क्या दिवालिया कानून बना जनता के पैसे लूट का जरिया?

 

 

मोदी सरकार का सबसे क्रांतिकारी और मजबूत कानून दिवालिया कोड की शक्ल में वर्ष 2017 में लाया गया, जिसका उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली को मजबूत बनाना और डिफाल्टर पर सही समय पर कार्यवाही करना ताकि जनता का पैसा कोई लूट न सकें.

लेकिन 4 साल बाद कुछ केस जैसे भूषण स्टील, रुचि सोया, एस्सार स्टील को छोड़ दे तो आप पाएंगे कि लगभग सभी बैंकों को वैध तरीके से लूटा गया है.

हाल में ही शिवा इंडस्ट्रीज़ का विभिन्न बैंकों से लिया हुआ 4864 करोड़ रुपये का लोन का समाधान मात्र 318 करोड़ रुपये में हुआ है और एनसीएलटी की मुहर लगने के बाद अब इसे वैधता प्राप्त हो गई है.

दिवाला कानून के अन्तर्गत अब शिवा इंडस्ट्रीज़ और उसके प्रमोटरों पर से सारे केस खत्म कर दिए जावेंगे और ये प्रोमोटर वापस अपनी कंपनी का कामकाज सामान्य रूप में शुरू कर देंगे.

ये है दिवालिया कानून जिसमें सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को जा सकती है.

समाधान ऐसा निकल रहा है कि 80-90% पैसे बैंक वैध तरीके से लुटा रहा है और लुट रही है आम जनता.

इसी तरह विडियोकोन के लगभग 40000 करोड़ रुपये उधारी का समाधान वेदान्त ग्रुप द्वारा 2962 करोड़ रुपये का प्राप्त हुआ है, जिस पर सहमति लगभग तय है.

मतलब बैंकों को अपने लोन का मात्र 5-6% से ही मिल पा रहा है, इस कानून के अन्तर्गत और वो भी एनसीएलटी की मुहर पर. ऐसा लगता है ये कानून फर्जीवाड़े का अड्डा बन चुका है.

2017 जबसे ये कानून लाया गया है, 4376 केस इसके अंतर्गत स्वीकार्य हुए और इसमें सिर्फ 13% केस में ही समाधान हुआ वो भी 90% पैसे लुटाकर और बाकी केस दिवालिया घोषित हुए.

ऐसे कानून से अच्छा तो बैंकों की एकमुश्त समाधान नीति है जिसमें पैसे की अधिक वसूली भी होती है और डिफाल्टर को साफ घोषित करने की बजाय उसकी जबाबदेही भी तय होती है एवं फर्जीवाड़े पर सजा भी मिलती है.

नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल ( एनसीएलटी) ने हाल में ही हाईटोन मर्चेंट और शताब्दी इनवेस्टमेंट के फर्जी केस का पर्दाफाश किया, जिसमें जानबूझकर बैंकों के पैसे न देने पड़े, इसलिए केस दिवाला कानून के अन्तर्गत दाखिल किया गया.

कोरोना काल से पहले फरवरी 20 तक की बात करें तो बैंकों को 8.19 लाख करोड़ रुपये में सिर्फ 1.73 लाख करोड़ ही प्राप्त हुआ यानि जनता का 6.46 लाख करोड़ रुपये लूट लिया गया, वो भी वैध तरीके से.

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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