सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रद्द इन्फोर्मेशन एक्ट 2000 की धारा 66ए में अभी भी दर्ज हो रहे केस

 

 

क्या है आईटी एक्ट की धारा 66A?

देश में 2000 में आईटी कानून लाया गया था. उसके बाद 2008 में इसमें संशोधन कर 66ए को जोड़ा गया था.

66ए में प्रावधान था कि अगर कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर कुछ भी आपत्तिजनक पोस्ट लिखता है या साझा करता है. यहां तक कि अगर ईमेल के जरिए भी कुछ आपत्तिजनक कंटेंट भेजता है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है.

इस धारा के तहत 3 साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था.

इस धारा के खिलाफ श्रेया सिंघल ने याचिका दायर की थी.

इस पर मार्च 2015 ने फैसला देते हुए धारा 66A को ‘असंवैधानिक’ मानते हुए रद्द कर दिया था. इस धारा को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत बोलने की आज़ादी के मौलिक अधिकार का हनन माना गया था.

*सरकार और कानून मंत्रालय को इस धारा को ठीक करने का होश ही नहीं रहा और असंवैधानिक धारा के अन्तर्गत आज भी दर्ज हो रहे केस और परेशान किया जा रहा लोगों को:*

माननीय उच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लेते हुए 2015 में खत्म की गई आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत अब भी दर्ज हो रहे केस को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.

धारा 66ए को मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि रद्द होने के बावजूद एफआईआर और ट्रायल में इस धारा का इस्तेमाल क्यों हो रहा है.

इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कानून की किताबें अभी पूरी तरह से बदली नहीं हैं. इसके बाद कोर्ट ने हैरानी जताते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया है.

कोर्ट ने ये नोटिस मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर जारी किया है.

अभी भी 11 राज्यों की जिला अदालतों में धारा 66ए के तहत दर्ज 745 मामलों पर सुनवाई चल रही है.

मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद धारा 66ए के तहत 1,307 नए केस दर्ज किए गए हैं.

सबसे ज्यादा 381 केस महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं. उसके बाद 295 केस झारखंड में और 245 केस यूपी में दर्ज किए गए हैं.

*एक तरफ तो सरकार अपनी पीठ थपथपाती है कि उसने वर्षों से चले आ रहे सैकड़ों पुराने सड़े गले कानून रद्द करके जन हितैषी काम किया है तो दूसरी तरफ मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाली धाराएं रद्द होने के बावजूद चलाए जाना- बताता है कि सरकार का फोकस राजनीतिक और प्रचार प्रसार का है और उसे जमीनी परेशानियां और सच्चाई नहीं दिखती है!

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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