चलाने के लिए अब बचत में हाथ डाल रहे हैं लोग*

पेट्रोल-डीजल की महंगाई ने ऐसे वक्त में जोर पकड़ा है, जब कोविड संक्रमण की वजह से लोगों को ज्यादा मेडिकल खर्च करना पड़ सकता है.

लोग अब खर्च चलाने के लिए अपनी बचत पर निर्भर रहना पड़ रहा है.

आरबीआई के शुरुआती आकलन के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में परिवारों की बचत दर घट कर जीडीपी की 8.2 फीसदी तक पहुंच गई. जबकि इसकी पिछली दो तिमाहियों में यह क्रमश: 21 और 10.4 फीसदी थी.

*साफ है गिरती बचत, बढ़ती मंहगाई, बेतहाशा मिलावटखोरी, बेहिसाब मुनाफाखोरी, गैर जरूरी अनुपालन और बेदम होते नये कानूनों ने लोगों को परेशान कर रखा है और दूसरी तरफ बढ़ता मंत्रिमंडल एवं सरकारी खर्चे चुनौती दे रहे अर्थव्यवस्था के आधार को!*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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